नीरज सिसौदिया, बरेली
पंचायत का सियासी संग्राम खत्म होते ही बरेली में विधानसभा चुनाव की तैयारियां तेज हो गई हैं. कोरोना काल में दावेदार अपनी तरह से रणनीति बनाने में जुट गए हैं. बात अगर शहर विधानसभा सीट की करें तो इस बार मुस्लिम चेहरे पुरानी परंपरा को बदलने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं. वे चाहते हैं कि इस बार शहर विधानसभा सीट से मुस्लिम उम्मीदवार ही मैदान में उतारा जाए.
दरअसल, शहर विधान सभा सीट भारतीय जनता पार्टी का गढ़ रही है. प्रदेश में चाहे किसी की भी सरकार रही हो पर यहां से विधायक भाजपा का ही रहा है. समाजवादी पार्टी का मानना रहा है कि भाजपा हिन्दू मुस्लिम का खेल खेलकर इस सीट पर कब्जा जमाती आ रही है. इसलिए वह भी यहां से हिन्दू उम्मीदवार ही उतारती आ रही है. इसके बावजूद सीट हारना कई सवाल खड़े करता है. यहां मुस्लिम वोटरों की संख्या भी कम नहीं है. अबकी बार लगभग 41 फीसदी आबादी मुस्लिम बताई जा रही है. मुस्लिम वोटरों का ध्रुवीकरण हो जाए तो बाजी पलट भी सकती है. वैसे तो पिछली बार ही इस सीट से मुस्लिम उम्मीदवार उतारने के प्रयास किए गए थे लेकिन यह सीट गठबंधन में कांग्रेस के खाते में चली गई और प्रेम प्रकाश अग्रवाल गठबंधन के उम्मीदवार बनाए गए. इस बार फिलहाल कोई गठबंधन नहीं हो रहा है. माना जा रहा है कि अगर इस बार गठबंधन होता भी है तो शहर सीट पर कोई समझौता करने को सपा तैयार नहीं होगी. वैसे तो माना जा रहा है कि इस बार भी सपा का टिकट कोई हिन्दू दावेदार ही ले जाएगा लेकिन मुस्लिम दावेदार इससे इत्तेफाक नहीं रखते और टिकट के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं. चूंकि इस बार पूर्व मंत्री आजम खां जेल में हैं तो सपा से टिकट के दावेदारों के लिए यह राह थोड़ी मुश्किल हो सकती है. हालांकि माना जा रहा है कि अबकी बार बाबरी केस की सुप्रीम कोर्ट में पैरवी करने वाले जफरयाब जिलानी की सपा के टिकट आवंटन में अहम भूमिका रहेगी. साथ ही जिले के कुछ बड़े नेता भी अहम किरदार में नजर आएंगे. यही वजह है कि मुस्लिम दावेदार शहर विधानसभा सीट पर इस बार बदलाव की आस लगाए बैठे हैं. बताया जाता है कि खुद महानगर अध्यक्ष शमीम खां सुल्तानी भी चाहते हैं कि इस बार सपा इस सीट से किसी मुस्लिम प्रत्याशी को ही मैदान में उतारे. इसके लिए वह खुद आला नेताओं से पैरवी करने में जुट गए हैं. वहीं, सियासी जानकारों का मानना है कि जिले में इस बार सपा सिर्फ तीन ही सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशियों पर दांव खेलना चाहती है जिनमें मीरगंज, बहेड़ी और भोजीपुरा शामिल हैं. अगर ऐसा हुआ तो शहर और कैंट सीट पर मुस्लिमों का विद्रोह सपा की हार को सुनिश्चित कर सकता है. चूंकि इस बार भाजपा से भी सिटिंग शहर विधायक डा. अरुण कुमार की जगह नए चेहरे को मैदान में उतारने की चर्चाएं तेज हो गई हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि सपा भी किसी नए और निर्विवाद चेहरे को मैदान में उतारेगी. वैसे तो हिन्दू चेहरों में राजेश अग्रवाल और विष्णु शर्मा के सिवाय कोई बड़ा हिन्दू चेहरा सपा के पास फिलहाल इस सीट पर नहीं है लेकिन मुस्लिम चेहरों में जरूर कुछ दावेदार खुलकर सामने आ रहे हैं. इनमें पहला नाम समाजवादी पार्टी के चिकित्सा प्रकोष्ठ के जिला अध्यक्ष डा. अनीस बेग का आता है. डा. बेग मीरगंज के पूर्व विधायक सुल्तान बेग के भाई हैं और शहर के प्रतिष्ठित डाक्टरों में उनकी गिनती होती है. समाजसेवा के क्षेत्र में भी सक्रिय भूमिका निभाने वाले डा. अनीस बेग धर्म के बंधन को फिलहाल तोड़ चुके हैं. उनके दरवाजे मुस्लिमों के साथ ही हिन्दुओं के लिए भी हर वक्त खुले रहते हैं. डाक्टरों की छवि जहां कुछ लोगों की आज लुटेरों वाली हो चुकी है वहीं डा. अनीस बेग अन्य चिकित्सकों के लिए एक मिसाल प्रस्तुत कर रहे हैं. कोरोना काल में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई और पार्टी के हर छोटे बड़े काम में डा. बेग की मौजूदगी पार्टी के प्रति उनके समर्पण को भी दर्शाती है. वह पहले भी शहर विधानसभा सीट से बसपा से चुनाव लड़ चुके हैं. ऐसे में डा. बेग पर दांव खेलने में कोई नुकसान नहीं होगा.
