पंजाब

बेरी का राशन बिगाड़ेगा कालिया की सेहत, बेरी तो बच निकले पर तेरा क्या होगा ‘कालिया’, पढ़ें कैसे फजीहत करा बैठे कालिया?

Share now

नीरज सिसौदिया, जालंधर
बरसात के मौसम से मेढकों का रिश्ता बहुत गहरा होता है. साल भर तक बिलों में छुपे रहने वाले मेढक बरसात आते ही टर्र-टर्र करना शुरू कर देते हैं. कुदरत के इस नियम से सियासत भी अछूती नहीं है. जिस तरह से प्राकृतिक बरसात में मेढक बिलों से बाहर आने लगते हैं उसी तरह चुनावी बरसात में भी सियासी मेढक जोर-जोर से शोर मचाते नजर आते हैं. ऐसा ही कुछ इन दिनों जालंधर केंद्रीय विधानसभा हलके में देखने को मिल रहा है. तीन साल तक चैन की नींद सोने वाले सियासी मेढक बिलों से बाहर निकलते नजर आने लगे हैं. हाल ही में कुछ सियासी मेढक एक निजी होटल में मिले राशन को लेकर खूब हायतौबा मचाते नजर आए. ये वही सियासी मेढक हैं जो कभी मंत्री हुआ करते थे और इन दिनों अपनी ही पार्टी में अपना अस्तित्व बचाने की कवायद में जुटे हैं. कहते हैं विनाश काले विपरीत बुद्धि. पूर्व स्थानीय निकाय मंत्री मनोरंजन कालिया का हाल भी कुछ ऐसा ही हो गया है. कालिया अब अपने ही बिछाए जाल में फंसते नजर आ रहे हैं. आधी-अधूरी तैयारी के साथ कोरोना काल में खेला गया कालिया का यह दांव उनकी बची-कुची छवि को भी पलीता लगा रहा है. कालिया जिस राशन को लेकर हायतौबा मचा रहे वो राशन वाकई में राजेंद्र बेरी द्वारा गबन करके लाया गया है, यह साबित करने में कालिया के लिए सात जन्म भी कम पड़ जाएंगे. इसके कई कारण हैं. पहला यह कि जिस होटल से राशन मिलने का आरोप कालिया लगा रहे हैं वो होटल राजेंद्र बेरी का नहीं बल्कि उनके किसी करीबी का बताया जा रहा है. अब अगर कल को कालिया के किसी करीबी के पास तस्करी का सामान मिल जाए तो क्या पुलिस कालिया को तस्कर मान लेगी या कालिया तस्कर हो जाएंगे, बिल्कुल नहीं. ऐसे में बेरी गुनहगार कैसे साबित हो सकते हैं. इसके उलट कालिया इस मामले में महामारी एक्ट के उल्लंघन के दोषी जरूर बन गए. पंजाब सरकार को उन पर सोशल डिस्टेंसिंग के उल्लंघन का मुकदमा दर्ज करने का अधिकार जरूर मिल गया. अब अगर बात निकली ही है तो दूर तलक जाएगी ही. गड़े मुर्दे फिर से उखड़ेंगे.
अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने की कालिया की आदत बहुत पुरानी है. एक दौर हुआ करता था जब जालंधर केंद्रीय विधानसभा सीट से विधायक तो कालिया हुआ करते थे लेकिन उनके कार्यकाल के दौरान पार्षद पद पर बेरी का ही कब्जा रहता था. कहा जाता है कि अमरजीत सिंह अमरी कहीं कालिया की कुर्सी के दावेदार न बन जाएं इसलिए उन्होंने कभी अमरी को जीतने ही नहीं दिया. यही वजह रही कि अंदरखाते कालिया हमेशा बेरी की मदद करते रहे. उस वक्त कालिया यह भूल गए थे कि बेरी के रूप में वह एक ऐसा विरोधी तैयार कर रहे हैं जो हर मामले में उन्हें मात देने का माद्दा रखता है बस जरूरत थी तो सिर्फ एक मौके की. वक्त बदला और बेरी को मौका भी मिला. मौका मिलते ही बेरी ने कालिया को चारों खाने चित कर दिया. चित भी ऐसे किया कि कालिया का कद अपनी ही