चांद तारों का रौशन जहाँ चाहिए
उस जहाँ में मगर मुझको तू चाहिए
जिंदगी में मेरी हाँ कमी न कोई
बिन तेरे जिन्दगानी नहीं चाहिए
रोज आना तेरा, मुस्कुराना तेरा
राब्ता अब मुकम्मल मुझे चाहिए
तू तो मशहूर है दिल्लगी के लिये
ज़िक्र अपना जुबाँ से तेरी चाहिये
माना दुनिया है तारों की रौशन मगर
रहने के लिए तो जमीं चाहिए
तेरे शहरों की रंगी ये आबो हवा
बस सुकूं की मुझे एक निशा चाहिए.
– डा. निशा शर्मा, असिस्टेंट प्रोफेसर, डिपार्टमेंट ऑफ एजुकेशन, इनवर्टिस यूनिवर्सिटी, बरेली