पंजाब

अवैध लॉटरी और दड़े सट्टे के अवैध कारोबार का गढ़ है भगत सिंह चौक और मच्छी बाजार, यहीं से निकलते हैं पूरे शहर के नंबर, कमिश्नर बदले पर कारोबार चलता रहा

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नीरज सिसौदिया, जालंधर
अवैध लॉटरी और दड़े सट्टे का काला कारोबार गरीबों के साथ ही करोड़ पति बनने का सपना देख रहे मिडिल क्लास फैमिली की युवा पीढ़ी को भी तबाह कर रहा है लेकिन पुलिस प्रशासन और सियासतदान मूकदर्शक बने हुए हैं. शहर के बीचों बीच स्थित मच्छी बाजार और भगत सिंह चौक का इलाका इस काले कारोबार का गढ़ बना हुआ है. पूरे शहर में चल रहे इस काले कारोबार का केंद्र यही इलाका है. यहीं से पूरे शहर की दुकानों के लिए लॉटरी के नंबर निकाले जाते हैं. पंजाब सरकार भले ही लॉटरी पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने का दावा कर रही हो लेकिन जालंधर शहर में कुछ आला पुलिस अधिकारियों और राजनीतिक संरक्षण में यह काला कारोबार तेजी से फल फूल रहा है. ऐसा नहीं है कि इन इलाकों में चल रही दड़े सट्टे और अवैध लॉटरी की दुकानों पर कभी पुलिस का छापा नहीं पड़ा. कई बार पुलिस यहां छापेमारी भी कर चुकी है लेकिन जमानत लेने के बाद ये कारोबारी फिर से काम शुरू कर देते हैं. छापेमारी के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति ही की जाती है.
दरअसल, भगत सिंह चौक पर लगभग एक दर्जन और मच्छी बाजार में लगभग आधा दर्जन से भी अधिक दुकानें ऐसी हैं जहां गरीब और युवा पीढ़ी के सपनों को लूटा जा रहा है. अमीर बनने का शॉर्टकट रास्ता दिखाने के नाम पर ये काले कारोबारी गरीबों की खून पसीने की कमाई लूट रहे हैं तो वहीं युवाओं को जुआरी बना रहे हैं. एक तरफ पंजाब की युवा पीढ़ी नशे से तबाह हो रही है तो दूसरी तरफ रही सही कसर ये काले कारोबारी पूरी कर दे रहे हैं. भ्रष्ट सिस्टम के नुमाइंदे वैसे तो इनके खिलाफ कार्रवाई ही नहीं करते लेकिन जो करने की कोशिश भी करते हैं उनके हाथ बांध दिए जाते हैं.
खुद को गरीबों और युवाओं का मसीहा बताने वाले सियासतदान सिर्फ इन दुकानों से अवैध वसूली करवाने में लगे हुए हैं. पुलिस को भी उसका हिस्सा दे दिया जाता है. पुलिस कर्मी भी जानते हैं कि इन काले कारोबारियों के खिलाफ अगर वे कार्रवाई करते भी हैं तो कोई न कोई आका इन्हें जरूर बचा लेगा और फजीहत खाकी वर्दी वाले को झेलनी पड़ेगी. यही वजह है कि लगभग 95 फीसदी पुलिसकर्मी अब खुद को इस सिस्टम में ढाल चुके हैं और अपना हिस्सा लेकर गरीबों और युवाओं की तबाही देखना ज्यादा मुनासिब समझते हैं. जो अधिकारी सक्षम हैं वे इसमें हाथ डालना जरूरी नहीं समझते. यही वजह है कि पिछले लंबे समय से यह काला कारोबार खुलेआम बेरोकटोक चल रहा है लेकिन किसी ने इसे बंद करने की दिशा में ठोस कदम उठाना जरूरी नहीं समझा. बात उन दिनों की है जब लगभग 15 साल पहले अर्पित शुक्ला यहां एसएसपी बनकर आए थे. तब भी यह कारोबार इसी तरह बेखौफ चलता था. आज वह एडीजी के पद पर पहुंच चुके हैं लेकिन इस काले कारोबार को बंद नहीं करा सके. उनके बाद यहां जाने कितने पुलिस कमिश्नर आए और गए लेकिन यह काला कारोबार बंद नहीं हो सका. दोष सिर्फ अर्पित शुक्ला या उनके जैसे चुनिंदा अफसरों का नहीं है. मंत्री से लेकर नेता तक सब इसी सिस्टम का हिस्सा हैं. ऐसे में पहल करने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पा रहा.
पार्षद और विधायकों की तो छोड़िए खुद को कथित समाजसेवी बताने वाले विभिन्न गैर सरकारी संगठनों के लोग भी सिर्फ दिखावे के लिए ही इनके खिलाफ आंदोलन करते हैं. आंदोलन रफ्तार पकड़ता है तो अपना हिस्सा लेकर आंदोलनकारी भी चलते बनते हैं.
यह काला कारोबार किस हद तक फल फूल इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भगत सिंह चौक और मच्छी बाजार इलाके में तो एक दुकान का किराया पचास-पचास हजार रुपए तक कर दिया गया है. इसके अलावा पुलिस, प्रशासन, पार्षद, विधायक और कथित समाजसेवकों का हिस्सा अलग से जाता है. इतना सब कुछ चुकाने के बाद भी ये काले कारोबारी फायदे में हैं तो जाहिर तौर पर नुकसान सिर्फ गरीबों और मिडिल क्लास युवाओं का हो रहा है.
इसके आसपास किशनपुरा, किशनपुरा चौक और लंबा पिंड चौक समेत कई इलाके ऐसे हैं जहां ये काला कारोबार बेरोकटोक चल रहा है. लंबा पिंड चौक में तो पहले एक पार्षद ने ही अपनी दुकान इस कारोबार के लिए किराए पर दी हुई थी. जब पार्षद को इसका पता चला तो उसने दुकान खाली करा ली. अब वहां काला उर्फ कालू नाम का कारोबारी यह काम कर रहा है. इसी तरह किशनपुरा में कपूर नाम का अनपढ़ कारोबारी इस काले खेल को अंजाम दे रहा है.
बात सिर्फ कार्रवाई करने की नहीं है बल्कि इस कारोबार को जड़ से मिटाना होगा. शराब, चरस, हेरोइन और चिट्टे जैसे नशों से भी अधिक नुकसानदायक नशा अमीर बनने का होता है. न जाने कितने युवा अमीर बनने के लालच में पहले अपना सब कुछ गंवा देते हैं और जब उनके पास खोने को कुछ नहीं रहता तो अपराध की दुनिया में कदम रखने को मजबूर हो जाते हैं. फिर कोई प्रेमा लाहौरिया की तरह पुलिस की गोलियों का शिकार हो जाता है तो कोई सारी उम्र सलाखों के पीछे गुजारने को मजबूर हो जाता है.
अब भी वक्त है अगर पुलिस ठान ले तो इस कारोबार को रोकना नामुमकिन नहीं है.

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