दूसरा चेहरा जो महीनों से शहर विधानसभा सीट पर जोर आजमाइश में लगा है वह ओमेगा क्लासेस के डायरेक्टर मो. कलीमुद्दीन का है. नवाबगंज के एक छोटे से गांव से निकलकर कलीमुद्दीन ने न सिर्फ अपना अलग वजूद स्थापित किया बल्कि ग्रामीण परिवेश की उन बेटियों को नि:शुल्क कोचिंग देकर मेडिकल कॉलेज तक भी पहुंचाया. ऐसी कई बेटियां हैं जो होनहार तो थीं पर गांव में गरीबी के कारण माता-पिता उन्हें डाक्टर बनाने के बारे में सोच तक नहीं सकते थे. कलीमुद्दीन ने ऐसी बेटियों को प्रोत्साहित किया. साथ ही उनके माता पिता को जागरूक कर अपने कोचिंग संस्थान में उन्हें नि:शुल्क कोचिंग देने के साथ ही उनके रहने खाने से लेकर हर तरह की जरूरत पूरी कराई जिस कारण आज ये बेटियां देश के प्रतिष्ठित कॉलेजों से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही हैं. अगर कलीमुद्दीन इनकी मदद नहीं करते तो शायद आज ये बेटियां इस मुकाम को हासिल नहीं कर पातीं. दिलचस्प बात यह है कि कलीमुद्दीन ने हिन्दू मुस्लिम की दीवारों को पार कर हिन्दू बेटियों को भी इस मुकाम तक पहुंचाया है. कलीमुद्दीन का सफर अभी भी जारी है. वह विधायक बनकर युवाओं की तकदीर और विधानसभा क्षेत्र की तस्वीर संवारना चाहते हैं. निर्विवाद चेहरा होने की वजह से उनकी दावेदारी भी मजबूत हो जाती है.

तीसरा बड़ा चेहरा सपा पार्षद अब्दुल कय्यूम मुन्ना का है. मुन्ना लगभग दो दशक से भी अधिक समय से पार्षद बनते आ रहे हैं. मुन्ना की पकड़ काफी मजबूत है और उनकी गिनती पार्टी के दबंग नेताओं में होती है. इसी दबंगई की वजह से उन पर कई तरह के आरोप भी लगते रहे हैं. मुन्ना का बढ़ता कद पार्टी के ही कुछ मुस्लिम नेताओं को रास नहीं आ रहा. यही वजह है कि कुछ मुस्लिम पार्षद भी मुन्ना का अंदरखाने विरोध करते रहते हैं. मुन्ना की दावेदारी भी मजबूत बताई जाती है लेकिन सियासी सूत्र बताते हैं कि महानगर अध्यक्ष के साथ ही मुस्लिम सभासद शमीम अहमद भी नहीं चाहते कि मुन्ना को प्रत्याशी घोषित किया जाए. हालांकि, सियासत में यह सब आम बात है. किसी का विरोध तो किसी का सहयोग होता ही रहता है. ऐसे में मुन्ना की दावेदारी को भी कमजोर नहीं आंका जा रहा.

बहरहाल, टिकट बंटवारे में अभी वक्त है. समाजवादी पार्टी में कुछ नहीं कहा जा सकता कि कब किसे टिकट मिल जाए और कब किसका कट जाए. चूंकि अनिल शर्मा जैसे नेता को चुनाव चिह्न देने के बाद भी पार्टी ने टिकट काट दिया था तो किसी भी दावेदार को यह गलतफहमी बिल्कुल नहीं पालनी चाहिए कि वही पार्टी उम्मीदवार बनेगा.