नीरज सिसौदिया, बरेली
देशभर में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) चल रहा है। यह प्रक्रिया हर राजनीतिक दल के लिए बेहद महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि इसी के आधार पर मतदाता सूची को अपडेट किया जाता है और आने वाले चुनावों के लिए सही मतदाता आधार तय होता है। लेकिन बरेली में समाजवादी पार्टी का संगठन इस प्रक्रिया में बिल्कुल भी गंभीर नजर नहीं आ रहा है। खास बात यह है कि सिर्फ आम कार्यकर्ता ही नहीं, बल्कि फ्रंटल संगठनों, प्रकोष्ठों, पार्षदों और यहां तक कि राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर के कई पदाधिकारी भी इस काम को लेकर सक्रिय नहीं दिख रहे हैं।
बरेली महानगर में समाजवादी पार्टी के करीब पांच फ्रंटल संगठन और 18 प्रकोष्ठ हैं। इनमें समाजवादी युवजन सभा, समाजवादी छात्र सभा, लोहिया वाहिनी, अल्पसंख्यक सभा, महिला सभा, शिक्षक सभा, बाबा साहेब अंबेडकर वाहिनी और अन्य संगठनों के नाम शामिल हैं। इन संगठनों का उद्देश्य संगठन को बूथ स्तर तक मजबूत बनाना और चुनावी प्रक्रिया में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाना होता है। लेकिन एसआईआर के दौरान बूथ स्तर पर बीएलए (बूथ लेवल एजेंट) की नियुक्ति की जिम्मेदारी आने पर ये संगठन पूरी तरह गायब हैं।
इन संगठनों के कई नेता सिर्फ सोशल मीडिया पर सक्रिय नजर आते हैं। उनकी गतिविधि फेसबुक और व्हाट्सऐप स्टेटस तक सीमित होकर रह गई है, जहां वे बड़े नेताओं के साथ खिंचवाई गई तस्वीरें और औपचारिक शुभकामनाएं पोस्ट करते रहते हैं। जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत करने और बूथ निर्माण की प्रक्रिया से ये लगभग दूर हो चुके हैं।
बरेली महानगर में समाजवादी पार्टी के प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर भी बड़ी संख्या में पदाधिकारी मौजूद हैं। इनमें प्रदेश सचिव, प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, राष्ट्रीय महासचिव सहित कई जिम्मेदार पद शामिल हैं। लेकिन इन पदाधिकारियों में से भी सिर्फ कुछ लोग ही जिले में सक्रिय दिखाई देते हैं। राष्ट्रीय सचिव वीरपाल सिंह यादव और प्रदेश महासचिव अता-उर-रहमान को छोड़कर बाकी अधिकतर पदाधिकारी सिर्फ कागजों में या सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। पार्टी का पूरा संगठनात्मक ढांचा होने के बावजूद इस समय सबसे जरूरी काम बीएलए नियुक्ति की जिम्मेदारी हवा में टंगी हुई है।
पार्षदों की स्थिति भी लगभग इसी तरह है। बरेली महानगर में पार्षदों की संख्या अन्य नगर निगमों की तुलना में यहां अच्छी है और उन्हें बूथ क्षेत्र की सही जानकारी होती है। लेकिन बीएलए नियुक्ति की प्रक्रिया में केवल एक पार्षद शमीम अहमद ने गंभीरता दिखाई है। उन्होंने अपने वार्ड में बीएलए नियुक्त कर सभी फॉर्म महानगर इकाई को सौंप दिए हैं। इसके अलावा किसी भी पार्षद ने अपने क्षेत्र में यह प्रक्रिया पूरी नहीं की है। सूत्रों के अनुसार एक पार्षद ने कुछ फॉर्म अवश्य भेजे हैं, लेकिन उसने भी सभी बीएलए नहीं बनाए हैं और उसकी प्रक्रिया अधूरी पड़ी है।
