नीरज सिसौदिया, बरेली
विधानसभा चुनाव हो चुके हैं और अता उर रहमान विधायक भी बन चुके हैं, इंजीनियर अनीस अहमद खान का भी विधानसभा जाने का सपना पूरा नहीं हो पाया। संगठन फिलहाल भंग है। फिलहाल कोई चुनाव भी नहीं हो रहे। इसके बावजूद ये दोनों नेता सातों दिन महानगर की गलियों में ताबड़तोड़ बैठकें करने में जुटे हैं। आखिर इन बैठकों की वजह क्या है? जहां भी जाते हैं दोनों साथ जाते हैं? कहीं इनकी नजरें मेयर की कुर्सी पर तो नहीं? चर्चा है कि अता उर रहमान अपनी पत्नी को मेयर पद का चुनाव लड़ाना चाहते हैं जिसके चलते वह इन दिनों महानगर में ताबड़तोड़ बैठकें करने में जुटे हैं। इसके उलट चर्चा यह भी है कि इंजीनियर अनीस अहमद खां खुद मेयर का चुनाव लड़ना चाहते हैं इसलिए वे लगातार सुभाष नगर से लेकर राजेंद्र नगर तक बैठकें करने में जुटे हैं। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि इंजीनियर अनीस अहमद खां समाजवादी पार्टी के जिला अध्यक्ष पद के प्रबल दावेदार हैं इसलिए वह संगठन की मजबूती के लिए महानगर से ही शुरुआत कर रहे हैं। वहीं, लखनऊ मुख्यालय के सूत्र बताते हैं कि विधानसभा चुनावों के दौरान अता उर रहमान ने तमाम अटकलों पर विराम लगाते हुए जीत हासिल की है उससे वह अखिलेश यादव के और ज्यादा करीब आ गए हैं। वहीं इंजीनियर अनीस अहमद खां ने जिस तरह से विधानसभा चुनाव में पार्टी के लिए समर्पण भाव दिखाया उसने सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव को काफी प्रभावित किया है। जिसके चलते उन्हें भी संगठन की मजबूती की दिशा में बड़ी जिम्मेदारी फिलहाल फौरी तौर पर सौंपी गई है। बताया जाता है कि विधानसभा चुनाव के बाद दोनों नेताओं की अखिलेश यादव के साथ कई दौर की मुलाकातें हुई हो चुकी हैं। इन मुलाकातों में दोनों नेताओं ने अखिलेश यादव को जो सुझाव दिए हैं वह अखिलेश यादव को काफी पसंद भी आए हैं जिस वजह से दोनों नेताओं को पार्टी प्रमुख की ओर से कोई बड़ी जिम्मेदारी दी गई है। वह जिम्मेदारी क्या है इसका खुलासा तो सूत्र नहीं करते हैं लेकिन इतना जरूर तय है कि आगामी नगर निगम चुनाव में समाजवादी पार्टी को जीत दिलाने की दिशा में दोनों नेताओं ने प्रयास तेज कर दिए हैं। संभव है कि आगामी चुनावों में मेयर पद का उम्मीदवार इन्हीं दोनों परिवारों में से कोई एक हो अथवा जिला अध्यक्ष के महत्वपूर्ण पद से इन्हें नवाजा जाए।
अब गौर फरमाते हैं इसके पीछे के कारणों पर। दरअसल, पार्टी के पास इस समय कद्दावर नेताओं में अता उर रहमान के अलावा कोई मुस्लिम नेता नहीं रह गया। शहजिल इस्लाम के खिलाफ प्रशासन की कार्रवाई और आरएसएस की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश से उनकी मुलाकात के बाद अखिलेश यादव का भरोसा इस्लाम साबिर के परिवार ने खो दिया है। सुल्तान बेग की हार ने उनके राजनीतिक वजूद पर सवाल खड़े कर दिए हैं। वहीं, कुछ दिग्गज कहे जाने वाले समाजवादी नेता विधानसभा चुनाव के बाद से अज्ञातवास पर चले गए हैं। वह भाजपा नेताओं के साथ गैर राजनीतिक कार्यक्रमों में अक्सर मंच साझा करते नजर आ जाते हैं लेकिन पार्टी के कार्यक्रमों में उन्हें नहीं देखा जा सकता है। अत उर रहमान एकमात्र सक्रिय विधायक होने के नाते पार्टी के लिए महत्वपूर्ण हो जाते हैं तो वहीं तन मन धन से पार्टी के लिए समर्पित इंजीनियर अनीस अहमद खां अपने समर्पण और साफ सुथरी छवि के कारण अपनी अलग जगह बनाने में कामयाब रहे हैं।
निश्चित तौर पर उनकी भी कुछ राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं होंगी जिस वजह से वह दिन-रात एक कर अता उर रहमान के साथ ताबड़तोड़ बैठकें कर रहे हैं। उन्हें मेयर पद के भी प्रबल दावेदार के रूप में देखा जा रहा है और जिला अध्यक्ष पद के दावेदार के रूप में भी देखा जा रहा है।
सूत्र यह भी बताते हैं कि इस बार पार्टी की ओर से किसी मुस्लिम चेहरे को भी बरेली लोकसभा सीट से मौका देने की तैयारी की जा रही है। यह चेहरा अनीस अहमद खां का भले ही न हो लेकिन अता उर रहमान का जरूर हो सकता है। चूंकि कुछ मुस्लिम नेताओं का रुझान भाजपा की ओर दिखने लगा है और कुछ नेता भाजपा में शामिल भी हो चुके हैं इसलिए माना जा रहा है कि अबकी बार कोई मुस्लिम ही जिला अध्यक्ष के पद पर काबिज होगा। संभव है कि संगठन को मजबूत करने की जाे कवायद अता उर रहमान और इंजीनियर अनीस अहमद खां की जोड़ी कर रही है वह इसी रणनीति का हिस्सा हो। नगर निगम चुनाव को लोकसभा का सेमीफाइनल माना जा रहा है। ऐसे में मेयर की कुर्सी पर भी उक्त नेताओं का पूरा जोर रहेगा। बहरहाल, पार्टी के लिए यह अच्छा संकेत है कि पार्टी के दो बड़े चेहरे संगठन भंग होने के बावजूद पूरी तत्परता से संगठन को मजबूत करने के लिए दलितों और मुसलमानों से लेकर कायस्थों तक के घरों में जाकर ताबड़तोड़ बैठकें कर रहे हैं।
बिहार के सियासी उलटफेर के बाद उत्साहित हैं सपा नेता, महानगर में नहीं बिखरी सपा
बिहार में नीतीश कुमार के एनडीए से नाता तोड़कर राजद के साथ सरकार बनाने के बाद से समाजवादी पार्टी के नेता काफी उत्साहित हैं। यही वजह है कि महानगर में अब तक पार्टी में बिखराव की स्थिति नहीं नजर आ रही है। हाल ही में नीतीश कुमार ने सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव से भी मुलाकात की और केजरीवाल, चौटाला, राहुल गांधी, येचुरी आदि से भी मुलाकात कर विपक्ष को एकजुट करने का प्रयास तेज कर दिया। इस घटनाक्रम के बाद से ही अता उर रहमान और इंजीनियर अनीस अहमद खां ने बैठकों का सिलसिला और तेज कर दिया है। अगर यह सिलसिला यूं ही चलता रहा है नगर निगम चुनाव के नतीजे पार्टी को गदगद करने वाले भी हो सकते हैं।