नीरज सिसौदिया, जालंधर
पंजाब में एक बार फिर नेशनल हाईवे के विस्तार और चौड़ीकरण के प्रस्ताव में अरबों रुपये के मुआवजा घोटाले की जमीन तैयार होने लगी है। कॉलोनाइजरों, प्रॉपर्टी डीलरों और राज्य सरकार के जिम्मेदार अधिकारियों की मिलीभगत से इस काले खेल को अंजाम दिया जा रहा है। नगर कौंसिल, प्रशासन और पुडा के अधिकारी इसके प्रति बेपरवाह बने हुए हैं। वहीं, कुछ अधिकारियों की मिलीभगत भी इसमें सामने आ रही है। इस पूरे घोटाले का केंद्र बिंदु एनएचएआई से जमीन अधिग्रहण के बाद मिलने वाला घोटाला है।
दरअसल, केंद्र सरकार आम आदमी की सुविधा और पंजाब के विकास के लिए नेशनल हाईवे का विस्तार करने जा रही है। इसके लिए जमीनें भी नोटिफाई कर ली गई हैं लेकिन मुआवजे के आकलन की प्रक्रिया अभी शुरू नहीं की गई है। इसका फायदा अवैध कॉलोनियां काटने वाले कॉलोनाइजर और राज्य सरकार के कर्मचारी उठा रहे हैं। कॉलोनाइजरों और राज्य सरकार के कर्मचारियों का यह गठजोड़ केंद्र सरकार को अरबों रुपये की चपत लगाने की तैयारी कर चुका है। वहीं, नेशनल हाईवे अथाॉरिटी ऑफ इंडिया के अधिकारी भी लापरवाह बने हुए हैं। मुआवजे का यह खेल किस तरह खेला जा रहा है इसे बेहद बारीकी से समझना होगा।
दरअसल, दसूहा और मुकेरियां से नेशनल हाईवे के विस्तार एवं चौड़ीकरण के लिए एनएचएआई द्वारा जमीन नोटिफाई कर ली गई है। जैसे ही इस हाईवे प्रोजेक्ट की भनक इलाके के कॉलोनाइजरों को लगी उन्होंने उक्त हाईवे प्रोजेक्ट की जद में आने वाली खेती वाली जमीन को खरीदकर अवैध कॉलोनियों का रूप दे दिया। कौड़ियों के दाम खरीदी गई जमीन का कई गुना ज्यादा मुआवजा पाने के लिए अधिकारियों को सेट करके इस जमीन का सीएलयू भी करा लिया गया। साथ ही उसमें निर्माण कार्य भी करा लिया गया ताकि मुआवजे के वक्त यह दिखाया जा सके कि इस जमीन पर कॉमर्शियल एक्टिविटी चल रही थी और हाईवे बनने से कई लोगों का रोजगार छिन गया। ऐसे में सरकार से मुआवजे की राशि कई गुना ज्यादा वसूली जा सकेगी। कुछ भ्रष्ट अधिकारी भी इस खेल में कॉलोनाइजरों के साथ हो चुके हैं। वह उक्त अवैध कॉलोनी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। सिर्फ नोटिस की औपचारिकता तक ही सीमित हैं। बात अगर दसूहा से हाजीपुर रोड की करें तो अकेले इस रोड पर ही लगभग डेढ़ दर्जन से भी अधिक अवैध कॉलोनियां डेवलप की जा चुकी हैं। इसके अलावा कई जगह अवैध रूप से इमारतें भी तैयार कर ली गई हैं। एनएचएआई ने जमीन नोटिफाई तो कर ली है लेकिन इस जमीन पर कितना निर्माण हुआ है और उसका कितना मुआवजा दिया जाना है इसकी रिपोर्ट तैयार नहीं की जा सकी है। ऐसे में भूमाफिया और अधिकारियों का यह गठजोड़ केंद्र सरकार को अरबों रुपये की चपत लगाने का इंतजाम कर चुका है। मुआवजे की मोटी रकम लेने के लिए एनएचएआई के अधिकारियों से भी सौदेबाजी की तैयारी की जा रही है। एनएचएआई के कुछ अधिकारियों से सेटिंग के बाद इस राह के सभी रोड़े दूर हो जाएंगे। दिल्ली में बैठे केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी इस पूरे खेल से बेखबर हैं।
ऐसे दिया जा रहा है पूरे खेल को अंजाम
