वो एलएलबी पास थे मगर व्यंग्य में उन्हें महारथ हासिल थी. वह कवि भी थे और समाजसेवी भी. समाजसेवा और साहित्य उनके जीवन के दो महत्वपूर्ण अंग थे. जब जहां जिसकी जरूरत होती वह उसी रूप में नजर आते थे. एलएलबी पास कारोबारी, साहित्यकार और समाजसेवी शायद ही बरेली की कोई शख्सियत ऐसी हुई जिसमें इन तीनों खूबियों का संगम हो. जी हां हम बात कर रहे हैं जाने माने व्यंग्यकार, कवि एवं लोकप्रिय समाजसेवी स्व. अशोक आर्य की. उनका जन्म कासगंज (जनपद -एटा) उत्तर प्रदेश में 6 जुलाई सन् 1953 को हुआ था। सन् 1957 में उनके पिता स्व. गंगाचरण आर्य एवं माता स्व. शील परिवार सहित बरेली में आकर विभिन्न क्षेत्रों में किराए पर रहे। सन् 1963 में स्थानीय कालीबाड़ी में उनके पिता ने निजी मकान बनवा लिया. तब से उनका स्थायी निवास कालीबाड़ी, बरेली में ही रहा।
बीए एलएलबी तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात उनका विवाह सन् 1975 में बिल्सी बदायूं की प्रमोद कुमारी के साथ हुआ जो आर्य समाजी परिवार से थीं। अशोक आर्य की मुख्य लेखन विधा व्यंग्य व लेख रही। वह प्रखर वक्ता भी थे। अनेक प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। अनेक साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा उन्हें विभिन्न उपाधियों से अलंकृत किया जा चुका है। राष्ट्रीय समस्या समाधान परक- कल्याण काव्य माला (शिरोमणि काव्य संकलन) 2011 जिसके संपादक स्मृति शेष ज्ञान स्वरूप ‘कुमुद’ थे के प्रेरक आर्य जी ही थे। साहित्यकार ‘कुमुद’ द्वारा संपादित ‘कल्याण कुंज’- 1986 में अशोक आर्य का विस्तृत परिचय उल्लिखित है. कई साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं में विभिन्न प्रमुख पदों पर रहते हुए अपने दायित्व का सफलता से निर्वहन करने वाले अशोक आर्य कवि गोष्ठी आयोजन समिति के उपाध्यक्ष भी रहे और अपने कार्यकाल में कई कवि सम्मेलन व सम्मान समारोहों का संयोजन किया। वह आर्य समाजी परिवार के होने के कारण आर्य समाजी सिद्धांतों का पालन करते रहे। कई कवि गोष्ठियों में भी उन्होंने यज्ञ का आयोजन भी। वेदों में उनकी अटूट आस्था रही। आर्य समाज अनाथालय बरेली से भी संबद्ध रहे।
स्थानीय श्यामगंज में आदर्श मिष्ठान भंडार के नाम से अपना व्यवसाय चलाते रहे। वर्तमान में उनके माता-पिता के नाम से बड़े भाई डॉ. नवल किशोर गुप्ता शील अस्पताल, गंगाचरण एवं गंगाशील अस्पताल जैसे अनेक प्रतिष्ठित चिकित्सीय एवं शैक्षिक संस्थान चला रहे हैं। अशोक आर्य असहाय निर्धन छात्र -छात्राओं को नि:शुल्क शिक्षा देने हेतु भी सदैव प्रतिबद्ध रहे। उनकी सेवा जनहित में हर समय उपलब्ध रहती थी। सदैव दूसरों की मदद को तत्पर रहते। सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध जोर- शोर से आवाज उठाई और दहेज रहित कई शादियां करवाने में भी अहम भूमिका निभाई. सहृदयी व उदार व्यक्तित्व के धनी श्री आर्य 4 नवंबर 2016 को गोलोक वासी हो गए। उनका निधन एक युग का अवसान है। आज उन्हीं की इन पंक्तियों से हम उन्हें नमन करते हैं-
अपराधी के चेहरे का रंग
जब उतरकर
किसी के हाथ आ जाता है
तभी वह
रंगे हाथों पकड़ा जाता है।
प्रस्तुति -उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट एवं साहित्यकार, बरेली