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एक्टिव हुए भाजपा के दावेदार, शहर में दो तो कैंट में हैं चार, जानिये कौन कितना है दमदार?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
विधानसभा चुनाव को लेकर दावेदारों के बीच खींचतान अब और तेज हो गई है. अभी तक टिकट के लिए अंदरखाने सियासी गोटियां बिछाने वाले भाजपा के दावेदार अब जनता के बीच पैठ बनाने की जुगत में लग गए हैं. कोई राशन के थैलों में तस्वीरें छपवाकर राशन के साथ लोगों के घरों तक पहुंचने लगा है तो कोई पार्टी कार्यकर्ताओं के सहारे मतदाताओं तक पहुंचने की कवायद में जुटा है. भाजपा के दावेदारों की तैयारी जबरदस्त है लेकिन चुनौती खुद को सबसे बेहतर साबित करने की है. समाजवादी पार्टी में जहां थोक के भाव में आवेदन लेने के चलते कुछ ऐसे नेताओं ने भी दावेदारी जता दी है जिनका कोई सियासी वजूद ही नहीं है वहीं, भाजपा के दावेदारों में दिग्गज नेताओं के नाम ही फिलहाल सामने आ रहे हैं. आइये जानते हैं कौन हैं वे भाजपा के दावेदार जो हो सकते हैं पार्टी के उम्मीदवार और कितना कौन है दमदार-

1- डा. उमेश गौतम (125 कैंट विधानसभा सीट)
बरेली के महापौर डा. उमेश गौतम का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है. वैसे तो उमेश गौतम मेयर होने के नाते हमेशा से ही सक्रिय रहते हैं लेकिन पिछले कुछ समय से वह कैंट विधानसभा क्षेत्र पर खासे मेहरबान नजर आ रहे हैं. चाहे बदायूं रोड के नाले का मामला हो, सुभाष नगर पुलिया का मुद्दा हो या पुराने शहर की दुश्वारियों का मुद्दा, उमेश गौतम पूरी तरह से सक्रिय होते हुए समस्याओं का समाधान कराने में जुटे हैं.

गरीब बच्चों के साथ खुशियों के चंद लम्हे साझा करते मेयर डा. उम

पुराने शहर में कई जगहों पर सड़कों के रास्ते मेयर उमेश गौतम भी पहुंच गए हैं. नालियों का निर्माण भी हुआ है और कुछ जगहों पर कुछ दिन पहले ही मेयर उमेश गौतम विकास कार्यों के रिबन काटकर आए हैं.वहीं, राशन के जरिये लोगों के घरों तक पहुंचने में उमेश गौतम ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. नगर निगम के पार्षदों सहित कैंट बोर्ड के पार्षदों को भी महापौर ने अपनी तस्वीर लगे राशन के थैले बंटवाए ताकि उन थैलों में राशन के साथ ही वह भी हर घर तक पहुंच जाएं. मेयर के बारे में कहा जाता है कि वह अगर किसी चीज को हासिल करना चाहते हैं तो उसके लिए हर कीमत अदा करने को तैयार रहते हैं. मेयर का टिकट भी वह बड़े-बड़े दिग्गजों के बीच से निकालकर ले आए थे. उमेश गौतम की कोई पारिवारिक राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं रही. एक पुलिस इंस्पेक्टर के बेटे डा. उमेश गौतम ने जो कुछ भी हासिल किया वह अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर ही हासिल किया है. अब देखना यह है कि विधानसभा का टिकट वह ला पाते हैं या नहीं?
2- संजीव अग्रवाल (125 कैंट विधानसभा सीट)
संजीव अग्रवाल भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश सह कोषाध्यक्ष हैं. सियासत उन्हें अपने पिता से विरासत में मिली थी. एक दौर था जब संजीव अग्रवाल का नाम कैंट विधायक राजेश अग्रवाल के करीबियों में शुमार होता था. दोनों के बीच व्यापारिक रिश्ते भी हैं. संजीव अग्रवाल पेशे से व्यापारी हैं लेकिन शुरू से ही सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रमों में भी सक्रिय भूमिका निभाते रहे हैं. सीमेंट का कारोबार होने के साथ ही लॉ कॉलेज में हिस्सेदार भी हैं. डायमंड सीमेंट का काम करने की वजह से उन्हें संजीव डायमंड के नाम से भी जाना जाता है.

