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बरेली में नहीं चला सपा का हिन्दू कार्ड, पैराशूट उम्मीदवार भी नहीं आए काम, जानिये कैसे?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
समाजवादी पार्टी का हिन्दू कार्ड बरेली जिले में बिल्कुल काम नहीं आया। यहां कोई भी हिन्दू उम्मीदवार जीत हासिल नहीं कर सका। बहेड़ी और भोजीपुरा सीट पर जो सपा के उम्मीदवार जीते वे दोनों ही मुस्लिम थे। बहेड़ी से अता उर रहमान और भोजीपुरा से शहजिल इस्लाम ने सपा की लाज बचा ली। वहीं, कैंट से पैराशूट उम्मीदवार सुप्रिया ऐरन, बिथरी से अगम मौर्य, आंवला से आरके शर्मा, फरीदपुर से विजयपाल सिंह, शहर से राजेश अग्रवाल और नवाबगंज से भगवत सरन गंगवार भी पार्टी को जीत नहीं दिला सके।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो समाजवादी पार्टी का आधार मुस्लिम-यादव वोट बैंक और उसके नेता हुआ करते थे। बरेली में तो पार्टी को खड़ा करने वाले वीरपाल सिंह यादव ही थे लेकिन अखिलेश यादव ने उन मुस्लिम और यादव नेताओं से ही दूरी बना ली। भाजपा के हिन्दुत्व के एजेंडे को मात देने के चक्कर में अखिलेश यादव ने अपनी जड़ों को ही काट डाला। हालांकि, मुस्लिम वोट एकतरफा सपा के खाते में गया लेकिन वोटिंग प्रतिशत उम्मीद के अनुरूप नहीं रहा। इसकी सबसे बड़ी वजह यह रही कि हिन्दू प्रत्याशी मुस्लिम महिलाओं तक पहुंच बनाने में कामयाब नहीं हो सके। खास तौर पर बरेली महानगर की सीटों पर। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि महानगर की दोनों सीटों पर अखिलेश यादव की ओर से टिकट का वितरण सही तरीके से नहीं किया गया जिसकी वजह से पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। जो उम्मीदवार जी -जान लगाकर चुनाव की तैयारी में जुटे थे उन्हें दरकिनार कर ऐसे नेताओं को उम्मीदवार बना दिया गया जो या तो टिकट मिलने का इंतजार कर रहे थे या फिर पैराशूट लैंडिंग करके आए थे। उदाहरण के तौर पर देखें तो इंजीनियर अनीस अहमद खां और डा. अनीस बेग जैसे नेताओं ने टिकट वितरण से पहले ही चुनावी तैयारी पूरी कर ली थी। बड़ी तादाद में हिन्दू वोटर भी इन नेताओं के साथ खड़ा नजर आ रहा था लेकिन जैसे ही टिकट वितरण का समय आया तो कांग्रेस से आईं सुप्रिया ऐरन को पार्टी नेताओं पर थोप दिया गया। ऐसे में वे कार्यकर्ता निराश हुए जो अपने नेताओं को टिकट मिलने की आस लगाए हुए थे। इंजीनियर अनीस अहमद खां तो लगभग आठ माह से तैयारी कर रहे थे और ऐतिहासिक मतदाता जागरूकता अभियान के लिए अपनी अलग पहचान भी बना चुके थे। वह जानते थे कि अगर 70-75 प्रतिशत मुस्लिम वोट पार्टी को मिल गया तो जीत सुनिश्चित है। चूंकि वह बसपा से सपा में आए थे और कैंट सीट के बसपा के लगभग सभी प्रमुख नेताओं और कार्यकर्ताओं को भी पार्टी में शामिल करा चुके थे इसलिए मुस्लिम और दलित समीकरण के सहारे वह चुनाव जीत सकते थे। इसके लिए उनकी टीमों ने पूरी तैयारी भी कर ली थी लेकिन जब ऐन वक्त पर उनका टिकट काटकर सुप्रिया ऐरन को दे दिया गया तो उनके समर्थक निराश हो गए। एरन ने अपनी रणनीति के अनुसार चुनाव लड़ा। एरन के पास इतना वक्त भी नहीं था कि वह पार्टी में खुद को पूरी तरह एडजस्ट करके कार्यकर्ताओं के दिलों में जगह बना सके। वीवीआईपी नेता होने की वजह से कई कार्यकर्ता तो उनके समक्ष अपनी बात तक नहीं रख पाते थे। एरन का काम उनकी अपनी टीम देखती थी। नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस के बुझे हुए चिराग समाजवादी पार्टी को रोशन नहीं कर सके।
