आँसू का भी दर्द छुपाना पड़ता है।
गम को पीकर भी मुस्काना पड़ता है।।
लोग तमाशा कर देते हैं ज़ख़्मों का।
खिलता चेहरा सबको दिखाना पड़ता है।।
मजबूरी में गैरों को भी पास कभी।
इच्छा के विपरीत बुलाना पड़ता है।।
नोन लिये फिरती है हाथों में दुनिया।
छिप कर हमको अश्क बहाना पड़ता है।।
दुनिया भेद न जान सके अपने ग़म का।
हँसता सा चेहरा दिखलाना पड़ता है।।
आ जाता है काम कभी कोई मुश्किल।
हिम्मत को भी और बढ़ाना पड़ता है ।।
“हंस” हंसी भी ताड़ ही लेती है दुनिया।
अक्सर हमको आँख फिराना पड़ता है।।
-एस के कपूर “श्री हंस”
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