किसने जहर उड़ेला बोलो, अपनी ही संतान में
लोकतंत्र की उड़ी धज्जियाँ, क्यों अफगानिस्तान में।
माताएँ- बहनें उत्पीड़ित, होती हैं अब खूब वहाँ
सिसक रही हैं वे बेचारी, जाएँ भी तो भला कहाँ
पहुँच न पाएँ आज उस जगह, अपनापन अब मिले जहाँ
उनकी बदहाली की सुनकर, लोग हुए नाराज यहाँ
जो संवेदनहीन हो गए, कैसे रुकें वितान में
लोकतंत्र की उड़ी धज्जियाँ, क्यों अफगानिस्तान में।
लोग घरों में छिपे हुए हैं, पता नहीं क्या हो जाए
कंगाली में आटा गीला, सज्जन तो मुँह की खाए
है आतंकवाद अब छाया, लोग बहुत हैं घबराए
भोले- भालों के जीवन में, सचमुच अब दुर्दिन आए
नष्ट करें आतंकवाद जो, पनपा पाकिस्तान में
लोकतंत्र की उड़ी धज्जियाँ, क्यों अफगानिस्तान में।
मानव- अधिकारों की रक्षा, की आओ हम बात करें
बंदर जैसी घुड़की देने, वालों से हम नहीं डरें
दुष्टों पर भारी पड़ जाएँ, वे फिर पानी यहाँ भरें
लाचारों की पीड़ोओं को, जैसे भी हो आज हरें
तन है कैद मगर मन उनका, लगता हिंदुस्तान में
लोकतंत्र की उड़ी धज्जियाँ, क्यों अफगानिस्तान में।
रचनाकार -उपमेंद्र सक्सेना एड.
‘कुमुद- निवास’
बरेली (उ०प्र०)
मो.- 98379 44187