दस शीश हैं
आज तो रावण के
सौ भी शीश हैं
हर स्थान में
रावण मैजूद है
पास मकां में
आज रावण
गुरु ज्ञानी नहीं है
बस हरण
न मानवता
आज के रावण में
है दानवता
प्रलय कारी
भेड़ खाल भेड़िया
है अत्याचारी
है गली गली
कानून व्यवस्था तो
है सड़ी गली
जिम्मेदारी भी
सबको तो निभानी
है बचानी भी
कई लंकेश
बिन लंका घूमें वो
बदले भेष
रावण जला
रावण मरा नहीं
दिखता भला
बैठा अंदर
पहले उसे मारो
हो समुंदर
रावण लीला
आज रोज़ हो रही
न रामलीला
मुख मंडल
राम जैसा पर है
भीतर छल
रचयिता- एस के कपूर “श्री हंस”, बरेली