विचार

ये हैं इलाहाबाद की अमृता प्रीतम, आज है जन्मदिन, जानिये क्या है खास?

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प्रयागराज : 1954 में जन्मी हिंदी की सुपरिचित कथा लेखिका और वरिष्ठ रंगकर्मी अनीता गोपेश का आज जन्मदिन है, अनीता आज के दिन किसी विशेष उत्सव के मनाए जाने के प्रति आग्रह शील नहीं हैं लेकिन परिवार का दिल है कि मानता नहीं. जो कुछ भी थोड़ी बहुत खुशियां इस मौके पर परिवार के सदस्य मिलजुल कर मनाते हैं अनीता इसे ही सौभाग्य मानती हैं. हां, अपने पापा का जन्मदिन मनाने में अनीता कोई कोताही नहीं करती बल्कि जितने अच्छा से उसे मनाया जाना चाहिए अनीता पूरे मन से उसे मनाती हैं. अनीता को देखकर आज कोई यह कह नहीं सकता कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय में इतनी लंबी नौकरी करने के बाद वह सेवानिवृत्त हो चुकी हैं. उनकी  कहानी कित्ता पानी  काफी चर्चित हुई.

उनका व्यक्तित्व लगातार निखरता जा रहा है. अनीता मानवीय सद्गुणों से भरी पूरी है. इसकी छाया हमें उनकी कहानियों और उनके महत्वपूर्ण वक्तव्य में देखने को मिलती है। अनीता प्रेम पूर्ण बनी रहती हैं उनका गुस्सा भी बड़ा मजेदार होता है. लगता ही नहीं कि उन्हें गुस्सा भी आ रहा है. कुछ बुरा लगता है तो वहां से हट जाती हैं. दूसरे को समझाने से ज्यादा उन्हें अपने को समझाना पसंद है. अनीता मेरी 40 साल पुरानी मित्र हैं. मुझे इस बात का गर्व है कि वह मेरी दोस्त हैं. बहुत प्यारी दोस्त. मेरी हमराज भी मेरे बारे में बहुत सी बातें सिर्फ उसे पता हैं. अनीता इलाहाबाद की अमृता प्रीतम है. उनके व्यक्तित्व में भी वही सादगी दिखाई देती है जो अमृता जी में थी. उनसे अमृता को लेकर मेरे झगड़े होते ही रहे हैं. हम असहमत रहे हैं बहुत ज्यादा लेकिन हमने एक दूसरे के विचारों का बहुत सम्मान भी किया है. असहमति अपनी जगह है और बोलने की आजादी अपनी जगह. हम हर स्थिति में एक दूसरे का सम्मान करते हैं और एक दूसरे के अधिकारों की रक्षा करना अपना कर्तव्य समझते हैं. शायद यही वजह है कि हमारी मित्रता 40 वर्ष की हो गई और हमें इसका एहसास तक नहीं है. गोपीकृष्ण गोपेश के समय से ही यह परिवार मेरा अपना परिवार रहा है और अनीता ने मेरी इस भावना का हमेशा सम्मान किया है. जन्मदिन के अवसर पर मैं उसे बहुत सारी शुभकामनाएं देता हूं. उसके लंबे सार्थक जीवन के लिए प्रार्थना करता हूं और यह कह कर खुश होता हूं कि अनीता अद्वितीय है. मैं आज तक उनका विकल्प नहीं तलाश पाया.

कुछ कहा नहीं कुछ सुना नहीं अजीब कशमकश रही
कह देते तो यह जिंदगी उपन्यास हो जाती
(साभार : अजामिल व्यास की फेसबुक वॉल से)

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