वहीं विधानसभा टिकट के दावेदारों की स्थिति देखें तो तस्वीर और भी चिंताजनक दिखती है। पार्टी के मजबूत दावेदार और पिछले चुनाव लड़ चुके उम्मीदवारों में से अधिकतर ने अभी तक बीएलए नियुक्ति को लेकर कोई सक्रियता नहीं दिखाई है। केवल शहर विधानसभा सीट से टिकट के प्रबल दावेदार माने जा रहे हसीव खान और पंडित दीपक शर्मा ही ऐसे नेता हैं जो इस प्रक्रिया को अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं। दोनों नेताओं ने बूथ स्तर पर टीम बनाकर फॉर्म भरवाए हैं और अपनी-अपनी सूची महानगर संगठन को सौंप दी है। लेकिन बाकी टिकट के दावेदार अभी तक इस जिम्मेदारी को लेकर उदासीन ही नजर आ रहे हैं।
यह स्थिति इसलिए भी गंभीर है क्योंकि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव स्वयं इस प्रक्रिया की मॉनिटरिंग कर रहे हैं। उन्होंने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि एसआईआर प्रक्रिया पार्टी के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। अखिलेश ने कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों से कहा है कि एक भी उचित वोट हटने न पाए और एक भी फर्जी वोट जोड़ा न जाए, क्योंकि मतदाता सूची ही चुनाव की असली नींव होती है। लेकिन बरेली में हालात यह हैं कि पार्टी के स्थानीय संगठन इस संदेश को गंभीरता से लेने के मूड में नहीं दिखते।
यदि यही स्थिति बनी रही तो आने वाले 2027 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के लिए बड़ा खतरा खड़ा हो जाएगा। भाजपा पहले से ही बूथ प्रबंधन और मतदाता सूची सुधार के मामलों में बेहद संगठित तरीके से काम करती है। भाजपा और आरएसएस की जमीनी टीम बूथ स्तर तक सक्रिय रहती है। ऐसे में यदि समाजवादी पार्टी ने अभी से मेहनत नहीं की तो आगे चुनाव में मुकाबला करना मुश्किल हो जाएगा।
फिलहाल स्थिति यह है कि समाजवादी पार्टी की महानगर इकाई को छोड़कर सक्रियता सिर्फ बयानबाजी और सोशल मीडिया तक सीमित रह गई है। बाकी फ्रंटल संगठन और प्रकोष्ठों के स्थानीय नेतृत्व यह मानकर चल रहे हैं कि चुनाव आने पर सब अपने-आप हो जाएगा, जबकि हकीकत यह है कि चुनाव की असली तैयारी यही है जो आज की जा रही है यानी कि मतदाता सूची को दुरुस्त करना, बीएलए नियुक्त करना और बूथ को मजबूत बनाना।
संगठन के अंदर के कुछ लोगों का कहना है कि पार्टी की पुरानी कार्यशैली में बदलाव जरूरी है। यदि फ्रंटल संगठनों और प्रकोष्ठों को सिर्फ फोटो खिंचवाने और बैनर लगाने तक सीमित रखा जाएगा तो उनकी कोई उपयोगिता नहीं बचेगी। उन्हें वास्तविक राजनीतिक जिम्मेदारी और प्रशिक्षण देने की जरूरत है।
अखिलेश यादव लगातार यह कहते आए हैं कि समाजवादी पार्टी का असली दम बूथ पर खड़े कार्यकर्ता में है। लेकिन बरेली में उस कार्यकर्ता को नेतृत्व की तरफ से वह ऊर्जा और दिशा नहीं मिल पा रही, जिसकी इस समय सबसे ज्यादा जरूरत है।
आने वाले कुछ हफ़्तों में यह देखने वाली बात होगी कि क्या समाजवादी पार्टी बरेली में इस स्थिति को सुधारने की कोशिश करती है या फिर एसआईआर प्रक्रिया में इसी सुस्ती के कारण संगठन को चुनावी मैदान में भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। फिलहाल तस्वीर साफ है, यह हाल रहा तो 2027 में भाजपा के सामने लड़ाई बेहद कठिन होगी।





