झारखण्ड

संतालियों का गौरवशाली अतीत सहेजे हैं  ऊपरघाट के कुड़ीबुरू धोरोमगाढ़

Share now

रामचंद्र कुमार अंजाना, बोकारो थर्मल
कुडी़बुरु धोरोमगाढ़!बोकारो जिले के नावाडीह प्रखंड अंतर्गत ऊपरघाट स्थित पलामू पंचायत के में स्थित आदिवासियों का ऐसा धाम जहां जाना हर संताड़ (आदिवासी) की ख्वाहिश होती है। कुड़ीबुरू सरना धोरोमगाढ़ से संतालियों का गौरवशाली अतीत जुड़ा हुआ है। इस धर्मस्थल के प्रति संतालियों की असीम आस्था है। संतालियों में मान्यता है कि हजारों वर्ष पूर्व उनके पूर्वजों ने कुड़ीु पहाड़ के ऊपर लगभग 1200 में फीट कुड़ीबुरू अर्थात कुड़ीबाबा की अध्यक्षता में निरंतर 12 वर्ष तक बैठक कर उनके सामाजिक संविधान एवं संस्कृति की रचना की थी, जिसका पालन आज भी संताली समुदाय के लोग करते आ रहे हैं। संतालियों का मानना है कि संताली सहित अन्य समुदाय के जो लोग यहां कुड़ीबुरू की पूजा-अर्चना करते हैं, उनकी मनोकामना जरूर पूरी होती है। कुड़ीबुरू धोरोमगाढ़ के आसपास और छोटे-छोटे भी पहाड़ है, जो संताली समुदाय के बीच कुड़ी बाबा के नाम से विख्यात है।

कहा जाता है कि इन्हीं पहाड़ों तराईयों में आसन के तौर पर इस्तेमाल कर उनके पूर्वज हजारों वर्ष पूर्व यहां दरबार लगाया करते थे। कुड़ीबुरू धोरोमगाढ़ स्थित पहाड़ों में संतालियों के पूर्वजों ने गड्ढा कर ओखली के रूप में उपयोग किया था, जो आज भी मौजूद है। उनमें से कुछ देखरेख के अभाव में भर गए हैं, लेकिन कई आज भी अपने पुराने स्वरूप में मौजूद हैं। नायके (पुजारी) दुर्गा किस्कू ने बताया कि संतालियों के हर पूजन के विधि-विधान एवं कर्मकांडों में कुड़ीबुरू का जिक्र किया जाता है। इस समुदाय के लोकनृत्य एवं लोकगीत बिना कुड़ीबुरू के जिक्र के पूर्ण नहीं होता। यह परंपरा हजारों वर्ष पूर्व से संतालियों के बीच प्रचलित है, जो कुड़ीबुरू के प्रति संतालियों की अटूट आस्था एवं विश्वास का प्रतीक है।

संताली समुदाय की ओर से मकर संक्राति पर किए जाने वाले लोकनृत्य दशांय में भी कुड़ीबुरू धोरोमगाढ़ का जिक्र किया जाता है। 21 से 23 जनवरी को यहां के पर फिर संताड़ों का जुटान होगा। मौका होगा कुडी़बुरु धोरोमगाढ़ (पर्वत) में होने वाला 3 दिवसीय़ 8 वां दिशोम सरना सांवता धोरोम मेला का। इसमें न सिर्फ झारखंड के संताड़ (संथाल) अपने आराध्य देव कुडी़बुरु की पूजा करेंगे बल्कि दूसरे जगह के भी संताड़ यहां पहुंचकर कुडी़बुरु (पर्वत) में स्थित देव को नमन करेंगे।
संताड़ों के आस्था का केंद्र- हर साल कुडी़बुरु दिशोम सरना सांवता धोरोम मेला कुडी़बुरु धोरोमगाढ़ संतालियों के लिए आस्था का केन्द्र बना हुआ है। उनका मानना है कि निःस्वार्थ भाव से यहा पूजा-अर्चना करने से कुडी़बुरु की कृपा से सारी मन्नतें पूरी होती हैं। कलांतर में लुगूबुरू व कुड़ीबुरू दोनो संबंधी थे। बताते हैं कि संतालियों के आराध्य देव हैं और इनकी पूजा कुडी़बुरू पहाड़ की गुफा में आर्यो के आने के पहले से ही की जाती रही है। संताड़ (आदिवासी) समुदाय के पूर्वज इसी स्थान पर रहते थे। कुडी़बुरू पहाड़ की तलहटी में पूर्वजों द्वारा उपयोग में लाए गए कई अवशेष आज भी विद्यमान हैं। मृत्यु के बाद राजरप्पा में ही मोक्ष- सनातन धर्म में मान्यता है कि जब किसी हिन्दू की मृत्यु होती है तो उसकी अस्थि को बनारस जाकर गंगा में प्रवाहित किया जाता है, ठीक उसी प्रकार झारखंड समेत तमाम इलाकों के संताड़ समुदाय के लोगों की जब मृत्यु होती है तब उसके अस्थि को रजरप्पा की दामोदर नदी में प्रवाहित किया जाता है। कुडी़बुरू अर्थात कुडी़बाबा के संबंध में कई पौराणिक गाथाएं भी हैं तथा उनपर कई लोकगीत भी गाए जाते हैं।

आदिवासी सरना समिति की बैठक


कुड़ीबुरू सरना धोरोमगाढ़ में 21 जनवरी से आयोजित तीन दिवसीय मेला को लेकर आदिवासी सरना समिति की एक बैठक मदन हेम्ब्रम की अध्यक्षता में हुई। बैठक में 3 दिवसीय़ 8 वां दिशोम सरना सांवता कुडी़बुरू धोरोम पूजा व मेला व संचालन को लेकर एक कमेटि का गठन किया। कमेटि का अध्यक्ष बालेश्वर हांसदा, सचिव रामलाल मरांडी, कोषाध्यक्ष राजेश हेम्ब्रम, संचालक बृजलाल हांसदा, प्रवक्ता मदन हेम्ब्रम, नायके दुर्गा किस्कू सहित कार्यकारिणी के 21 सदस्य बनाया गया। सचिव मदन हेम्ब्रम ने बताया कि कुड़ीबुरू सरना धोरोमगाढ़ में दिशोम गुरू शिबू सोरेन, पूर्व सीएम हेमंत सोरेन, सांसद रविंद्र कुमार पांडेय व डुमरी विधायक जगरनाथ महतो बतौर अतिथि शिरकत करेंगे। बैठक में सांसद प्रतिनिधि तारकेश्वर महतो, नारायण मरांडी, मुन्ना बेसरा, मनोज बेसरा, परमेश्वर, छोटेलाल मांझी, दुर्गा किस्कू, सुदंरलाल मरांडी, सागर मरांडी, रामेश्वर मरांडी, दिनेश हेम्ब्रम, बहादुर हेम्ब्रम, पुरन हेम्ब्रम, अमित मुर्मू, बिनोद मुर्मू सहित कई लोग उपस्थित थे।

Facebook Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *