पंजाब

संघर्ष भरा रहा है अरुण खन्ना के करियर का सफर, कई बार डालनी पड़ी जोखिम में जान, राजनेताओं का भी खूब झेलना पड़ा दबाव, पढ़ें एटीपी अरुण खन्ना के संघर्ष की कहानी…

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नीरज सिसौदिया, जालंधर
जालंधर नगर निगम के तीन बिल्डिंग इंस्पेक्टरों को हाल ही में प्रमोट करके असिस्टेंट टाउन प्लानर यानि एटीपी बनाया गया है। इनमें दो महिलाएं पूजा मान और सुषमा दुग्गल शामिल हैं तो एकमात्र पुरुष के रूप में अरुण कुमार खन्ना ने यह उपलब्धि हासिल की है। अरुण कुमार को यह ईमान सिर्फ उनकी सीनियॉरिटी के आधार पर नहीं मिला है बल्कि बतौर बिल्डिंग इंस्पेक्टर उन्होंने जो संघर्ष किया है, उसी का परिणाम है कि सभी बाधाओं को पार करते हुए आज वह एटीपी के पद पर सुशोभित हुए हैं। आइये जानते हैं कि अरुण कुमार खन्ना को इस मुकाम तक पहुंचने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ा।
मूलरूप से लुधियाना के रहने वाले अरुण खन्ना कभी निजी आर्किटेक्ट के तौर पर काम किया करते थे। इसके बाद उन्होंने परीक्षा पास की और सीधे नगर निगम में बिल्डिंग इंस्पेक्टर के पद पर उनकी तैनाती हुई। युवा जोश से लबरेज अरुण खन्ना ने जब अवैध निर्माणों के खिलाफ कार्रवाई करना शुरू किया तो अधिकारियों से लेकर राजनेताओं तक ने उन पर दबाव डालना शुरू किया। उन्हें कभी एक सेक्टर से दूसरे सेक्टर में भेज दिया जाता तो कभी एक शहर से दूसरे शहर में स्थानांतरित कर दिया जाता था। कभी लुधियाना तो कभी जालंधर में उनकी तैनाती की जाती थी। वर्ष 2017 में जब राज्य की सत्ता पर कांग्रेस काबिज थी और नगर निगम पर अकाली – भाजपा गठबंधन का कब्जा था तो अरुण खन्ना को जालंधर स्थानांतरित कर दिया गया। उस दौरान खन्ना को वेस्ट के दबंग विधायक सुशील कुमार रिंकू के विधानसभा क्षेत्र के कुछ इलाके दिए गए तो दूसरी तरफ दिग्गज नेता अवतार हैनरी के बेटे विधायक बावा हैनरी के विधानसभा क्षेत्र का भी एक हिस्सा दिया गया। रिंकू के इलाके में न्यू देओल नगर और देओल नगर सहित कई जगहों पर अवैध कॉलोनियों और अवैध बिल्डिंगों का निर्माण हो रहा था। खन्ना ने जब इन पर कार्रवाई के लिए मोर्चा खोला तो उन्हें रिंकू के करीबी कांग्रेस नेता मेजर सिंह के विरोध का सामना करना पड़ा। कॉलोनाइजरों के समर्थकों ने उन्हें घेर लिया लेकिन खन्ना ने हार नहीं मानी और डटे रहे। उस दौरान एटीपी राजेंद्र शर्मा और अरुण खन्ना की दिलेरी और सूझबूझ काम आई। इसी तरह अमृतसर बाईपास पर भाजपा के दिग्गज नेता रवि महेंद्रू के साथ भी खन्ना अकेले ही भिड़ गए थे। उस दौरान भी नौबत हाथापाई तक आ पहुंची थी लेकिन खन्ना ने कदम पीछे नहीं खींचे और कार्रवाई करके ही दम लिया।
इसी तरह अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार के कार्यकाल में अरुण खन्ना ने अकाली दल के तत्कालीन जिला अध्यक्ष गुरचरण सिंह चन्नी के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया था और खन्ना के आगे चन्नी बेबस नजर आए थे।
ऐसे कई मौके आए जब खन्ना ने अपनी दिलेरी और ईमानदारी का परिचय दिया। इस दौरान खन्ना पर कई आरोप भी लगे। उन्हें निलंबित तक कर दिया गया लेकिन खन्ना ने इसकी परवाह नहीं की और अपने कर्म पथ पर आगे बढ़ते रहे। उन्होंने हमेशा राजनीतिक दबाव को दरकिनार करके रखा लेकिन आला अधिकारियों के आदेश का ससम्मान पालन भी किया। यही वजह रही कि तमाम आरोप लगने और विवादों में रहने के बावजूद अरुण कुमार खन्ना ने खुद को बेदाग साबित किया और आज विभाग ने उनकी वरिष्ठता एवं काबिलियत को देखते हुए उन्हें प्रमोट करके एटीपी के पद से नवाजा है।
बहरहाल, खन्ना के पास अब बड़ी जिम्मेदारी है और इस बड़ी जिम्मेदारी में चुनौतियां भी काफी बड़ी हैं। अब देखना यह होगा कि क्या खन्ना इन जिम्मेदारियों को बाखूबी निभा पाएंगे या अन्य एटीपी की तरह भ्रष्टाचार की गंगा में समा जाएंगे। खन्ना इन उम्मीदों पर कितना खरे उतरेंगे यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

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