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बरेली शहर विधानसभा सीट : सपा से तीन प्रमुख मुस्लिम चेहरे ठोक रहे ताल, कोई संगठन का दिग्गज है तो कोई 25 साल में कभी चुनाव ही नहीं हारा, किसकी क्या हैं खूबियां और कमजोरियां, जानिए कौन कितना है दमदार?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
शहर विधानसभा सीट से वर्ष 2027 में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव के लिए तीन प्रमुख मुस्लिम चेहरे समाजवादी पार्टी से टिकट की दावेदारी जता रहे हैं। इनमें दो युवा चेहरे शामिल हैं जबकि एक अनुभवी नेता हैं। इन तीनों की अपनी अलग-अलग खूबियां और खामियां हैं। किसी को संगठन में काम करने का लंबा अनुभव है तो किसी को चुनाव जीतने का। वहीं, एक दावेदार ऐसा भी है जिसने बहुत कम समय में अपनी अलग पहचान बनाई है। इनमें सबसे पहला नाम आता है समाजवादी पार्टी के शहर विधानसभा क्षेत्र अध्यक्ष हसीब खान का। हसीब खान के पास 17 साल का संगठन में काम करने का लंबा अनुभव है। वह शहर विधानसभा क्षेत्र अध्यक्ष के तौर पर अपने दो कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरे कर चुके हैं और तीसरा कार्यकाल शुरू हो चुका है। हसीब खान ने शहर सीट पर संगठन को जमीनी स्तर पर मजबूत करने का काम किया है। लंबे समय तक संगठन को मजबूत बनाने के बाद जब हसीब खान को यह अहसास हुआ कि वह शहर विधानसभा सीट पर जीत हासिल कर सकते हैं तो उन्होंने इस सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट के लिए अपनी दावेदारी जता दी। दावेदारी जताने के साथ ही वह संगठन के लिए अब भी उसी शिद्दत से काम कर रहे हैं। हाल ही में बरेली दौरे पर आए शहर विधानसभा क्षेत्र के सपा प्रभारी निर्मोज यादव ने हसीब खान के घर पर ही बैठक का आयोजन किया। इस बैठक में सभी सेक्टर प्रभारी एवं जोन प्रभारी शामिल हुए थे।

हसीब खान

सीधे और सरल स्वभाव के हसीब खान एक निर्विवादित चेहरा हैं। उनका सादगी भरा व्यक्तित्व उन्हें औरों से अलग बनाता है। उनका सीधा और सरल व्यवहार ही उनकी सबसे बड़ी कमी भी माना जाता है। लोगों का कहना है कि सरल स्वभाव के कारण वह जनता के बीच तो लोकप्रियता हासिल कर लेते हैं लेकिन संगठन में साथी नेताओं का तिकड़म उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है।
दूसरा नाम ओमेगा क्लासेज के डायरेक्टर मोहम्मद कलीमुद्दीन का है। कलीमुद्दीन पिछले चुनाव में भी इस सीट पर दावेदारी जता रहे थे। कलीमुद्दीन सबसे युवा मुस्लिम चेहरा हैं। बहुत कम समय में समाजसेवा के क्षेत्र में सक्रिय भागीदारी निभाने वाले मोहम्मद कलीमुद्दीन ने राजनीति की दुनिया में भी अपना एक अहम मुकाम बना लिया है। पांच साल पहले जब कोरोना काल में लोग जिंदगी और मौत से जूझ रहे थे। डर की वजह से घरों से बाहर नहीं निकल रहे थे तो कलीमुद्दीन सड़कों पर उतरकर लोगों की सेवा कर रहे थे। इस दौरान वह खुद भी कोरोना संक्रमित हो गए लेकिन लाखों लोगों की दुआओं के दम पर उन्होंने वापसी की और फिर से लोगों की सेवा में जुट गए थे। कलीमुद्दीन फिलहाल संगठन में प्रदेश सचिव की भूमिका निभा रहे हैं। उन्होंने भी पूरी दमदारी के साथ अपनी दावेदारी जता दी है। कलीमुद्दीन की सबसे बड़ी कमी यह है कि पिछले विधानसभा चुनाव में टिकट न मिलने पर वह निराश हो गए और कुछ समय के लिए सक्रिय राजनीति की जगह अपने कोचिंग के कारोबार पर अधिक ध्यान देने लगे।

मो. कलीमुद्दीन

उनकी कोचिंग उनके लिए एक प्लस प्वाइंट भी है और राजनीतिक रूप से नुकसानदायक भी। प्लस इसलिए कि कोचिंग के बच्चों की सफलता ने उन्हें घर-घर तक पहुंचने में मदद की है और नुकसानदायक इसलिए कि अगर वो कोचिंग को पूरा समय देते हैं तो फिर राजनीति के लिए वक्त निकालना संभव नहीं हो पाता है।
शहर विधानसभा सीट से आखिरी और सबसे अनुभवी मुस्लिम दावेदार का नाम है अब्दुल कय्यूम खां उर्फ मुन्ना। मुन्ना पांच बार से लगातार पार्षद बनते आ रहे हैं और आज तक वो कोई चुनाव नहीं हारे। सबसे दिलचस्प बात यह है कि विगत नगर निगम चुनाव में मुन्ना की तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो गई थी और उन्हें दिल्ली के राजीव गांधी कैंसर अस्पताल में भर्ती कराया गया था। मुन्ना और उनका पूरा परिवार दिल्ली में था। सिर्फ एक बेटा बरेली में था। मुन्ना का पूरा चुनाव वार्ड की जनता ने लड़ाया और जिताया। यहां तक कि बीमारी के कारण जीत का सर्टिफिकेट लेने के लिए भी मुन्ना नहीं जा सके थे। उनके बेटे ने सर्टिफिकेट लिया था।

अब्दुल कय्यूम खां उर्फ मुन्ना

मुन्ना पिछले विधानसभा चुनाव में भी दावेदारी जता चुके हैं। उन्होंने कई शानदार आयोजन पिछले चुनाव किए थे जिनमें सबसे अधिक चर्चा महाराष्ट्र के सपा प्रदेश अध्यक्ष अबू आसिम आजमी के दौरे की रही थी। अबू आजमी ने तब मंच से सार्वजनिक तौर पर यह ऐलान किया था कि वह बरेली आए हैं तो सिर्फ मुन्ना की वजह से। मुन्ना की खूबी यह है कि वह बरेली ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र चुनाव में भी पार्टी के लिए व्यक्तिगत तौर पर प्रचार करते रहे हैं। महाराष्ट्र चुनाव में जब मानखुर्द शिवाजी नगर सीट से अबू आजमी के खिलाफ नवाब मलिक जैसी शख्सियत मैदान में उतरी तो मुन्ना ने आजमी के साथ प्रचार अभियानों में अपनी टीम के साथ बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। अंतत: अबू आजमी की जीत हुई और जिस वार्ड की जिम्मेदारी मुन्न को सौंपी गई थी उस वार्ड से भी सपा को जीत मिली। मुन्ना की सबसे बड़ी कमी यह कही जाती है कि वो अपनी दावेदारी को लेकर ज्यादा फिक्रमंद नहीं होते। उन्हें टिकट मिला तो ठीक, नहीं मिला तो नगर निगम की राजनीति से ही संतोष कर लेते हैं।

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