Bareilly : नीरज सिसौदिया : कोरोना महामारी का वह दौर याद है न आपको, जब हर कोई अपनी जान बचाने के लिए घरों में दुबका हुआ था। फिर भी जाने कितने लोग उस दौर में अपनी जान तक गंवा बैठे थे। इस दौर में बरेली का एक शख्स ऐसा भी था जो जान हथेली पर रखकर रोज सुबह सात बजे पूरे वार्ड का चक्कर सिर्फ इसलिए लगाता था ताकि किसी की मांग का सिंदूर न उजड़े, किसी की कोख सूनी न हो और किसी बेबस के बच्चे भूख से न मरें। फिर पूरा दिन वही शख्स कोरोना जांच शिविर में बैठकर अपने वार्ड के लोगों की जांच करवाता। वार्ड के लोगों की सेवा करते-करते वह खुद कोरोना की चपेट में आ गया लेकिन थोड़ा आराम मिलते ही अपनी जान की परवाह किए बिना फिर से जनता की सेवा में उसी कैंप में जाकर बैठ जाता था। जी हां, हम बात कर रहे हैं वार्ड 23 इंदिरा नगर राजेंद्र नगर के पार्षद सतीश चंद्र सक्सेना कातिब उर्फ मम्मा की। मम्मा वही शख्स हैं जिन्हें महान संत एवं श्रीश्री 1008 निरंजन पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि जी महाराज ने कोरोना योद्धा के सम्मान से नवाजा था। मम्मा और वार्ड 50 के सभासद आरेंद्र अरोड़ा कुक्की ने कोरोना की पहली लहर में अप्रैल माह में कैंप की शुरुआत की थी और एक साल तक अलग-अलग जगहों पर कोरोना जांच शिविर लगाते रहे। उनकी पत्नी भोजन के पैकेट लोगों के घरों तक पहुंचवाती रहीं। पूरे 84 दिनोंं तक मम्मा ने लगातार वार्ड में राशन बांटने का काम किया। इतना ही नहीं अस्पताल वालों ने जनता को लूटा तो मम्मा ने लड़कर उनके पैसे तक वापस दिलाने का काम किया।


वार्ड के लोगों को परेशानी हुई तो मम्मा अपनी ही सरकार के अधिकारियों के खिलाफ धरने पर बैठ गए। यह मम्मा का वार्डवासियों के प्रति समर्पण ही था जिसने मम्मा को नगर निगम में हमेशा मुखर रखा। मेयर से शायद ही इतनी बहस किसी और पार्षद ने की होगी जितनी मम्मा ने पिछले पांच वर्षों में की।
ये वही सतीश चंद्र सक्सेना कातिब उर्फ मम्मा हैं जो कैंप रद्द होने पर पूरे वार्ड के लोगों के पैसे जमा करने के लिए खुद ही नगर निगम पहुंच गए और जब तक टैक्स जमा नहीं हुआ तब तक निगम की खिड़की से मम्मा नहीं हटे। ये वही मम्मा हैं जिनकी बदौलत राजेंद्र नगर में स्मार्ट रोड बन सकी। वार्ड की शायद ही कोई ऐसी गली हो जो कच्ची रह गई हो वरना मम्मा के कार्यकाल में हर गली पक्की कर दी गई। मम्मा ने कुछ काम नगर निगम से करवाए तो कुछ बरेली विकास प्राधिकरण का सदस्य होने के नाते बीडीए से करवा दिए। दिसंबर 2021 में जब वार्ड में पेयजल आपूर्ति की शिफ्टिंग का काम चल रहा था तो मम्मा ने दिन-रात एक कर दिया था। रात 12-12 बजे तक विभागीय अधिकारियों से काम करवाया और खुद भी उनके साथ मौके पर डटे रहे।

एक पुरानी सी स्कूटी में जब कच्छा, टी-शर्ट और चप्पल पहनकर ही वार्ड में सफाई कराने मम्मा निकल पड़ते थे तो आम आदमी कई बार उन्हें ही सफाई कर्मी समझ लेता था। अपनी वाकपटुता से वार्ड 23 में जितनी राशि के काम सतीश कातिब मम्मा ने करवा दिए उतने मेयर के करीबी पार्षद भी अपने वार्ड में नहीं करवा सके। यही वजह है कि साथी पार्षदों की नजरों में भी मम्मा खटकते रहे। यह मम्मा का सेवा और समर्पण भाव ही है जिसने लगभग तीन दशक से भी अधिक के राजनीतिक सफर में न तो कभी मम्मा को नगर निगम का चुनाव हारने दिया और न ही कभी उनकी पत्नी को।
मम्मा वो शख्सियत हैं जिसने पूर्व नगर विकास मंत्री आजम खान की नाक में दम कर दिया था। मजबूर होकर आजम खां को मम्मा की बात माननी पड़ी और वार्ड के नाले की सबसे बड़ी समस्या का समाधान हो सका। सतीश कातिब मम्मा के खाते में उपलब्धियों की भरमार है। इस बार भी वार्ड 23 से भाजपा नेता सतीश कातिब मम्मा की जीत तय मानी जा रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि विरोधी दलों को मम्मा के मुकाबले का कोई उम्मीदवार ही नहीं मिल पा रहा है।