नीरज सिसौदिया, बरेली
कहते हैं हुनर अमीरी-गरीबी देखकर नहीं आता. बात जब पिता के सपने की हो तो बेटियों से बेहतर उसे कौन समझ सकता है. ये बेटियां ही तो होती हैं जो अपने पिता के सपनों की खातिर अपने सपनों को दिल के किसी कोने में दबा लेती हैं. माहिरा खातून भी एक ऐसी ही बेटी का नाम है जिसने अपनी चाहत की जगह पिता के सपनों को चुना. लोअर मिडिल क्लास फैमिली से ताल्लुक़ रखने वाली माहिरा न सिर्फ एक बेहतर बेटी हैं बल्कि एक उम्दा कलाकार भी हैं. नेचर से उन्हें बेहद प्रेम है और अपने इसी प्रेम को वह करियर के तौर पर आगे बढ़ाना चाहती हैं. माहिरा का अब तक का सफर बेहद दिलचस्प रहा है. वैसे तो माहिरा बचपन से ही कागजों पर खींची गई लकीरों को तस्वीरों का रूप देती थीं लेकिन अपनी कला को एक दिशा देने का सफर उन्होंने नौवीं क्लास से शुरू किया था. रुहेलखंड विवि की पूर्व छात्रा माहिरा खातून अब इंटरनेशनल कलाकार बन चुकी हैं. माहिरा बताती हैं, ‘ मुझे बचपन से ही नेचर से बहुत ज्यादा लगाव रहा है. मैं नौवीं क्लास में साइंस स्ट्रीम से पढ़ाई करना चाहती थी लेकिन मेरे पिता ने मुझे आर्ट्स लेने के लिए काफी एनकरेज किया. वो चाहते थे कि मैं आर्ट्स लूं और एक बेहतर कलाकार बनकर अपना और अपने परिवार का नाम रोशन करूं. नौवीं में हमारा मुख्य सब्जेक्ट नेचर होता है. इसलिए मैंने इसे एज ए करियर चुना.’
माहिरा के पिता ने मुफलिसी को बेहद करीब से देखा है. उनके पिता मो. शरीफ एक फैक्ट्री में मजदूरी किया करते थे. गरीबी के चलते उन्हें बीच में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी और परिवार पालने के लिए समाचार पत्र विक्रेता बन गए. बेटा और बेटी में वह कोई फर्क नहीं समझते. माहिरा उनकी इकलौती बेटी है. शरीफ नहीं चाहते थे कि जिस तरह से उन्हें मुसीबतें झेलनी पड़ीं उसी तरह उनकी बेटी को भी परेशानियों से रूबरू होना पड़े. यही वजह है कि बेटी की परवरिश में उन्होंने कभी कोई कमी नहीं आने दी और बेटी ने भी पिता की मेहनत को सार्थक कर दिखाया.
माहिरा नौवीं क्लास से ही पेंटिंग बनाने लगी थीं. धीरे धीरे निखार आता गया और माहिरा की पेंटिंग्स प्रदर्शनी की शोभा बढ़ाने लगीं. माहिरा बताती हैं, ‘ पहली बार मेरी पेंटिंग्स को जिस एग्जिबिशन में जगह मिली थी वह वर्ष 2018 में युगवीणा कैंट में लगी थी. उस टाइम पर मैं सिर्फ वाटर कलर करती थी. मैेंने देखा था कि जो आर्टिस्ट होते हैं वो एग्जिबिशन करते हैं तो मैं भी चाहती थी कि मेरी भी पेंटिंग्स एग्जिबिशन का हिस्सा बने तो मैंने अपने कुछ टीचर्स के जरिये ट्राय किया और मेरी पेंटिंग्स को भी सेलेक्ट कर लिया गया.’
युगवीणा में एग्जिबिशन में अपनी जगह बनाने के बाद माहिरा के हौसले बुलंद हो गए थे. इसके बाद उनकी सफलता का जो सफर शुरू हुआ वो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ओमान तक पहुंचा. मायरा बताती हैं, ‘ युगवीणा के बाद कई एग्जिबिशन लगीं. मेरी पेंटिंग्स लखनऊ, दिल्ली, बरेली, प्रयागराज कुंभ में 17 फरवरी 2019 में और उसके बाद रेवाड़ी हरियाणा में प्रदर्शित हुईं. जब मेरी पेंटिंग रेवाड़ी में प्रदर्शित हुई तो वहां ओमान के भी कुछ आर्टिस्ट आए हुए थे. उन्होंने मेरे वर्क को बहुत ज्यादा सराहा. वहां पर जब एग्जिबिशन और कॉम्पिटिशंस हुए तो उन्होंने वहां एज ए आर्टिस्ट गेस्ट मेरी पेंटिंग्स को मंगाया था. मैंने वहां अपनी पेंटिंग भेजी तो वहां वाटर कलर और ऑयल पेंटिंग में दो कैटगरी में मेरी पेंटिंग सेलेक्ट हुई और उन्हें अवार्ड मिला.
माहिरा ने पेंटिंग बनाने के लिए कोई स्पेशल ट्रेनिंग नहीं ली. उन्होंने गरीबी और बेबसी को करीब से महसूस किया है. शायद यही वजह है कि अब वह गरीब बच्चों के लिए भी कुछ करना चाहती हैं. उन्होंने जो कुछ सीखा अपने शौक से ही सीखा लेकिन वह उन बच्चों को अपना हुनर सिखाना चाहती हैं जो सीखना तो चाहते हैं लेकिन गरीबी के चलते कहीं ट्रेनिंग नहीं ले सकते. भविष्य की योजनाओं के बारे में पूछने पर माहिरा कहती हैं, ‘मैंने पेंटिंग की कहीं से कोई स्पेशल ट्रेनिंग नहीं ली. जो भी सीखा बरेली कॉलेज और साहू राम स्वरूप के अपने टीचरों और अपने शौक से सीखा लेकिन मैं उन गरीब बच्चों को भी सिखाना चाहती हूं जो अभावों के चलते सीखने में सक्षम नहीं हैं. मैं एक पेंटिंग आर्टिस्ट के तौर पर अपना करियर बनाना चाहती हूं और यह भी चाहती हूं कि मैं इतना गेन कर सकूं कि उन गरीब बच्चों को मुफ्त में सिखा सकूं जो गरीबी के चलते नहीं सीख सकते.’
बहरहाल, ओमान तक देश की शान बढ़ाने वाली बरेली के फूलबाग की बेटी माहिरा का सफर अभी जारी है.