नीरज सिसौदिया, जालंधर
वर्ष 2016 में केंद्र सरकार ने जालंधरवासियों को स्मार्ट सिटी का जो सपना दिखाया था वह आज तक पूरा नहीं हो सका है। छह साल में स्मार्ट सिटी का सफर आधी दूरी भी तय नहीं कर पाया है। न सड़कें स्मार्ट हुईं और न ही शहर स्मार्ट बन सका। बर्ल्टन पार्क जैसे प्रोजेक्टों पर भ्रष्टाचार का ग्रहण लगा हुआ है। वरियाणा डंप का कूड़ा आज भी स्मार्ट सिटी को मुंह चिढ़ा रहा है। सोलर पैनल लगे लेकिन बिजली नहीं बन रही। सरकारी इमारतों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का कोई अता-पता नहीं है। पार्कों में आज भी आवारा जानवरों का ही बसेरा है। सियासतदान और आंदोलनकारी अपना-अपना हिस्सा लेकर खामोश हो गए। आम आदमी पार्टी के नॉर्थ विधानसभा क्षेत्र प्रभारी दिनेश ढल्ल उर्फ काली ने बर्ल्टन पार्क स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स के निर्माण में पुरानी ईंटों के इस्तेमाल की ओर इशारा किया था लेकिन वह मामला भी आगे नहीं बढ़ सका। क्या एक हजार करोड़ रुपये सिर्फ बंदरबांट के लिए तय हुए थे? अगर इसी तरह जनता का पैसा बर्बाद करना था तो केंद्र सरकार चुनिंदा लोगों को बुलाकर ही पैसे थमा देती। इस तरह स्मार्ट सिटी का ढिंढोरा पीटने की क्या जरूरत थी? बड़ी हैरानी की बात है कि छह साल में लगभग पांच सौ करोड़ रुपये के प्रोजेक्टों की प्लानिंग ही अमल में नहीं आ पाई और चार सौ करोड़ रुपये के प्रोजेक्टों की तो प्लानिंग ही नहीं हो पाई। शर्म आनी चाहिये भाजपा नेताओं को जो हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर रोज रैलियां निकालने को तैयार रहते हैं लेकिन विकास कार्यों की गड़बड़ी को उजागर करने के लिए रैली निकालना या विरोध प्रदर्शन करना जरूरी तक नहीं समझते। पूर्व मंत्री मनोरंजन कालिया और पूर्व सीपीएस केडी भंडारी जैसे दिग्गज भाजपा नेता भी इस मुद्दे पर कोई बडा आंदोलन खड़ा करने में कामयाब नहीं हो सके। हां, बयानोंमें जरूर कभी-कभी उनकी जुंबा पर ये बातें आ जाती हैं।
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में गड़बिड़यों को लेकर कांग्रेस और भाजपा नेता अक्सर शोर मचाते नजर आ जाते थे लेकिन भाजपा के दिग्गज नेता इस संबंध में चुप्पी साधे हुए हैं। एक भी भाजपा नेता ने स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट पर पारदर्शी तरीके से अमल करने के लिए कोई आंदोलन करना जरूरी नहीं समझा। राजनीतिक जानकार इसकी दो प्रमुख वजहें मानते हैं। उनका कहना है कि या तो भाजपा नेता यह मानते हैं कि स्मार्ट सिटी का काम एकदम सही तरीके से हो रहा है। इसमें कहीं भी किसी भी प्रकार की गड़बड़ी नहीं हो रही है। दूसरा कारण बताते हुए कहते हैं कि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत जालंधर के विकास के लिए केंद्र सरकार की ओर से जो बजट आया था उसकी बंदरबांट में जालंधर के कुछ दिग्गज भाजपा नेता भी हिस्सेदार हैं। जिस कारण वह कभी-कभार शोर तो मचाते हैं लेकिन बात जब बड़े पैमाने पर आंदोलन करने की आती है तो बैकफुट पर आ जाते हैं। उनका मानना है कि भाजपा नेताओं की इस स्वार्थपरक नीति की वजह से केंद्र सरकार का यह ड्रीम प्रोजेक्ट फाइलों की धूल फांकने को मजबूर है। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत जालंधर शहर में होने वाले काम आज तक परवान नहीं चढ़ सके। इसकी वजह से आम जनता को तो परेशानी उठानी ही पड़ रही है, भाजपा की छवि भी खराब हो रही है।
अब जबकि नगर निगम चुनाव आने वाले हैं तो विकास का मुद्दा जोर-शोर से उठाया जाना चाहिए। खास तौर पर भाजपा को इस मुद्दे को आगामी नगर निगम चुनाव में भी हथियार के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए। स्मार्ट सिटी का भ्रष्टाचार उजागर होता है तो भाजपा को नगर निगम चुनाव में फायदा होगा। इसके लिए केंद्र सरकार को एक विशेष जांच कमेटी बनानी चाहिए ताकि स्मार्ट सिटी का पैसा भ्रष्ट अधिकारियों की जेबों से निकलकर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट पर लग सके और शहर की तस्वीर बदल सके लेकिन भाजपा नेता ऐसा नहीं कर रहे। शायद उन्हें डर है कि अगर मामले की जांच होती है तो उनके नामों का भी खुलासा हो सकता है। इसलिए स्मार्ट सिटी का जिन्न फाइलों से बाहर नहीं निकल पा रहा है।
हैरानी की बात है कि लगभग एक हजार करोड़ रुपये के स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में ऐसी बंदरबांट हो रही है और जिस पार्टी को इस प्रोजेक्ट का क्रेडिट लेकर जनहित के लिए संघर्ष करना चाहिए उस पार्टी के नेता मामले को दबाने की पटकथा लिखने में जुटे हैं।
दिलचस्प बात यह है कि वर्ष 2021 में स्मार्ट सिटी में भ्रष्टाचार का शोर मचाने वाले नेता भी अब खामोश हैं। ये वही नेता थे जो उस वक्त केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी से शिकायत कर जांच कराने की तैयारी कर रहे थे लेकिन एक साल में भी उनकी तैयारी पूरी नहीं हो सकी।