एनएचएआई की ओर से मुआवजा जमीन के कलेक्ट्रेट रेट के आधार पर तय किया जाता है। इसके तहत कृषि भूमि की तुलना में कॉमर्शियल लैंड का कलेक्ट्रेट रेट लगभग तीन गुना हो जाता है। उदाहरण के तौर पर अगर किसी एग्रीकल्चर लैंड का कलेक्ट्रेट रेट एक रुपये प्रति एकड़ है तो सीएलयू कराने के बाद उसका कलेक्ट्रेट रेट लगभग तीन रुपये तक हो जाएगा। अगर सीएलयू कराने के बाद उस जमीन पर किसी भी प्रकार का निर्माण किया जाता है तो उस निर्माण का मुआवजा भी कॉमर्शियल के हिसाब से दिया जाएगा। यही वजह है कि दसूहा और मुकेरियां में प्रस्तावित हाईवे की जद में आने वाली जमीनों को भूमाफिया कौड़ियों के दाम खरीदकर उन्हें अवैध रूप से कॉलोनियों का स्वरूप देने में लगे हैं। इस काले खेल में विभागीय अधिकारी उनका पूरा साथ दे रहे हैं।
क्या कहता है कानून
नियमानुसार जब भी कोई भूमि नेशनल हाईवे के विस्तारीकरण अथवा चौड़ीकरण के लिए नोटिफाई कर ली जाती है तो उसका सीएलयू नहीं किया जा सकता है। ऐसे में अगर किसी भी एग्रीकल्चर लैंड का सीएलयू किया जाता है तो वह कानूनन गलत होगा जिसके लिए संबंधित विभागीय अधिकारी ही जिम्मेदार होगा।
पहले भी हो चुका है ऐसा ही घोटाला
हाईवे निर्माण में ऐसा स्लैम पंजाब में नई बात नहीं है। पहले भी ऐसा स्कैंडल वर्ष 2016-17 में हुआ था जिसमें अधिकारियों की मिलीभगत का खुलासा हुआ था लेकिन मामले को दबाने के लिए कई विभागों के अधिकारी सेट कर लिए गए थे। यह घोटाला करोड़ों रुपये का जालंधर-होशियारपुर फोर लेन रोड स्कैम के नाम से चर्चा में रहा। इस मामले में विजिलेंस ब्यूरो पंजाब ने क्लोजर रिपोर्ट तक दाखिल कर दी थी। लेकिन विजिलेंस की ओर से दाखिल की गई क्लोजर रिपोर्ट को अदालत ने हाल ही में खारिज कर दिया था। अतिरिक्त सेशन जज डा. अजीत अत्री की अदालत ने विजिलेंस ब्यूरो को मामले मामले की विस्तृत जांच करने के आदेश दिये थे। विजिलेंस ब्यूरो की क्लोजर रिपोर्ट दायर करने के अलावा ईडी की ओर से छह आरोपितों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत जालंधर की अदालत में चार्जशीट दाखिल की गई थी।
प्रवर्तन निदेशालय ने विजिलेंस ब्यूरो की इस क्लोजर रिपोर्ट के खिलाफ कड़ी पैरवी की थी। विजिलेंस ने मामले में होशियारपुर के तत्कालीन एसडीएम आनंद कुमार शर्मा, होशियारपुर मार्केट कमेटी के चेयरमैन अवतार सिंह जौहल, अकाली पार्षद हरपिंदर सिंह गिल, जिला को-ऑपरेटिव बैंक के चेयरमैन सतविंदर पाल सिंह, देवीराम, जसविंदरपाल सिंह व प्रदीप गुप्ता सहित सभी आरोपियों को क्लीन चिट दे दी थी। इस मामले में कई उच्च अधिकारियों पर केस दर्ज होने के बाद अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी जिन्हें अदालत ने खारिज कर दिया था। विजिलेंस ब्यूरो ने जून 2019 में अदालतों में ग्रीष्मावकाश के दौरान गुपचुप तरीके से इसे खत्म करने के लिए अतिरिक्त सेशन जज तरनतारन सिंह बिंद्रा की अदालत में दाखिल की थी।क्लोजर रिपोर्ट दायर होने के बाद जपिंदर सिंह, जगरूप सिंह, हरप्रीत सिंह, ओंकार सिंह व सुखविंदर सिंह ने विजिलेंस ब्यूरो क्लोजर रिपोर्ट को झूठ का पुलिंदा बताया था। इसे गलत ढंग से केस को खत्म करने का प्रयास कहा था। उन्होंने अदालत से आग्रह किया था कि क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर आरोपितों के खिलाफ केस चलाया जाना चाहिए। इसके बाद अदालत ने इस क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर दिया है।