इंटरव्यू

इत्तफ़ाक से आई थी राजनीति में, नहीं हारी एक भी चुनाव, वार्ड जीता लगातार, विधायक की हैं दावेदार, पढ़ें शालिनी जौहरी का स्पेशल इंटरव्यू…

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शालिनी जौहरी भी कभी उन आम लड़कियों की तरह ही थीं जिनकी दुनिया घर से शुरू और स्कूल पर खत्म हुआ करती थी. आसपास के मोहल्लों से भी अंजान रहने वाली शालिनी ने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन वह बरेली भाजपा का एक नामी चेहरा बन जाएंगी. एक भोली भाली लड़की कैसे सियासत के फलक पर चमकने लगी? राजनीति में कैसे आना हुआ? शालिनी बीस वर्षों से वार्ड जीतती आ रही हैं. क्या वह विधानसभा चुनाव लड़ना चाहती हैं? इन बीस वर्षों में बतौर पार्षद शालिनी की क्या उपलब्धियां रहीं? वार्ड की सबसे बड़ी समस्या वह किसे मानती हैं? पहला चुनाव महज 34 वोटों से जीतने वाली शालिनी जौहरी ने अंतिम चुनाव 1193 वोटों से जीता था. उनकी जीत का मंत्र क्या है? इन्हीं मुद्दों पर शालिनी जौहरी ने नीरज सिसौदिया से खुलकर बात की. पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश…
सवाल : आपका बचपन कहां बीता, पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या रही?
जवाब : मैं मूलरूप से बरेली की रहने वाली हूं. छह भाई बहनों में सबसे बड़ी हूं. मेरा मायका मेरे ही वार्ड में भूड़ पटे की बजरिया में है. मैंने कन्या इंटर कॉलेज से पढ़ाई की थी. मेरे मायके से दो तीन गली छोड़कर ही मेरा ससुराल है. वर्ष 1990 में मेरी शादी एडवोकेट अनुजकांत सक्सेना से हुई थी. वह अधिवक्ता परिषद संघ के जिला अध्यक्ष भी हैं और लंबे समय से संघ से जुड़े हुए हैं.
सवाल : राजनीति में कब और कैसे आना हुआ?
जवाब : मेरा राजनीति में आना एक इत्तफाक था. मैं एक आम महिला की तरह अपनी जिंदगी को एंज्वाय कर रही थी. वर्ष 2000 में तत्कालीन वार्ड 28 महिला आरक्षित हो गया. स्व. केवल कृष्ण भाईसाहब उस समय अध्यक्ष थे. उन्होंने मेरे पति से कहा कि शालिनी को चुनाव लड़वाओ और इस तरह मैंने चुनाव लड़ा. तब मेरी शादी को दस साल हो चुके थे और मेरा बेटा उस वक्त साढ़े तीन साल का था. तब 2500 में से 1250 वोट मिले जिसमें निर्दलीय प्रत्याशी फहमिदा बेगम को 34 वोटों से हराया था.
सवाल : अब तक का राजनीतिक सफर कैसा रहा?
जवाब : अब तक का सफर काफी अच्छा रहा है. मैंने लगातार चार बार चुनाव जीता है. लोगों का इतना प्यार मिल रहा है कि पहला चुनाव मैंने 34 वोट से जीता था और चौथा चुनाव 1193 वोटों से जीता. इसे मैं अपनी बड़ी उपलब्धि मानती हूं.


