जिस दिन सूर्य चाँद के पीछे ही छिप जाए
नज़र वास्तविक कोरोना तो नभ में आए।
सूर्य ग्रहण में केवल परत बाहरी दिखती
गोलाई में बाहर निकली ज्वाला टिकती
आगे- पीछे चन्द्र ग्रहण की गाथा लिखती
युग के हाथों जीवन की परिभाषा बिकती
सूर्य ग्रहण जब मुख्य भूमिका यहाँ निभाए
नज़र वास्तविक कोरोना तो नभ में आए।
सूर्य देव की पूजा से हमको मिलता बल
बन किरीट कोरोना जीवन को दे सम्बल
फिर क्यों लोग यहाँ पर करते हैं इतना छल
निकल न पाए इससे आज समस्या का हल
पूजनीय जो बना हुआ वह हमको भाए
नजर वास्तविक कोरोना तो नभ में आए।
भेड़ -बकरियाँ समझ यहाँ पर जिनको हाँका
छले गए जो लोग करेंगे कब तक फाँका
किसी धूर्त ने जब मानव के मन में झाँका
एक वायरस को भी सूर्य देव से आँका
नकली कोरोना क्यों अब धरती पर छाए
नज़र वास्तविक कोरोना तो नभ में आए।
हाय वायरस बना यहाँ पर जब कोरोना
देखा मुकुट पिता का अब अपमानित होना
यम को आया क्रोध पड़ा कितनों को रोना
हुआ दुःखद फिर जीवन से हाथों को धोना
वैदिक धर्म आज हम सबको यही बताए
नज़र वास्तविक कोरोना तो नभ में आए ।
कोरोना के बने समर्थक अरुण देव जब
हुए सारथी सूर्य देव के सच्चे वे तब
कोरोना के पूजक को चिन्ताएँ हों कब
कोरोना की तरह यहाँ पर चमकें हम सब
उसकी महिमा को बोलो अब कौन न गाए
नज़र वास्तविक कोरोना तो नभ में आए।
रचनाकार-उपमेन्द्र सक्सेना एड.
‘कुमुद -निवास’
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