नीरज सिसौदिया, बरेली
समाजवादी पार्टी के पूर्व महानगर अध्यक्ष, पूर्व डिप्टी मेयर और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के महानगर अध्यक्ष डा. मोहम्मद खालिद ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया है। उन्हें 125 कैंट विधानसभा सीट से प्रत्याशी बनाने की चर्चाएं तेज हो गई हैं। बता दें कि कैंट विधानसभा सीट से कांग्रेस ने पहले सुप्रिया ऐरन को उम्मीदवार बनाया था लेकिन ऐन वक्त पर सुप्रिया साइकिल पर सवार हो गईं। इसके बाद कांग्रेस ने नया दांव खेलते हुए पूर्व डिप्टी मेयर डा. मो. खालिद को पार्टी की सदस्यता दिलाई है। माना जा रहा है कि डा. खालिद कैंट से कांग्रेस प्रत्याशी होंगे। डा. खालिद समाजवादी पार्टी के पूर्व जिला अध्यक्ष वीरपाल सिंह यादव के बेहद करीबी होने के साथ ही उस अंसारी बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं जिसके लगभग 40 से 50 हजार वोटर कैंट विधानसभा सीट पर हैं। डा. खालिद की उम्मीदवारी इसलिए भी सपा का खेल बिगाड़ सकती है क्योंकि डा. खालिद सियासी जोड.-तोड़ में तो बेहद माहिर हैं ही, वह हिन्दू समुदाय में भी गहरी पैठ रखते हैं। साथ ही आईएमसी प्रमुख मौलाना तौकीर रजा पहले ही कांग्रेस को समर्थन देने का ऐलान कर चुके हैं। ऐसे में कैंट सीट का पठान वोट भी कांग्रेस को मिलेगा क्योंकि अन्य किसी भी दल ने यहां से कोई भी मुस्लिम प्रत्याशी नहीं उतारा है।
समाजवादी पार्टी से एकमात्र सबसे मजबूत मुस्लिम प्रत्याशी इंजीनियर अनीस अहमद खां थे लेकिन सपा ने उन्हें भी टिकट नहीं दिया। इतना ही नहीं जिला मुख्यालय में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार न उतारकर सपा ने यहां से मुस्लिम नेताओं के राजनीतिक भविष्य का लगभग अंत सा कर दिया है। बीजेपी के हिन्दुत्व के एजेंडे की काट करने के चक्कर में उसने अपने कैडर वोट की भी जिला मुख्यालय में अनदेखी कर दी। सपा सुप्रीमो के इस फैसले से इंजीनियर अनीस अहमद खां के समर्थक नाराज हैं। खासतौर पर वे मुस्लिम पार्षद जो खुलकर इंजीनियर अनीस अहमद का समर्थन कर रहे थे और ऐतिहासिक मतदाता जागरूकता अभियान में उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे थे। ये पार्षद भी अंदरखाने डा. खालिद के पक्ष में एकजुट हो रहे हैं। ऐसे में अगर कांग्रेस डा. खालिद को उम्मीदवार बनाती है तो मुस्लिम वोटरों का ध्रुवीकरण सपा की जगह कांग्रेस की ओर हो सकता है। ऐसे में मुकाबला दिलचस्प होगा।
बता दें कि डा. खालिद वह शख्सियत हैं जो उस वक्त अपनी राजनीतिक सूझबूझ के चलते डिप्टी मेयर बने थे जब नगर निगम में भाजपा का बहुमत था और सपा के पास सिर्फ 12 वोट थे और प्रदेश में सरकार बसपा की थी। फिलहाल डा. खालिद के साथ ने कांग्रेस में नई जान फूंक दी है। अंदरखाने कई सपा नेता डा. खालिद का समर्थन करने की तैयारी में हैं। ऐसे में इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबले के आसार बनते दिखाई दे रहे हैं और सपा प्रत्याशी सुप्रिया ऐरन की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं।

कांग्रेस में शामिल हुए सपा के पूर्व महानगर अध्यक्ष और पूर्व डिप्टी मेयर, सुप्रिया ऐरन की मुश्किलें बढ़ीं




