पंजाब

बीजेपी ने भी माना था ‘कलंक’ हैं कालिया, इसीलिए हटाया था मंत्री पद से, करोड़ों के ड्रग स्कैंडल और हत्या के मामले में भी आया था नाम, पढ़ें कालिया की कलंक गाथा….

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नीरज सिसौदिया, जालंधर
पिछले लगभग दो दशक में जालंधर से मंत्री बनने वाले मनोरंजन कालिया एकमात्र ऐसे मंत्री रहे जो अपने कार्यकाल के पांच साल भी पूरे नहीं कर पाए. कालिया को भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते मंत्री पद से हटाया गया था. इतना ही नहीं करोड़ों रुपए के ड्रग्स स्कैंडल और खालसा कालेज के छात्र मनप्रीत सिंह के हत्यारों को पनाह देने के आरोप भी कालिया पर लगते रहे हैं.
दरअसल, वर्ष 2007 में कांग्रेस सरकार को शिकस्त देकर अकाली-भाजपा गठबंधन सत्ता पर काबिज हुआ था. इसमें 19 सीटें भारतीय जनता पार्टी को मिली थीं. कालिया की गिनती उस दौर के कद्दावर नेताओं में हुआ करती थी. यही वजह थी कि पार्टी ने भी कालिया को सिर आंखों पर बैठाया और सरकार में उन्हें नंबर दो की हैसियत से नवाजा. उस वक्त डिप्टी सीएम का पद खाली था और बादल भाजपा की झोली में यह कुर्सी नहीं देना चाहते थे. इसलिए कालिया को स्थानीय निकाय मंत्री के पद से ही संतोष करना पड़ा. वक्त का पहिया तेजी से घूमता जा रहा था और पहली बार मंत्री बने कालिया का दिमाग सातवें आसमान पर पहुंच चुका था. स्थानीय निकाय मंत्री रहते हुए चौधरी जगजीत सिंह ने विकास की जो इबारत लिखी थी कालिया उसका दस प्रतिशत भी जालंधर वासियों के लिए नहीं कर सके थे. बहरहाल मंत्री पद की खुमारी कालिया के सिर चढ़कर बोल रही थी और स्थानीय निकाय मंत्रालय भ्रष्टाचार में डूबता जा रहा था. चहेतों को रेवड़ियां बांटी गईं और लुधियाना बीओटी स्कैंडल भी उसी दौर सुर्खियां बटोरने लगा. इसके अलावा गठबंधन सरकार ने चहेते विधायकों को खुश करने के लिए एक दो नहीं बल्कि 18 मुख्य संसदीय सचिव बना डाले. आमतौर पर तो सरकार में चीफ एक ही होता है लेकिन उस दौर में 18 चीफ बना दिए गए. मामला कोर्ट में धराशायी हो गया. कालिया के शुरुआती कार्यकाल बड़े ही मौज से बीते लेकिन इसी बीच एक भूमि घोटाला सामने आया. केंद्र में दस साल से वनवास झेल रही भाजपा अब अपने दामन पर कोई भी दाग नहीं देखना चाहती थी. केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी. सीबीआई ने इस घोटाले में तत्कालीन मंत्री राजकुमार खुराना पर एफआईआर दर्ज कर ली. साथ ही मनोरंजन कालिया, मास्टर मोहन लाल को भी तलब कर लिया. इसी दौरान भाजपा ने ऑपरेशन क्लीन शुरू किया. इसके तहत भाजपा द्वारा अपने ही मंत्री-विधायकों की स्क्रीनिंग की जाती थी और जो उस जांच में दोषी पाया जाता था उसके खिलाफ कार्रवाई की जाती थी. उस वक्त हिमाचल के वरिष्ठ भाजपा नेता शांता कुमार पंजाब भाजपा के प्रभारी बनाए गए. ऑपरेशन क्लीन की जिम्मेदारी अब शांता कुमार की थी. उन्हें पंजाब भाजपा की सियासी गंदगी को साफ करने का जिम्मा सौंपा गया था. कालिया के भ्रष्टाचार पर शांता कुमार ने मोहर लगा दी और मनोरंजन कालिया को मंत्री पद से हटा दिया गया. यह कार्रवाई वर्ष 2011 में की गई और कालिया अपना कार्यकाल भी पूरा नहीं कर सके.

शांता कुमार

कालिया के माथे पर हमेशा के लिए भ्रष्टाचार का कलंक लग गया. यहीं से कालिया का पतन शुरू हो गया. अगले साल चुनाव होने थे. वर्ष 2012 में अकाली-भाजपा गठबंधन फिर से सत्ता पर काबिज हुआ. कालिया जीतकर फिर से विधानसभा पहुंचे लेकिन इस बार मंत्रालय तो दूर कालिया को मुख्य संसदीय सचिव तक नहीं बनाया गया. बाद में कालिया की बौखलाहट ने खुद ही भ्रष्टाचार के आरोपों पर मुहर भी लगा दी. कालिया ने शांता कुमार के नाम एक खुला खत लिखा जिसमें कई गंभीर आरोप लगाए गए थे. ये आरोप फंड डकारने से लेकर सीएम पद का दुरुपयोग कर बेटे को लाभ पहुंचाने तक के थे. पालमपुर के तत्कालीन विधायक प्रवीण कुमार ने कालिया के इस खत का जवाब देते हुए कालिया का काला चिट्ठा एक प्रेस कांफ़्रेंस के दौरान खोल दिया था. कालिया के पैरों तले जमीन खिसक चुकी थी. वह पूरी तरह बेनकाब हो चुके थे.

प्रवीण कुमार, पूर्व विधायक पालमपुर

कालिया की कलंक गाथा यहीं पर खत्म नहीं होती. बात उन दिनों की है जब जालंधर में कुंवर विजय प्रताप सिंह पुलिस कमिश्नर बनाए गए थे. विजय प्रताप की ईमानदारी से पंजाब का बच्चा-बच्चा वाकिफ था. अपने मिजाज के मुताबिक विजय प्रताप ने करोड़ों रुपए के ड्रग्स स्कैंडल का खुलासा कर दिया. विजय प्रताप चार्जशीट तैयार कर चुके थे कि रातों-रात उनका जालंधर से तबादला कर दिया गया. सूत्र बताते हैं कि इस मामले में जो तस्कर शामिल थे वे कालिया के करीबी थे. पूछताछ में वे कालिया का नाम बयान न कर दें, इस वजह से कालिया ने उन्हें बचाने के लिए विजय प्रताप को जालंधर से चलता करवा दिया. भाजपा नेता किशनलाल शर्मा ने उस वक्त खुलकर इसका विरोध भी किया था.
ऐसे ही दो मामले जगदीश गगनेजा हत्याकांड और खालसा कालेज के छात्र मनप्रीत सिंह की हत्या के भी थे. गगनेजा हत्याकांड के छींटे कालिया पर पड़े थे लेकिन कालिया के खिलाफ मामले में कुछ भी साबित नहीं हो सका. वहीं कालिया पर मनप्रीत की हत्या के आरोपियों को संरक्षण देने और पुलिस से बचाने के आरोप भी लगे थे.

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