नीरज सिसौदिया, बरेली
मिशन मार्केट में डा. अनुपमा राघव को आवंटित तीन दुकानों के मामले में नगर निगम बरेली के अधिकारी लगातार किरकिरी कराने में लगे हैं. पहले बिल्डरों को लाभ पहुंचाने के लिए मिशन मार्केट में अलॉट की गईं 50 से भी अधिक दुकानों में से सिर्फ डा. अनुपमा राघव की ही तीन दुकानों को निशाना बनाया गया. जब मामले में हाईकोर्ट ने स्टे दे दिया तो अब सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई जानकारी में भी खेल कर दिया गया.
दरअसल, खजाना कोठी फूल बाग किला निवासी महेश पांडेय ने सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत जानकारी मांगी थी कि वरिष्ठ अधिवक्ता शशिनंदन को याचिका संख्या 18961/2020 अनुपमा राघव बनाम स्टेट ऑफ यूपी व अन्य नगर निगम की ओर से कितनी राशि में नियुक्त किया गया. उन्हें किस मद से भुगतान किया गया. इसके जवाब में नगर निगम ने कहा है कि वरिष्ठ अधिवक्ता शशिनंदन को निगम की ओर से नियुक्त ही नहीं किया गया है और न ही उन्हें किसी प्रकार की धनराशि का भुगतान किया गया है. आरटीआई के तहत दिए गए जवाब में निगम ने स्पष्ट रूप से कहा कि नगर निगम बरेली द्वारा अपने अधिवक्ताओं के अलावा वरिष्ठ अधिवक्ता नियुक्त नहीं किया गया है.
सपा के वरिष्ठ नेता एवं जिला सहकारी संघ के पूर्व चेयरमैन महेश पांडेय ने बताया कि नगर निगम की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शशिनंदन को कई बार हाईकोर्ट में पैरवी के लिए अपेयर किया गया. पहली बार वह 21 नवंबर 2020 को अपेयर हुए थे. इसके बाद 11 दिसंबर 2020 को अपेयर हुए, फिर 15 जनवरी 2021 को अपेयर हुए. उन्होंने कहा कि शशिनंदन सिंह की एक अपेयरेंस की फीस लगभग ढाई लाख रुपये है. हाईकोर्ट में निगम के वकील नमित श्रीवास्तव ने खुद नोट में लिखा था कि उनकी ओर से शशिनंदन केस की पैरवी करेंगे. इसके बाद शशिनंदन कई बार अपेयर हुए लेकिन नगर निगम के जन सूचना अधिकारी ने आरटीआई के तहत दी गई जानकारी में कहा है कि शशिनंदन को निगम ने नियुक्त ही नहीं किया और न ही उन्हें कोई धनराशि दी गई है. नगर निगम के जन सूचना अधिकारी द्वारा आरटीआई के तहत गलत जानकारी देने का यह कृत्य धोखाधड़ी और कूट कपट के अपराध की श्रेणी में आता है.
महेश पांडेय ने यह भी सवाल उठाया कि जिन दुकानों का किराया मात्र तीन से चार सौ रुपये है उनके लिए ढाई लाख रुपये प्रति अपेयरेंस फीस लेने वाले वकील को रखना कितनी समझदारी का काम है? नगर निगम को सिर्फ अनुपमा राघव की तीन दुकानें ही क्यों नियमों के विपरीत नजर आ रही हैं, उसी जगह पर बनी बाकी 50 से भी अधिक दुकानें उन्हें क्यों नजर नहीं आतीं? उनका कहना है कि नगर निगम ये दुकानें तभी ध्वस्त कर सकता है जब वह इस जगह का उपयोग जनहित के कार्यों के लिए करने जा रहा हो लेकिन यहां तो बिल्डरों को फायदा पहुंचाने के लिए सिर्फ अनुपमा राघव की तीन दुकानों को निशाना बनाया जा रहा है. वो भी उस जमीन के लिए जिसका सौदा भी गलत तरीके से किया गया है. उन्होंने कहा कि जब निगम के पास सरकारी वकीलों की फौज मौजूद है तो फिर निजी वकील को माननीय हाईकोर्ट में अपेयर कराना समझ से परे है.
बहरहाल, नगर निगम ने आरटीआई के तहत जो जानकारी दी है उससे यह स्पष्ट हो गया है कि अनुपमा राघव की दुकानों के खिलाफ निगम अधिकारी कोई बड़ी साजिश निजी स्वार्थ के चलते रच रहे हैं.