कैंट विधानसभा क्षेत्र में राशन वितरण कार्यक्रम में शामिल संजीव अग्रवाल

संघ में गहरी पैठ रखने वाले संजीव अग्रवाल भी कैंट विधानसभा सीट से ही चुनाव लड़ना चाहते हैं. अभी तक व्यापारिक, धार्मिक और सामाजिक तौर पर दिखने वाली उनकी सक्रियता अब जनता के बीच भी नजर आने लगी है. संजीव अग्रवाल अब खुलकर जनता के बीच नजर आने लगे हैं.
वह ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर खासे सक्रिय नजर आ रहे हैं. अपनी रोजाना की गतिविधियों को वह इन सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर रेगुलर अपडेट भी कर रहे हैं. साथ ही कैंट विधानसभा क्षेत्र में रोजाना कार्यकर्ताओं के बीच बैठकें कर उनकी समस्याओं का समाधान भी तेजी से करवा रहे हैं. वह लोकसभा चुनाव में भी पार्टी के लिए अहम भूमिका निभाते नजर आए थे. इसके अलावा पिछले कई चुनावों में संजीव अग्रवाल ने पार्टी के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. साथ ही जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत बनाने में भी उल्लेखनीय योगदान दे रहे हैं. संजीव अग्रवाल की इस सक्रियता से माना जा रहा है कि वह अब पूरी तरह से मैदान में उतरने का मन बना चुके हैं.
3- मनीष अग्रवाल (125 कैंट विधानसभा सीट)
भाजपा के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष और कैंट विधायक राजेश अग्रवाल अपने सुपुत्र मनीष अग्रवाल को अपनी राजनीतिक विरासत सौंपना चाहते हैं. अचानक से उन्होंने अपने बेटे के लिए कैंट विधानसभा क्षेत्र में सक्रियता बढ़ा दी है जबकि पिछले चार वर्षों से वह क्षेत्र से दूरी बनाए हुए थे. वित्त मंत्री और प्रदेश कोषाध्यक्ष के पद से त्यागपत्र देने के बाद उनकी वरिष्ठता और बढ़ती उम्र को देखते हुए पार्टी ने उन्हें राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष का दायित्व सौंप दिया था.

कैंट विधानसभा क्षेत्र में राशन बांटते मनीष अग्रवाल

मनीष अग्रवाल युवा हैं लेकिन राजनीति में ज्यादा सक्रिय नहीं रहे. वह कारोबार में ही ज्यादा व्यस्त रहे. चूंकि राजेश अग्रवाल की राह में अब उम्र का रोड़ा आ गया है इसलिए वह बेटे मनीष को सियासत की विरासत सौंपना चाहते हैं. इसलिए अब मनीष पिता की सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं लेकिन अपनी कोई बड़ी राजनीतिक उपलब्धि न होने की वजह से उनके समक्ष मुश्किलें आ सकती हैं. हालांकि पिछले कुछ समय से वह एक्टिव हुए हैं.

4- डा. राघवेंद्र शर्मा (125 कैंट विधानसभा सीट)
बरेली की सियासत में डा. राघवेंद्र शर्मा का नाम बेहद सम्मानजनक रूप में लिया जाता है. छात्र जीवन से ही राजनीति में कदम रखने वाले जाने-माने ऑर्थो सर्जन डा. राघवेंद्र शर्मा बदायूं रोड स्थित रामगंगा अस्पताल के मालिक हैं. संघ में गहरी पैठ रखने वाले डा. राघवेंद्र शर्मा वर्तमान में भाजपा ब्रज क्षेत्र के चिकित्सा प्रकोष्ठ के संयोजक भी हैं.

ग्रामीण जनता का हाल जानते डा. राघवेंद्र शर्मा.

