नीरज सिसौदिया, बरेली
किस्मत ने उन्हें जख्म दिये और सरकारी व्यवस्था उन जख्मों को कुरेदने में लगी है. गरीबों और बेबसों को ठंड से बचाने के लिए रैन बसेरों, कंबल वितरण और अलाव की व्यवस्था करने के नाम पर हर साल करोड़ों रुपये का सरकारी फंड तो खपाया जाता है लेकिन बरेली शहर में ये इंतजाम हमेशा नाकाफी ही साबित होते रहे हैं. इस बार भी शहर की स्थिति कुछ ऐसी ही शर्मसार करने वाली है. रैन बसेरे भी बने हैं लेकिन वहां गिने चुने लोग ही रह सकते हैं. सरकारी अलाव की व्यवस्था दूर दूर तक नजर नहीं आ रही. कंबल वितरण तो फिलहाल कागजों में ही हो रहा है. स्कूली बच्चों को जो स्वेटर बांटे गए हैं उनमें भी खेल हो रहा है. ऐसे में डा. प्रमेंद्र माहेश्वरी और दीक्षा सक्सेना जैसे कुछ समाज सेवियों की वजह से कुछ बेबस गरीबों को सर्द रातों में राहत पहुंचा रही हैं.
कहते हैं दुनिया बदलने का सफर लाखों मीलों का है. अगर हम चंद कदमों का फासला भी तय कर लें तो हजारों बेबसों की तकदीर बदल सकती है. डा. प्रमेंद्र माहेश्वरी और दीक्षा सक्सेना जैसे कुछ समाजसेवी कुछ ऐसा काम कर रहे हैं. वे भले ही पूरी दुनिया नहीं बदल पा रहे लेकिन बदलाव के इस सफर में चंद कदमों का फासला तय कर कुछ जरूरतमंदों का सहारा जरूर बन रहे हैं.
डा. प्रमेंद्र माहेश्वरी पेशे से डाक्टर हैं और एक निजी अस्पताल भी संचालित कर रहे हैं. वैसे तो शहर में कई डॉक्टर हैं जिनकी आमदनी करोड़ों में है लेकिन उनमें से कई डॉक्टर गरीबों से दूरी बनाना ही बेहतर समझते हैं. अगर परिजन अस्पताल के बिल के दो-चार हजार रुपए न दे पाएं तो अस्पताल वाले लाश तक नहीं ले जाने देते लेकिन डा. प्रमेंद्र माहेश्वरी समाज सेवा के क्षेत्र में भी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं. डॉक्टरों को धरती का भगवान भी कहा जाता है क्योंकि वे इंसानों को दूसरी जिंदगी देते हैं. इन्हींं में से एक डा. प्रमेंद्र माहेश्वरी भी हैं.
प्रमेंद्र माहेश्वरी अस्पताल में मरीजों को जिंदगी तो देते ही हैं, साथ ही सड़क किनारे बसर करने वालों के लिए भी मसीहा से कम नहीं. ठंड का प्रकोप बढ़ा तो डॉक्टर प्रमेंद्र माहेश्वरी अपनी टीम के साथ कंबल लेकर निकल पड़े और जहां भी ठंड से ठिठुरते लोग नजर आए उन्हें कंबल दान कर दिया.
इसी राह पर दीक्षा सक्सेना भी निकल पड़ी हैं. दीक्षा सक्सेना सृजन वेलफेयर सोसाइटी के नाम से एक सामाजिक संस्था चलाती हैं. कुछ अन्य सामाजिक संगठनों से भी जुड़ी हैं. इन सर्दियों में दीक्षा सक्सेना भी गरीबों और जरूरतमंदों की मददगार साबित हुई हैं. गरीबों को कंबल बांटना और गर्म कपड़े देना तो अलग बात है, दीक्षा ने सबसे बड़ा काम जो किया है वह नगर निगम और कई निगम पार्षद भी नहीं कर पाये हैं. दीक्षा ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर कई जगहों पर अलाव जलवाए जिससे राहगीरों के साथ ही सड़क किनारे बसर करने वालों को भी राहत मिली.
आगामी 25 दिसंबर को उनकी सोसाइटी गरीबों और जरूरतमंदों के लिए गर्म कपड़े और कंबल वितरण कार्यक्रम आयोजित करने जा रही है. इसके लिए दीक्षा स्वयं तो प्रयास कर ही रही हैं.साथ ही संभ्रात लोगों से भी सहयोग की अपील कर रही हैं. सबसे अच्छी बात यह है कि दीक्षा यह सहयोग अपने लिए नहीं बल्कि गरीबों और बेबसों के लिए मांग रही हैं.
इनके अलावा राष्ट्रीय सेवा योजना से जुड़ी अर्चना राजपूत का जिक्र भी यहां बेहद जरूरी हो जाता है. अर्चना का व्यक्तित्व यह दर्शाता है कि समाजसेवा का ठेका सिर्फ अमीरों का ही नहीं है बल्कि जिसकी जितनी क्षमता हो वो उसके अनुसार लोगों की मदद कर सकता है. अर्चना राजपूत को हाल ही में एक सब्जी मंडी में चाय बांटते हुए देखा गया था. उनकी चाय सब्जी मंडी में आने वाले हर शख्स के लिए थी. फिर चाहे वह शख्स अमीर हो या गरीब.
बहरहाल, ये चंद उदाहरण उन तथाकथित समाजसेवियों को जगाने के लिए काफी हैं जो इस कड़ाके की ठंड में रजाई में लिपटे हुए हैं लेकिन समाजसेवा के नाम पर या तो लोगों से चंदा वसूलते या सरकारी पैसे की बंदरबांट करते हैं.