पंजाब

जालंधर में भी धड़ल्ले से चल रहा है अवैध शराब का कारोबार, अमृतसर और बटाला की तरह यहां भी जा सकती है लोगों की जान, पढ़ें क्या है पूरा मामला?

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नीरज सिसौदिया, जालंधर
अमृतसर, बटाला और तरनतारन में जहरीली शराब पीने से लगभग सौ से भी अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. गुरदासपुर के सांसद सनी देओल ने इस संबंध में कैप्टन अमरिंदर सिंह को एक पत्र लिखकर मामले की निष्पक्ष जांच कराने की मांग की है. पुलिस ने इस मामले में कुछ लोगों को गिरफ्तार भी किया है. लेकिन अवैध शराब का यह कारोबार सिर्फ चुनिंदा जगहों पर नहीं बल्कि विभिन्न शहरों और गांवों तक फैला हुआ है. शराब माफिया की जड़ें बहुत गहरी हैं. पुलिस प्रशासन से लेकर विधायक और मंत्री तक इससे भली भांति वाकिफ हैं. जाहिर है कि बिना राजनीतिक संरक्षण के इतने बड़े पैमाने पर यह कारोबार मुमकिन नहीं है. जालंधर शहर भी इससे अछूता नहीं है. यहां अवैध शराब का कारोबार बड़े पैमाने पर चल रहा है. यह अवैध शराब कब जहरीली शराब में तब्दील हो जाएगी कोई नहीं जानता. लाली, सुक्खा जैसे जाने कितने छोटे-बड़े शराब तस्करों की रोटी इसी अवैध शराब से चलती है. यहां के बस्तियों के इलाकों के साथ ही शहरी इलाकों में भी अवैध शराब का यह कारोबार तेजी से फल फूल रहा है. कुछ राजनेताओं का संरक्षण होने के चलते पुलिस इसके खिलाफ कार्रवाई नहीं कर पाती. जो अफसर कार्रवाई करने की हिम्मत जुटा भी लेते हैं तो उनका तबादला कर दिया जाता है. ऐसे ही एक एसएचओ हैं कमलजीत सिंह. ईमानदार और बेदाग छवि वाले तेज तर्रार अफसर कमलजीत सिंह को उन्हीं के विभागीय अधिकारियों ने फुटबॉल बना दिया है. साल भर में उनके कई तबादले हो चुके हैं. पहले चार नंबर थाना, फिर बस्ती बावा खेल और फिर सात नंबर थाना. बताया जाता है कि कमलजीत सिंह बस्ती बावा खेल में तीन महीने भी नहीं टिक सके. यहां शराब तस्कर और अवैध शराब की कीमत उन्हें चुकानी पड़ी और एक राजनेता के इशारे पर उन्हें तीन महीने से पहले ही स्थानांतरित कर दिया गया.
शहर के ढन मोहल्ला, बस्ती दानिशमंदां, बस्ती पीरदाद, बस्ती बावा खेल, रतन नगर, न्यू रतन नगर, किशनपुरा, काजी मंडी, कैंट समेत जाने कितने ऐसे इलाके हैं जहां अवैध शराब का कारोबार बेरोकटोक चलाया जा रहा है. पुलिस इसके खिलाफ कार्रवाई करने से भी डरती है. बताया जाता है कि यहां जो अवैध शराब बेची जा रही है, उसकी बड़ी खेप एक नेता की ही शराब फैक्टरी से आती है. इसके बाद जालंधर और करतारपुर में इसे छोटे छोटे तस्करों के जरिए बेच दिया जाता है. पुलिस कार्रवाई के नाम पर इन छोटे तस्करों को गिरफ्तार कर लेती है लेकिन गहराई से जांच कर यह पता लगाने की कोशिश नहीं करती कि आखिर ये शराब साई कहां से जा रही है. असल माफिया कौन है? पुलिस प्रशासन शायद यह भूल जाता है कि सिर्फ पत्ते काटने से कुछ नहीं होगा. जब तक का सफाया नहीं होगा तब तक पत्ते तो रोज नए नए आते रहेंगे. जालंधर के इस शराब के कारोबार का केंद्र बिंदु एक नेता ही है. अगर पुलिस उसे गिरफ्तार कर ले तो जालंधर की जनता को इन इन कारोबारियों से निजात जरूर मिल जाएगी.

विभिन्न जिलों में जहरीली शराब से हुई मौतों के बाद जालंधर में भी अवैध शराब के खिलाफ अभियान तेज करने की जरूरत पुलिस को है. अगर ऐसा नहीं किया गया तो जालंधर में भी लाशों के लगने तय हैं और इसकी जिम्मेदारी सिर्फ पुलिस की होगी.

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