पिछले विधानसभा चुनाव में वह बिथरी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन पप्पू भरतौल बाजी मार ले गए. डा. शर्मा ने मेयर के टिकट के लिए भी दावेदारी की थी लेकिन वहां उमेश गौतम बाजी मार ले गए. इस बार डा. राघवेंद्र शर्मा कैंट विधानसभा सीट से टिकट चाहते हैं. समाजसेवा के क्षेत्र में डा. राघवेंद्र शर्मा का नाम काफी बड़ा है. संघ के हर छोटे बड़े कार्यक्रमों में मौजूदगी दर्ज कराते रहे हैं. हालांकि, राजनीतिक चर्चाओं से हमेशा वह दूर ही नजर आए. मगर इन दिनों वह भी चर्चा का केंद्र बने हुए हैं. पहले उनका नाम बिथरी से चर्चा में था लेकिन राजेश अग्रवाल की विरासत संभालने के लिए अब डा. राघवेंद्र शर्मा ने कैंट क्षेत्र में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है.
5- अतुल कपूर (124 शहर विधानसभा सीट)
युवा भाजपा नेता अतुल कपूर की कोई राजनीतिक पारिवारिक पृष्ठभूमि नहीं रही. उनके पिता रोडवेज में तृतीय श्रेणी के कर्मचारी थे. अतुल कपूर ने अपनी जिंदगी में जो मुकाम हासिल किया है वह अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर ही हासिल किया है. पहले उन्होंने व्यापार की राह पकड़ी. व्यापार में सफल होने के बाद उन्होंने सक्रिय राजनीति में कदम रखा और आज उनकी गिनती शहर के सफल राजनेताओं में होने लगी है. वह पहली बार पार्षद का चुनाव लड़े और पहली बार में ही चार बार के विजेता पार्षद को धूल चटाकर नगर निगम सदन का हिस्सा बने.

शहर विधानसभा क्षेत्र में नरेंद्र मोदी की तस्वीर लगे थैले में राशन वितरण करते पूर्व उप सभापति अतुल कपूर

यह अतुल कपूर की काबिलियत ही थी कि पहली बार में ही वह उपसभापति का चुनाव भी जीत गए. कैबिनेट मंत्री सुरेश खन्ना के करीबी माने जाने वाले अतुल कपूर पिछले लगभग ढाई-तीन वर्षों से विधानसभा के टिकट की तैयारी कर रहे हैं. पिछले कुछ समय से वह काफी सक्रिय हो गए हैं. जगह-जगह उनके होर्डिंग और पोस्टर तो लग ही चुके हैं, वह अपनी मौजूदगी भी दर्ज करा रहे हैं. हर छोटे बड़े सामाजिक संगठन के हर छोटे बड़े कार्यक्रम में अतुल कपूर की मौजूदगी ने उनके जनाधार में खासा इजाफा किया है. इन दिनों वह पार्टी कार्यकर्ताओं से लेकर आम जनता तक के पास जा-जा कर बैठकें करने में लगे हुए हैं. जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं वैसे-वैसे अतुल कपूर की गतिविधियां भी बढ़ती जा रही हैं. हालांकि उनका मुकाबला डा. अरुण कुमार जैसे दिग्गज नेता से है. अरुण कुमार का टिकट कटेगा या नहीं यह भी फिलहाल तय नहीं है. फिर भी अतुल कपूर अपनी तैयारी में कोई कसर नहीं छोड़ रहे और खत्री पंजाबी समाज का भी उन्हें पूरा समर्थन मिलने लगा है.
6- राहुल जौहरी (124 शहर विधानसभा सीट)
शहर विधानसभा सीट पर इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा राहुल जौहरी की ही हो रही है. राहुल जौहरी पूर्व स्वास्थ्य मंत्री दिनेश जौहरी के बेटे हैं लेकिन स्थानीय राजनीति में वह कभी सक्रिय नजर नहीं आए. भारत क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के सीईओ रह चुके राहुल जौहरी की केंद्रीय मंत्री अमित शाह के बेटे से नजदीकियों के चलते उन्हें शहर विधानसभा सीट से प्रबल दावेदार माना जा रहा है. शहर की सियासत में अचानक से राहुल जौहरी की एंट्री ने खलबली जरूर मचा दी है.

कोरोना वैक्सीनेशन कैंप में शामिल राहुल जौहरी

राहुल जौहरी की सही मायनों में एंट्री होली के वक्त हुई थी. तब से वह कुछ न कुछ करते आ रहे हैं. पिछले दिनों वह लगातार शहर विधानसभा क्षेत्र में अलग-अलग जगहों पर कोरोना वैक्सीनेशन कैंप लगवा रहे हैं.
इन कैंप के माध्यम से वह जनता के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में लगे हैं. कायस्थ समाज का उन्हें काफी साथ मिल रहा है. जो पार्षद कभी डा. अरुण कुमार के सारथी हुआ करते थे, इन दिनों वे पार्षद राहुल जौहरी का सियासी रथ आगे बढ़ाने में जुटे हुए हैं. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि राहुल जौहरी को अभी अपनी पहचान बनाने में काफी वक्त लगेगा लेकिन टिकट की राह उनके लिए बहुत ज्यादा मुश्किल नहीं लगती.

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