पता नहीं है कौन कहाँ पर, हाय मवाली अब कहलाए
आज माफिया की चलती है, जो सज्जन का दिल दहलाए।
हुई व्यवस्था ध्वस्त यहाँ पर, सत्ता का मुँह भला क्यों सिला
बनकर क्यों मौसेरा भाई, चोर- चोर से खूब अब मिला
फँसा मुचलका पाबंदी में, सद्भावों को जो सहलाए
आज माफिया की चलती है, जो सज्जन का दिल दहलाए।
अगर कहीं नाराज हो गए, जो हैं जनता के रखवाले
हनक दिखाकर देखो अपनी, कितने घर चौपट कर डाले
उत्पीड़ित अब बदहाली में, बोलो कैसे मन बहलाए
आज माफिया की चलती है, जो सज्जन का दिल दहलाए।
सूदखोर करते मनमानी, उनके हित में बने कहानी
कर्जदार फाँसी पर झूला, कितनी आँखों में था पानी
यम को गुस्सा आए उस पर, जिसने फरियादी टहलाए
आज माफिया की चलती है, जो सज्जन का दिल दहलाए।
मानवता की लाज लुट रही, याद आ रही उसको नानी
तिकड़म से जब काम सफल हो, कौन करेगा आनाकानी
सत्य- अहिंसा को भी कोई, हाय आँसुओं से नहलाए
आज माफिया की चलती है, जो सज्जन का दिल दहलाए।
रचनाकार- उपमेंद्र सक्सेना एड.
‘कुमुद- निवास’
बरेली (उ०प्र०)
मोबा.- 98379 44187