न्यायमूर्ति प्रकाश सिंह के यहां ,निर्मला देवी को घरेलू काम करते, 6 वर्ष बीत चुके थे। इन 6 सालों में इतना तो जान चुकी थी ,कि साहब थोड़े से ऐय्याश किस्म के आदमी और मालकिन सविता जी बहुत ही पूजा पाठ वाली सीधी साधी महिला हैं।
एक दिन निर्मला की बेटी सीता, इतवार को कुछ लेने निर्मला के पास आई और जज साहब ने मौका देख कर, उसे बहला फुसलाकर ,उसके साथ अलग कमरे में, कुछ सूंघा कर बलात्कार कर दिया।सीता बहुत ही स्वाभिमानी लड़की थी।उससे यह अपमान कतई सहन नहीं हुआ।उसने जाकर घर के पासके कुँए में कूदकर आत्महत्या कर ली। 16 वर्ष की सीता ,निर्मला की जान थी।मरने से पहले सच्चाई रोते हुए बस्ती में बताई थी उसने।
निर्मला को जब घर जाकर यह जानकारी मिली तो होश हवास उड़ गए और उसने एक कठोर निर्णय लिया।अगले दिन वह सामान्य रूप से ही ,दैनिक कार्य पर गई।जज साहब आज अदालत में थे।उनके घर में किसी को भी कोई जानकारी नहीं थी ,कि उनके घर के ऊपर के बंद कमरे में, कल क्या घटित हुआ था।जज साहब के दो बच्चे थे।लड़का 7 वर्ष का मानव स्कूल गया था और लड़की 2 साल की मानवी घर में खेल रही थी।
निर्मला देवी वास्तव में बहुत ही सह्रदय स्त्री थी, लेकिन आज उसने अपने मन एक दृढ़ निश्चय ठान लिया था।ऐसा कठोर कदम ,जो स्वप्न में भी नहीं सोचा था।
उसने किसी बहाने से मानवी को बुलाया और सब इंतिज़ाम पहले ही कर किया था और वह मानवी को लेकर एक अज्ञात स्थान पर चली गई।पति की मृत्यु कोई 8 वर्ष पूर्व हो चुकी थी।
एक अकेली सीता ही उसके जीने का सहारा थी और वो भी अकाल मृत्यु को प्राप्त हो चुकी थी।घर में कोई नहीं था।वैसा ही बंद घर छोड़कर वह किसी बड़े शहर में उसी रोज़ पहुंच गई।जज साहब विक्षिप्त हालत में पहुंच गए थे।पुलिस कुछ भी नहीं कर पा रही थी।मालकिन सविता जी का रो रो कर बुरा हाल था ,लेकिन उनको भी सीता की मृत्यु और उसके साथ हुये जघन्य अपराध की जानकारी मिली और वह
नाराज़ होकर पति का परित्याग कर बेटे को लेकर, मायके चली गई।
इधर जज साहब की इज़्ज़त का, फजीता हो गया था और अदालत में उनका दबदबा कायम नहीं रहा।और समय बीतता गया।कई वर्ष बाद, एक दिन न्यायमूर्ति प्रकाश सिंह ,एक हत्या के मुकदमे में ,बहुत बड़ी रिश्वत लेने के आरोप में गुप्तचर पुलिस द्वारा धर दबोच लिये गये।उनके सेवानिवृत्ति में लगभग एक वर्ष ही शेष था।
उधर निर्मला देवी ने मानवी को खूब पढ़ाया लिखाया ,संस्कारी बनाया और जब वह बड़ी हो गई तो उसने सब पुरानी कहानी उसके लिए बता दी थी।मानवी भी जज बन चुकी थी और प्रकाश सिंह का मुकदमा उसकी अदालत में ही लगा था। अपने पिता के नाम से वह परिचित थी और उसने पता कर लिया कि वही हैं लेकिन जाहिर नहीं होने दिया।बहुत दबाव था उसके ऊपर लेकिन उसकी कलम से सजा ही लिखी गई और जज साहब10 वर्ष के लिए भीतर हो गए।
एक वर्ष बाद ,मानवी का विवाह किसी जज लड़के से तय हुआ और मानवी विवाह के पहले अपनी असली माँ के पास गई और निर्मला देवी व उसने सविता जी को सब बात बताई। सविता सब कुछ समझ कर मानव बेटे के साथ विवाह में आई भी ,आशीर्वाद दिया और उसके पश्चात सविता जी,मानवी, उसके पति,निर्मला, और बेटे मानव के साथ जेल में अपने पति भूतपूर्व न्यायमूर्ति प्रकाश सिंह से मिलने गये।वास्तव में
जज साहब की आँखे खुली की खुली रह गई और जीवन क्या है।दुष्कर्म क्या है।कर्म क्या है और अपने ऊपर आत्म ग्लानि के कारण वह निगाह नहीं मिला पा रहे थे।
निष्कर्ष व कथा बोध
केवल जन्म देना ही पर्याप्त नहीं है।पालना और अच्छे संस्कार देना और अच्छे बुरे की समझ देना और बात है।जब कोई भी सही व्यक्ति ( इस कहानी में मानवी) न्यायपीठ पर विराजित होता है ,तो ईश्वर उसके भीतर समाहित हो जाते हैं और सब रिश्ते नाते न्याय के पीछे रह जाते हैं और केवल न्याय ही होता है।इस कहानी यह बात पुनः रेखांकित होती है इसी जन्म में करनी का फल अवश्य मिलता है चाहे अपनी ही औलाद से मिले.