पंजाब

तीन रेगुलर एटीपी मिल गए, अब तो हेड ड्राफ्ट्समैन की जान बख्श दो मेयर और कमिश्नर साहब

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नीरज सिसौदिया, जालंधर
नगर निगम के मेयर और कमिश्नर इन दिनों हेड ड्राफ्ट्समैन का खून चूसने में लगे हुए हैं. नहीं-नहीं आप जैसा समझ रहे हैं वैसा बिल्कुल नहीं है. न मेयर साहब आदमखोर बने हैं और न ही कमिश्नर साहब. ये तो बस एक कहावत है. दरअसल, पिछले कुछ महीनों से नगर निगम की बिल्डिंग ब्रांच अधिकारियों का संकट झेल रही थी. ऐसे में एटीपी लखबीर सिंह से एमटीपी का काम लिया जा रहा था और हेड ड्राफ्ट्समैन को एटीपी का चार्ज दे दिया गया था. हेड ड्राफ्ट्समैन विकास दुआ और रविंदर कुमार को एटीपी का चार्ज भी दे दिया गया था. अब काम का बोझ इतना बढ़ गया था कि दो-दो नावों पर सवार हेड ड्राफ्ट्समैन नगर निगम को ही डुबाने लगे थे. अब लंबे इंतजार के बाद निगम का अधिकारी संकट एक बार फिर दूर हो चुका है. राजेंद्र शर्मा को वापस एटीपी का चार्ज दिया जा चुका है. एमटीपी का काम संभालने के लिए गुरु नगरी से तबादला कर परमपाल सिंह को जालंधर भेजा गया है. परमपाल के आने के बाद एमटीपी का काम संभाल रहे एटीपी लखबीर सिंह कार्यमुक्त हो जाएंगे. एटीपी बलविंदर कुमार पहले से ही बिल्डिंग ब्रांच की सेवा करने में जुटे हैं.

अब अधिकारी संकट में एटीपी लगाए गए हेड ड्राफ्ट्समैन विकास दुआ और रविंदर कुमार को एटीपी का अतिरिक्त बोझ देना मुनासिब नहीं है क्योंकि निगम के पास पहले ही तीन रेगुलर एटीपी मौजूद हैं. विकास दुआ की जगह राजेंद्र शर्मा को उनके इलाकों की जिम्मेदारी दी जा सकती है क्योंकि शर्मा जी पहले भी उन इलाकों में अवैध निर्माण के खिलाफ ताबड़तोड़ अभियान चला चुके हैं जो इलाके विकास दुआ के पास हैं. वहीं, एटीपी हेडक्वार्टर के नाम पर लखबीर सिंह को भी अब खाली बिठाकर मोटा वेतन देने का कोई औचित्य नहीं रह जाता. उन्हें भी फिल्ड में लगाकर हेड ड्राफ्ट्समैन को काम के बोझ से मुक्त कर देना चाहिए. वैसे मेयर राजा और निगम कमिश्नर लाकड़ा जिसका चाहें शोषण कर सकते हैं. निगम में तो वैसे भी फिलहाल इन्हीं दोनों का राज चलता है. अगर वह चाहें तो अब भी विकास दुआ और रविंदर कुमार का शोषण कर अपने चहेते एटीपी को मौज का अवसर दे सकते हैं. फाइलों के बोझ तले दबे ये दोनों हेड ड्राफ्ट्समैन लाचार हैं और मेयर या कमिश्नर के फैसले का विरोध भी नहीं कर सकते. इन पीड़ित अधिकारियों के पास मेयर व कमिश्नर की बात मानने के अलावा दूसरा कोई चारा भी नहीं है. मेयर व कमिश्नर अगर इनका शोषण बंद नहीं करते तो नए स्थानीय निकाय मंत्री को इस पर ध्यान जरूर देना चाहिए. मेयर व कमिश्नर को भी अगर निगम को सुनियोजित तरीके से संचालित करना है तो सभी अधिकारियों में समान रूप से काम का बंटवारा करना चाहिए न कि एक अधिकारी को काम के बोझ तले दबाकर शोषण करें और दूसरे को पद के मुताबिक काम न देकर खाली बिठाते हुए उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित करना चाहिए. बहरहाल, राजा और लाकड़ा के मन की बात तो वही जानें पर यह देखना दिलचस्प होगा कि दोनों अधिकारियों को इस शोषण से निजात मिलती है या नहीं.

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