नीरज सिसौदिया, बरेली
समाजवाद का मतलब वैसे तो हर समाज को साथ लेकर चलना है लेकिन समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का समाजवाद बरेली में समाजवाद की इस परिभाषा पुर कितना खरा उतरेगा इसका फैसला भविष्य के गर्त में छुपा है. यहां कैंट और बिथरी विधानसभा सीटों पर दो प्रमुख क्षत्रिय नेताओं ने समाजवादी पार्टी के टिकट की दावेदारी की है. इनमें एक हैं बरेली कॉलेज छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष अनुराग सिंह नीटू तो दूसरे हैं पूर्व विधायक स्व. वीरेंद्र सिंह के करीबी रहे इंजीनियर एके सिंह. दोनों ही नेता अपनी-अपनी बिरादरी के साथ ही अन्य वर्गों में भी अच्छी पकड़ रखते हैं.
दरअसल, समाजवादी पार्टी में अब तक कुंवर सर्वराज सिंह ही बरेली का एकमात्र बड़ा क्षत्रिय चेहरा थे लेकिन अब उनका सपा से मोहभंग हो चुका है. वह सपा को काफी समय पहले ही अलविदा कह चुके हैं. सर्वराज सिंह के जाने के बाद बरेली में सपा की क्षत्रिय राजनीति हाशिए पर चली गई. एक दौर था जब सर्वराज सिंह की जिले में तूती बोलती थी और समाजवादी पार्टी के साथ क्षत्रिय समाज कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होता था लेकिन अब वह दौर खत्म हो चुका है. सर्वराज सिंह की जगह फिलहाल कोई भी चेहरा नहीं ले सका है. वर्तमान में सर्वराज सिंह के करीबियों में शुमार रहे अनुराग सिंह नीटू ने 125 बरेली कैंट विधानसभा सीट सेे समाजवादी पार्टी से टिकट की दावेदारी की है. छात्र संघ अध्यक्ष बनने के बाद से ही नीटू मुख्य धारा की राजनीति में आने के लिए तैयार हो चुके थे. लगभग दो दशक तक सर्वराज सिंह और उनके बेटे के चुनाव में अहम भूमिका निभाने वाले नीटू अबकी बार खुद कैंट विधानसभा सीट से मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं. यही वजह है कि हाल ही में उन्होंने सपा ज्वाइन की और इतनी तेजी से प्रचार प्रसार किया कि चंद दिनों में ही उनका नाम कैंट विधानसभा सीट के बच्चे बच्चे की जुबां पर छा गया है. नीटू की पकड़ समाज के हर वर्ग पर है और अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के प्रदेश पदाधिकारी होने के कारण अपना समाज पहले से ही उनके साथ है. विभिन्न राजनेताओं द्वारा क्षत्रिय समाज का सही आंकड़ा छुपाने पर अनुराग सिंह नीटू आहत नजर आते हैं. वह कहते हैं, ‘किसी भी पार्टी का नेता आलाकमान तक कभी हमारे समाज का सही आंकड़ा प्रस्तुत ही नहीं करता. बिथरी में हमारे लगभग 50 हजार वोटर हैं, कैंट में 30-32 हजार वोट हैं और आंवला में भी लगभग 40-50 हजार वोट क्षत्रिय समाज का है लेकिन अन्य जातियों के नेता आलाकमान को गुमराह कर रहे हैं. इसलिए हमारी अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा ने दो साल पहले ही विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में हमारे समाज की गणना का काम शुरू कर दिया था. इसमें लगभग 40-45 लड़के लगाए गए हैं. जो घर-घर जाकर क्षत्रिय समाज के लोगों का नाम, पता और परिवार के मुखिया का मोबाइल नंबर नोट कर रहे हैं. इन सभी की एक लिस्ट तैयार की जा रही है जिसे जल्द ही एक प्रेस कांफ़्रेंस के माध्यम से सार्वजनिक किया जाएगा.’
वहीं बिथरी से सपा के टिकट के दावेदार इंजीनियर एके सिंह भी इसी आधार पर टिकट मांग रहे हैं.
अगर समाजवादी पार्टी को सवर्णों के वोट चाहिए तो इन दोनों में से किसी एक चेहरे पर दांव खेलना होगा. इनमें अनुराग सिंह नीटू ज्यादा बेहतर इसलिए साबित हो सकते हैं क्योंकि वह छात्र राजनीति से ताल्लुक़ रखते हैं और छात्र किसी जाति या धर्म के नहीं होते. उनका सिर्फ एक ही धर्म होता है जिसे छात्र धर्म कहते हैं. नीटू आज भी छात्रों के बीच गहरी पैठ रखते हैं और बरेली कॉलेज में पूरे जिले के छात्र पढ़ने आते हैं. ऐसे में नीटू को टिकट देने का लाभ पार्टी को जिले की अन्य सीटों पर भी मिल सकता है.
बहरहाल, बरेली में समाजवाद की परिकल्पना को धरातल पर उतारने के लिए समाजवादी पार्टी को कम से कम एक सीट पर तो क्षत्रिय चेहरा उतारना ही होगा. क्योंकि सपा को जीत के लिए हिन्दू वोटों की ज्यादा जरूरत है और हिन्दू समाज की वर्ण व्यवस्था के जो चार पाए हैं उनमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्र और वैश्य ही प्रमुख हैं. जब हिन्दू समाज ने आदिकाल से ही क्षत्रिय समाज को वर्ण व्यवस्था में अहम दर्जा दिया है तो फिर अखिलेश यादव का समाजवाद क्षत्रियों की उपेक्षा कर कैसे पूरा हो सकता है?
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