पार्टी में कम होता गया और एक दौर वो आया जब राकेश राठौर कालिया का मजबूत विकल्प बनकर उभरे. बेबस कालिया के पास खामोश रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. कालिया को दूसरा झटका तब लगा जब खुलेआम कालिया को बेइज्जत करने वाले किशनलाल शर्मा की पार्टी में दोबारा एंट्री हुई. कालिया कभी नहीं चाहते थे कि किशनलाल की भाजपा में घर वापसी हो लेकिन उनकी एक नहीं चली और किशनलाल फिर से भगवा रंग में रंग गए. यह बात भाजपा का बच्चा-बच्चा जानता है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में जालंधर सेंट्रल विधानसभा सीट से भाजपा की टिकट के सबसे मजबूत दावेदार राकेश राठौर हैं. अपनी पार्टी में मुंह की खाने वाले कालिया का हाल अब खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे वाला हो गया है. बेरी के खिलाफ कई मुद्दे थे जिन्हें कालिया हथियार बना सकते थे लेकिन कालिया ने ऐसा मुद्दा उठाया जिसमें बेरी दूर-दूर तक फंसते नजर नहीं आ रहे. हां कालिया का अतीत जरूर सामने आने लगा है. सियासी गलियारों में चर्चा है कि कालिया अब चाहे जितना शोर मचा लें लेकिन जब पूर्व पार्षद मनजिंदर सिंह चट्ठा के जेसी रिसॉर्ट में गरीबों का गेहूं, चावल और चना भेजा जाता था तो कालिया का गरीब प्रेम कहां था? उनका हिसाब कालिया ने क्यों नहीं दिया? बेरी को आईना दिखाने के चक्कर में कालिया अपनी ही सूरत बिगाड़ बैठे. राजेंद्र बेरी यह पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि वो राशन जरूरतमंद लोगों को बांटने के लिए ही रखा गया था जिसे उन्होंने अपने दोस्तों और एनजीओ की मदद से एकत्र किया था. वह सरकारी राशन नहीं था. साथ ही बेरी ने कालिया पर सरकारी काम में बाधा पहुंचाने का भी आरोप लगाते हुए कार्रवाई की भी बात कही है. निश्चित तौर पर सरकारी अफसर को रोकने का कालिया को कोई हक नहीं था. अब सिवाय फजीहत कराने के कालिया के पास कुछ नहीं बचा. कालिया का कहना था कि केंद्र सरकार की ओर से गरीबों के लिए यह राशन भेजा गया था लेकिन कालिया को यह नहीं मालूम कि उनके हलके के लिए कितना राशन भेजा गया था. अपनी ही पार्टी की सरकार द्वारा भेजे गए राशन के बारे में जब कालिया पता नहीं कर पा रहे तो फिर बेरी के राशन के बारे में उनकी जानकारी कितनी पुख्ता होगी इसका अंदाजा खुद ब खुद लगाया जा सकता है. ऐसा नहीं है कि बेरी की कोई कमजोरी ही नहीं है लेकिन कालिया उस कमजोर नब्ज को पकड़ने में नाकाम साबित हुए हैं. उम्र का असर अब कालिया की सियासत पर भी दिखने लगा है. यही वजह है कि बड़े-बड़े मुद्दों को छोड़ कर कालिया अब होटलों में राशन ढूंढते फिर रहे हैं. एक दौर था जब कालिया की गिनती तेज तर्रार राजनेताओं में हुआ करती थी लेकिन जब से उन्होंने ओबरॉय सरीखे दिग्गज सियासतदानों से दुश्मनी लेनी शुरू कर दी तब से उनका सियासी कद भी छोटा होने लगा है. बहरहाल, बेरी का राशन कालिया के लिए सियासी बदहजमी की वजह बनता जा रहा है जो उनकी सियासी सेहत के लिए घातक साबित हो सकता है.

Facebook Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *