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पहली ही परीक्षा में फेल साबित हुए सपा जिला अध्यक्ष अगम मौर्या

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नीरज सिसौदिया, बरेली
बरेली-मुरादाबाद शिक्षक खंड निर्वाचन एमएलसी चुनाव के नतीजे बरेली समाजवादी पार्टी के सियासी भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं हैं. इस चुनाव में करीब आठ हजार वोटों से सपा प्रत्याशी को जो हार का सामना करना पड़ा है उससे समाजवादी पार्टी में बिखराव का असर भी कहा जा सकता है. वहीं, बरेली के सपा जिला अध्यक्ष अगम मौर्या के लिए बेहद निराशाजनक कहा जाएगा. सियासी जानकार अगम मौर्या को पहली ही परीक्षा में फेल करार दे रहे हैं. उनका मानना है कि अगम मौर्या वर्ष 2022 में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव के सेमिफाइनल में बुरी तरह फेल साबित हुए हैं. साथ ही इस हार का एक कारण पार्टी में बिखराव को भी मानते हैं.
दरअसल, समाजवादी पार्टी के पूर्व जिला अध्यक्ष और पूर्व राज्य सभा सांसद वीरपाल सिंह यादव बरेली मंडल की सियासत में ऊंचा कद रखते थे. कहने को तो वीरपाल सिंह बरेली के जिला अध्यक्ष थे लेकिन पूरे मंडल की सियासत उन्हीं के इर्द गिर्द घूमती थी. अगम मौर्या अभी उस मुकाम को हासिल नहीं कर सके. साथ ही भाजपा की रणनीति को भी नहीं समझ सके. हालांकि इस हार के लिए अगम मौर्या को ही पूरी तरह जिम्मेदार ठहराना सही नहीं है. इस हार के कई जिम्मेदार हैं लेकिन अगर मौर्या के लिए यह एक मौका था जिसमें वह खुद को एक सफल जिला अध्यक्ष के रूप में साबित कर सकते थे लेकिन अगम ऐसा नहीं कर सके. भाजपा प्रत्याशी हरी सिंह ढिल्लों ने सपा उम्मीदवार संजय मिश्रा को चारों खाने चित कर दिया.
एमएलसी चुनाव ने यह साबित कर दिया है कि बरेली में सपा अभी बुद्धिजीवी वर्ग का भरोसा हासिल नहीं कर सकी है. एमएलसी चुनाव में बुद्धिजीवी वर्ग ही मतदाता होता है और अबकि बार रिकॉर्ड तोड़ वोटिंग भी हुई. रिकॉर्ड तोड़ वोटिंग जब भी हुई बदलाव लेकर आई. खास तौर पर सत्ताधारी पार्टी के लिए रिकॉर्ड तोड़ वोटिंग हमेशा नुकसानदायक रही है. लेकिन एमएलसी चुनाव में भाजपा प्रत्याशी हरी सिंह ढिल्लों की जीत ने यह साबित कर दिया है कि समाज के बुद्धिजीवी वर्ग को अभी भी मोदी और योगी पर विश्वास है. जनता का यह विश्वास आगामी विधानसभा चुनाव में सपा के लिए घातक साबित हो सकता है. सपा को अब यह समझ लेना चाहिए कि अगर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी से उसका गठबंधन नहीं हुआ और पूरा विपक्ष एकजुट नहीं हुआ तो आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा एक बार फिर जीत का इतिहास दोहराएगी और सपा सत्ता से हमेशा के लिये दूर हो जाएगी. बहरहाल, यह देखना दिलचस्प होगा कि सपा इस हार से क्या सबक लेती है.
साथ ही सपा को अगर मौर्या जैसे कमजोर नेतृत्व को बदलने अथवा मजबूती देने पर भी विचार करना होगा. क्योंकि बरेली में समाजवादी पार्टी पहले ही भगवत शरण और अताउर्रहमान के गुटों में बंट चुकी है. तीसरा खेमा वह भी है जो वीरपाल समर्थक है लेकिन प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का हिस्सा नहीं बना है. इसके अलावा कुछ और छोटे छोटे गुट भी सपा की नैया डुबो सकते हैं.

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