डा. अनीस बेग और इंजीनियर अनीस अहमद खां का टिकट कटने से मुस्लिम कार्यकर्ताओं में भी वह उत्साह देखने को नहीं मिला जो पहले था। उन्हें लगा कि अगर सुप्रिया जीत गईं तो बरेली जिला मुख्यालय से मुस्लिमों की सियासत का अंत हो जाएगा और जिस तरह से कांग्रेस ऐरन परिवार की मोहताज बनकर रह गई थी उसी तरह सपा पर भी ऐरन परिवार काबिज हो जाएगा। ऐसे में मुस्लिम वोट सपा को जरूर मिला लेकिन मुस्लिम इलाकों में औसत वोटिंग प्रतिशत 60% का आंकड़ा भी पार नहीं कर सका। कैंट विधानसभा सीट पर लगभग एक लाख 38 हजार मुस्लिम वोटर थे जिनमें से महज 70 हजार ने ही मतदान किया। सुप्रिया की हार सिर्फ दस हजार वोटों से हुई है। अगर मुस्लिम वोट प्रतिशत ज्यादा होता तो कैंट की सीट सपा के खाते में जा सकती थी लेकिन न तो सपा उम्मीदवार मुस्लिम वोटर्स को बूथ तक लाने में सफल हो सकीं और न ही संगठन। नतीजा यह रहा कि कैंट सीट एक बार फिर सपा के हाथों से निकल गई।
इसी तरह शहर विधानसभा सीट पर डा. अनीस बेग, अब्दुल कय्यूम खां मुन्ना और मोहम्मद कलीमुद्दीन जैसे मुस्लिम नेताओं ने जी-जान से तैयारी की थी लेकिन ऐन वक्त पर राजेश अग्रवाल को टिकट दे दिया गया। राजेश अग्रवाल ने टिकट वितरण से पहले कोई प्रचार प्रसार नहीं किया। इतना ही नहीं टिकट मिलने के बाद भी वह ठीक तरह से लाइमलाइट में नहीं आ सके। खराब मैनेजमेंट के कारण वह आम जनता तक पहुंच बनाने में नाकाम साबित हुए। कई इलाकों में तो मतदाता यह सोच रहा था कि सपा ने उन राजेश अग्रवाल को टिकट दे दिया है जो कैंट से भाजपा से विधायक बने थे। चूंकि कैंट से भाजपा ने संजीव अग्रवाल को टिकट दे दिया था इसलिए सपा ने राजेश अग्रवाल को मैदान में उतार दिया है। ये मतदाता सपा और भाजपा के राजेश अग्रवाल के अंतर को ही नहीं समझ पाए। टिकट मिलने से पहले राजेश अग्रवाल ने प्रचार-प्रसार, सभाओं के आयोजन और मीडिया से दूरी बनाकर रखी और टिकट मिलने के बाद कोविड गाइडलाइन के कारण वह मजबूरी में सभाओं का आयोजन नहीं कर सके। नतीजतन अखिलेश यादव का हिन्दू कार्ड यहां भी फेल हो गया।
तीसरी सबसे महत्वपूर्ण सीट बिथरी चैनपुर की थी। यहां से पूर्व सांसद वीरपाल सिंह यादव के लिए इस बार सुनहरा मौका था। उनके विरोधी दिग्गजों की जगह इस बार सिर्फ नए चेहरे मैदान में थे। मुस्लिम पहले से ही सपा के साथ था और यादव वीरपाल के साथ था। गंगापार के गांवों से भी वीरपाल अच्छे वोट ले जा सकते थे लेकिन पार्टी ने अगम मौर्य को मैदान में उतार दिया जो अपनी बिरादरी के वोट भी हासिल नहीं कर सके। वहीं, वीरपाल के समर्थक खुलकर भाजपा के साथ नजर आए। कोरोना होने के कारण वीरपाल भी उन्हें मनाने बाहर नहीं निकल पाए। शुभलेश यादव जरूर पार्टी के लिए जी-जान लड़ाते नजर आए मगर उनकी मेहनत कोई खास रंग नहीं दिखा पाई।
कुल मिलाकर अखिलेश यादव का मुस्लिम-यादव को दरकिनार कर हिन्दू कार्ड खेलना भारी पड़ गया।

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