सवाल : आपकी लगातार जीत की वजह क्या रही, पति का कितना सहयोग मिला?
जवाब : मेरी लगातार जीत की वजह जनता के लिए मेरी सहज उपलब्धता है. वार्ड के विकास के काम कराना एक अलग बात है क्योंकि वह सिस्टम का हिस्सा है लेकिन व्यक्तिगत रूप से लोगों के बीच सहज रूप से उपलब्ध रहती हूं. ऐसा नहीं है कि मुझसे मिलने के लिए पहले बेटे से मिलना पड़ेगा या पति से परमिशन लेनी पड़ेगी. मैं सबके लिए हर वक्त उपलब्ध रहती हूं. मैं उन महिला जनप्रतिनिधियों की तरह नहीं हूं जिन्हें राजनीति में रबर स्टाम्प कहा जाता है. मैं लोगों की हर समस्या में उनके साथ सड़क पर खड़ी रहती हूं. मेरे पति तो अपने वकालत के काम से ही निगम जाते हैं. कभी पार्षद पति की हैसियत से नहीं गए.
सवाल : आप बीस वर्षों से वार्ड की पार्षद हैं. क्या जरूरत या कमी महसूस होती है अपने वार्ड में?
जवाब : पानी और सीवर का काम तो मैंने अपने वार्ड में करवा दिया है इन बीस वर्षों में. लेकिन मुझे लगता है कि वार्ड का मैनेजमेंट ठीक तरीके से नहीं हो पाया. यातायात का दबाव बहुत ज्यादा है. ये मेरे कार्यक्षेत्र में नहीं आता लेकिन प्रयास काफी करते रहते हैं. मेरे वार्ड में कुल सात पार्क हैं जिनमें से दो पार्कों की हालत बहुत ज्यादा अच्छी नहीं है. ये पार्क नए शामिल हुए थे मेरे वार्ड में. उन्हें भी सुधारने का प्रयास कर रहे हैं. पांच पार्क सुधार चुकी हूं. ब्रजलोक पार्क में ओपन जिम भी खुल चुका है. वहीं, सड़कों की स्थिति भी खराब है. अशोक विहार, नेहरू पार्क कॉलोनी आदि कुछ नए इलाके भी शामिल हुए थे जब पिछले चुनावों से पहले परिसीमन हुआ था.


सवाल : आप बीस वर्षों से लगातार पार्षद का चुनाव जीतती आ रही हैं. कभी कोई चुनाव नहीं हारी. क्या विधानसभा चुनाव या मेयर का चुनाव लड़ना चाहती हैं?
जवाब : देखिये, मेरा मानना है कि अगर राजनीति में इच्छाएं न हों तो राजनीति करना बेकार है. मैं पार्षद दल की मुख्य सचेतक भी हूं. लेकिन जैसा कि मैंने बताया कि मैं राजनीति में इत्तफाक से आई थी. पार्टी ने मेरे बारे में सोचा और मुझे पार्षद के लायक समझा जबकि मेरा उस वक्त राजनीति से कोई लेना देना ही नहीं था और आज मुझे बीस साल हो गए पार्षद बनते हुए. तो हमारी पार्टी में जनप्रतिनिधि नहीं सोचता है चुनाव लड़ने के बारे में, पार्टी सोचती है कि किसे चुनाव लड़ाना है और किसे नहीं? अगर पार्टी मुझे इस लायक समझेगी तो मैं शहर विधानसभा सीट से जरूर विधानसभा चुनाव लड़ूंगी.
सवाल : जनता ने आपको चार बार पार्षद चुना. बदले में आपने जनता को क्या दिया? बतौर पार्षद क्या उपलब्धियां मानती हैं इन बीस वर्षों की?
जवाब : सबसे बड़ी उपलब्धि मैं स्ट्रीट लाइट की व्यवस्था की मानती हूं. जब मैं पहली बार पार्षद बनी थी तो स्ट्रीट लाइट का इतना बुरा हाल था कि उसके नट बोल्ट तक जाम हो चुके थे. आज मेरे वार्ड में स्ट्रीट लाइट की समस्या लगभग खत्म हो चुकी है. दूसरी उपलब्धि सड़कों की है. अगर वार्ड में नए शामिल हुए इलाकों को छोड़ दें तो मैंने अपने वार्ड की सड़कें एकदम चकाचक बनवा दी हैं. एक नाला कइयां है जो जगतपुर से किले तक जाता है. उसका कुछ हिस्सा मेरे वार्ड से भी जाता है. बरसात में वार्ड के निचले घरों में जलभराव की ऐसी स्थिति हो जाती थी कि लोगों को अपना बेड दूसरी मंजिल तक ले जाना पड़ता था और जिनके घरों में दूसरी मंजिल नहीं होती थी उन्हें घर छोड़कर अन्यत्र शरण लेनी पड़ती थी. मैंने उसका निर्माण कराया. नाले के किनारे पूरी बीडीए कॉलोनी बसी हुई है. अब अगर 8-10 घंटे तक लगातार बरसात होने पर ही जलभराव होता है वरना थोड़ी बरसात में स्थिति ठीक रहती है.


