भोर के उजाले में,
पंछियों का कलरव है,
आज पता चला है।।
निर्मल लहरों के संग ,
नदियाँ भी गाती हैं,
आज पता चला है।
उजला-उजला सा गगन,
लगे नील वितान है,
आज पता चला है।
श्रंग से पर्वत लगे,
ज्यूं चूमने व्योम हैं,
आज पता चला है।
वृक्षों से श्वासों का ,
नाता अब मानव को,
आज पता चला है।
भूख, प्यास से व्याकुल,
पथिक का घर से नाता,
आज पता चला है।
घर में रहकर भी ना,
घरवालों से मिलना,
आज पता चला है।
दूर -दूर रहकर भी,
साथ रहने का सुख,
आज पता चला है।
आँखों ही आँखों में,
बातें भी होती हैं,
आज पता चला है।
थोड़े ही सामान से,
बनाती माँ पकवान,
आज पता चला है।
अनजाने शत्रु से डर,
डर भी तो डरता है,
आज पता चला है।
प्राण बचाते तत्पर,
धरती के भगवान ही
आज पता चला है
कुछ खट्टा कुछ मीठा,
चखकर कड़वा अनुभव,
आज पता चला है।
लेखिका-प्रमोद पारवाला
बरेली, उत्तर प्रदेश