नीरज सिसौदिया, बरेली
सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट की भूमि पर इनवर्टिस इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज द्वारा अवैध कब्जे के मामले में अब एक ऐसा पत्र सामने आया है जो न सिर्फ मेयर डा. उमेश गौतम द्वारा नगर निगम के सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट की भूमि पर अवैध कब्जे की पुष्टि करता है बल्कि यह भी साबित करता है कि मेयर ने अवैध रूप से कब्जाई गई नगर निगम की भूमि के बदले अन्यत्र भूमि या कब्जाई गई भूमि का उचित मूल्य देने की पेशकश भी नगर निगम को उस वक्त की थी जब वह मेयर नहीं थे. नगर निगम ने इससे इनकार कर दिया था. इंडिया टाइम 24 के हाथ यह चिट्ठी लगी है. 18 फरवरी 2006 में लिखे गए नगर आयुक्त को संबोधित इस पत्र में लिखा है कि प्रार्थी इनवर्टिस इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज बरेली का चेयरमैन है. प्रार्थी के संस्थान और नगर निगम की भूमि रजऊ परसपुर में बराबर-बराबर स्थित है आपने 30 मार्च 2005 को एक पत्र के माध्यम से 1815 वर्ग मीटर भूमि मेरे संस्थान के कब्जे में बताकर खाली करने को कहा था. इसके बाद प्रार्थी ने माननीय जिलाधिकारी महोदय से प्रार्थना करके उपजिलाधिकारी फरीदपुर से पैमाइश कराने की मांग की थी. जिसके अनुपालन में उप जिलाधिकारी फरीदपुर द्वारा 24 जून 2005 को पैमाइश कराई गई जिसमें किसी प्रकार का कोई कब्जा नहीं पाया गया. इसके बाद माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद के आदेश पर कराई गई विस्तृत जांच में 0.590 हेक्टेयर भूमि पर संस्थान का कब्जा पाया गया एवं इसी रिपोर्ट में 0.134 हेक्टेयर प्रार्थी की भूमि पर किसानों का कब्जा पाया गया है. आप से निवेदन है कि 0.490 हेक्टेयर भूमि का जो भी उचित मूल्य हो प्रार्थी से ले लें अथवा प्रार्थी की भूमि गाटा संख्या 30 जो नगर निगम की भूमि से लगी है उसमें से 0.590 हेक्टेयर भूमि ले लें. मान्यवर प्रार्थी के कब्जे में जो 0.590 हेक्टेयर भूमि दिखाई गई है उसमें से करीब 800 वर्ग मीटर भूमि पर दो भवन निर्मित हैं जो कि तीन मंजिल बने हैं उनमें कंप्यूटर प्रयोगशाला है तथा सेमिनार हॉल आदि बने हुए हैं इन वाहनों के आगे राष्ट्रीय राजमार्ग की तरफ राजमार्ग के नियमानुसार करीब 20 मीटर भूमि छोड़ी गई है व भवन के साइड में नगर निगम की भूमि की ओर से तीन मंजिल के हिसाब से करीब 10 मीटर का सेट बैक भी छोड़ा गया है.
♦
आपसे निवेदन है कि उपरोक्त कोई भी निर्णय लेने से संस्थान में पढ़ रहे छात्र छात्राओं के शैक्षणिक वातावरण को कोई क्षति नहीं होगी आपसे विनम्र निवेदन है कि जब तक उपरोक्त कार्यवाही पर कोई निर्णय न हो तब तक आगे किसी भी प्रकार की तोड़फोड़ की कार्यवाही न करने हेतु अपने अधीनस्थों को निर्देशित करने की कृपा करें.
इस पत्र की प्रतिलिपि सचिव नगर विकास लखनऊ आयुक्त बरेली मंडल बरेली जिलाधिकारी प्रशासक नगर निगम बरेली को भी भेजी गई थी. यह पत्र उस समय पत्र लिखा गया था जब उमेश गौतम बरेली के मेयर नहीं थे. अब सवाल यह उठता है कि अगर उमेश गौतम ने बरेली नगर निगम की जमीन पर अवैध कब्जा किया ही नहीं था तो फिर वह कब्जा की गई जमीन के बदले में जमीन या जमीन का मूल्य देने को क्यों तैयार थे?
चूंकि वर्ष 2007 में प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की सरकार थी और उमेश गौतम बहुजन समाज पार्टी में थे इसलिए कांग्रेस की तत्कालीन मेयर सुप्रिया ऐरन भी उनके खिलाफ लाख कोशिशों के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं कर पाई थीं. इसके बाद सपा सरकार में आजम खान ने निगम को कार्रवाई के निर्देश दिए थे लेकिन तब तक उमेश गौतम अदालत का दरवाजा खटखटा चुके थे| इसके बाद उमेश गौतम पर तलवार लटकती उससे पहले ही वह भाजपा में शामिल हो गए और बरेली के मेयर बन गए. अब जब सैंय्या भए कोतवाल तो डर काहे का… वाली कहावत यहां भी चरितार्थ हो गई. मेयर बनने के बाद उमेश गौतम के हाथ तो जैसे अलादीन का चिराग लग गया. तत्कालीन नगर आयुक्त ने निगम के साथ ही खेल कर दिया. जमीन कब्जा मुक्त कराने की बजाय सुप्रीम कोर्ट से केस ही वापस ले लिया. फिर नए नगर आयुक्त आए तो उन्होंने मेयक के इशारे पर नाचने से इनकार कर दिया. उनका भी तबादला कर दिया गया. फिर अभिषेक आनंद नगर आयुक्त बनाए गए तो उन्होंने भी मेयर के खिलाफ रिपोर्ट बनाकर उन्हें बेनकाब कर दिया. अब अभिषेक आनंद भी यहां कब तक टिक पाते हैं यह देखना दिलचस्प होगा.
वहीं, इस संबंध में जब मेयर डा. उमेश गौतम से बात की गई तो उन्होंने इस पत्र पर सवालिया निशान खड़े कर दिए. उन्होंने कहा कि ऐसा कोई भी पत्र उन्होंने कभी नहीं लिखा. फिर उन्होंने कहा कि इस पत्र में पैसे वाली कोई बात नहीं है. कहा कि ये पत्र 2006 का है और 2006 में नगर निगम ने अग्रसेन कॉलेज व नगर निगम की बाउंड्रीवॉल तोड़कर अपना कब्जा ले लिया था. यानि मेयर मानते हैं कि इनवर्टिस ने अवैध कब्जा किया था और निगम ने बाउंड्रीवाल तोड़कर अपना कब्जा ले लिया था. इसके बाद मेयर कहते हैं कि कब्जा अग्रसेन कॉलेज का था उसका नाम कोई क्यों नहीं लिखता? उनसे पैसा खा रखा है?
पल-पल बदलते मेयर के बयान यह स्पष्ट करते हैं कि दाल में कुछ काला जरूर है वरना मेयर के तेवर और बयान इस तरह नहीं बदलते. वहीं नगर निगम ने कोर्ट में इस पत्र को सबूत के तौर पर भी पेश किया है. बहरहाल इस मामले पर उमेश गौतम चौतरफा घिरते नजर आ रहे हैं. विपक्षी भी जल्द ही पत्रकार वार्ता के माध्यम से कई अहम खुलासे करने की तैयारी में जुट गए हैं.