सवाल : क्या आप समाजसेवा के क्षेत्र में भी सक्रिय भूमिका निभा रही हैं?
जवाब : मैं सामाजिक संगठनों से जुड़ी होने के साथ ही सामाजित गतिविधियों में भी सक्रिय रहती हूं. मैं कायस्थ चेतना मंच की महिला जिला अध्यक्ष हूं. अखिल भारतीय कायस्थ महासभा में राजनीतिक प्रकोष्ठ की जिला महासचिव हूं. मैंने मुस्लिम लड़कियों का निकाह भी करवाया और कायस्थ एवं कश्यप समाज की बेटियों का भी विवाह करवाया. इसके अलावा मैं अखिल भारतीय कल्याणकारी सभा की प्रदेश उपाध्यक्ष हूं.
सवाल : आप बरेली में जन्मी और यहीं पली बढ़ीं. बरेली शहर को आपने बेहद करीब से देखा है. शहर के विकास को आप किस नजरिये से देखती हैं?
जवाब : जहां तक मैंने जाना है, बरेली का विकास उस रफ्तार से नहीं हुआ जिस रफ्तार से होना चाहिए था. कहां किस चीज में कमी रह गई यह तो सिस्टम की बातें हैं. बरेली की आवश्यकता थी एक सुनियोजित ट्रैफिक प्लान की लेकिन वह नहीं बन सका. आज भी पूरा शहर जाम से जूझ रहा है. जिला अस्पताल की कई सुविधाएं आज भी लोगों को नहीं मिल पा रही हैं. सड़कें नहीं बनी हैं. जनता छोटे इलाकों में रहती है. पुराने शहर में तो विकास हुआ ही नहीं. सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट बंद होना शहर के विकास की सबसे बड़ी बाधा है. जो काम अब हो रहे हैं शहर में ये काम बहुत पहले ही हो जाने चाहिए थे. बरेली में औद्योगिक विकास की रफ्तार भी बेहद धीमी है. रोजगार नहीं हैं. महिलाओं को हुनर के अनुसार काम नहीं मिल पा रहा है. यहां जरी जरदोजी का बहुत बड़ा कारोबार था लेकिन महिलाओं को उस काम में दस से 15 रुपए प्रति घंटा मिलता था. बड़े कारोबारी अमीर होते गए और कलाकारों को उनकी मेहनत का पैसा भी नहीं मिल पाया जिस कारण यहां से कलाकारों के साथ ही कला का भी पलायन होता जा रहा है.


सवाल : तो इस पलायन को रोकने का प्रयास किसे करना चाहिए? आपने कभी इस दिशा में प्रयास नहीं किए?
जवाब : जनप्रतिनिधियों और सरकार को इस दिशा में प्रयास करने चाहिए.मेरी केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार से इस संबंध में बात हुई थी. उन्होंने काफी प्रयास भी किए थे. लेकिन कोई ठोस इंतजाम अभी तक नहीं हो पाया है.
सवाल : विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं. ऐसे में आप अपने वार्ड में सरकार की किन उपलब्धियों पर भाजपा के लिए वोट मांगेंगी?
जवाब : मैं कोरोना काल के दौरान केंद्र सरकार और प्रदेश सरकार द्वारा किए गए कार्यों और वार्ड में कराए गए विकास कार्यों के आधार पर जनता से वोट मांगूंगी और मुझे पूरा यकीन है कि भाजपा एक बार फिर से प्रदेश में सरकार बनाएगी.

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