नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली
विगत विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़कर समाजवादी पार्टी का दामन थामने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री और सपा के राष्ट्रीय महासचिव सलीम इकबाल शेरवानी ने पार्टी के महासचिव पद से रविवार को अपना इस्तीफा सौंप दिया। स्वामी प्रसाद मौर्य के बाद महासचिव पद पर यह दूसरा इस्तीफा है। दोनों नेताओं की नाराजगी की वजह भी एक ही बताई जा रही है।
अपना इस्तीफा सौंपने के बाद शेरवानी ने कहा कि पार्टी में मुस्लिम नेताओं की उपेक्षा के कारण उन्होंने यह इस्तीफा सौंपा है।
बताया जाता है कि सलीम शेरवानी को उम्मीद थी कि पार्टी उन्हें राज्यसभा भेजेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पार्टी ने एक बार फिर जया बच्चन पर भरोसा जताया।
दरअसल, शेरवानी उसी वक्त से नाराज बताए जा रहे हैं जब अखिलेश यादव ने पिछले दिनों बदायूं लोकसभा सीट से अपने चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को पार्टी का उम्मीदवार घोषित कर दिया। सलीम शेरवानी भी बदायूं सीट से ही लोकसभा चुनाव लड़ते आ रहे थे। उन्हें उम्मीद थी कि पार्टी उन्हें बदायूं से ही लोकसभा का उम्मीदवार बनाएगी। उनकी यह उम्मीद उस वक्त और मजबूत हो गई जब पार्टी ने धर्मेंद्र यादव को आजमगढ़ लोकसभा सीट पर उपचुनाव में प्रत्याशी बनाया। यह सीट अखिलेश यादव के लोकसभा सदस्य पद से इस्तीफा देने के बाद खाली हुई थी। जब धर्मेंद्र यादव सपा के लिए सुरक्षित मानी जाने वाली आजमगढ़ सीट से चुनाव हार तो उस वक्त शेरवानी को लगा कि अब थर्मेंद्र यादव की सियासत का अंत हो चुका है और सलीम शेरवानी पार्टी में उनकी जगह आसानी से हासिल कल सकते हैं। लेकिन बाजी उस वक्त पलट गई जब अखिलेश ने बदायूं से धर्मेंद्र यादव को लोकसभा उम्मीदवार घोषित कर दिया। सलीम शेरवानी के लिए यह करारा झटका तो था लेकिन उन्हें यह उम्मीद थी कि शायद पार्टी उन्हें राज्यसभा भेजेगी । लेकिन पार्टी ने उन्हें राज्यसभा भी नहीं भेजा। अब शेरवानी के पास कोई विकल्प नहीं रह गया था जिसके चलते उन्होंने महासचिव पद से इस्तीफा देते हुए पार्टी नेतृत्व पर कई गंभीर आरोप लगा डाले। साथ ही अगले कदम के बारे में जल्द ही खुलासा करने की बात भी कही है।
माना जा रहा है कि सलीम शेरवानी जल्द ही सपा से भी इस्तीफा देकर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो सकते हैं। हालांकि, कुछ राजनीतिक जानकारों का मानना है कि शेरवानी एक बार फिर अपनी पुरानी पार्टी कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं या चुनाव लड़ने के लिए बसपा का दामन भी थाम सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो एक बार फिर समाजवादी पार्टी को बदायूं लोकसभा सीट गंवानी पड़ सकती है। भाजपा में उनका जाना फिलहाल इसलिए मुश्किल नजर आता है क्योंकि शेरवानी को भाजपा में शामिल करना भाजपा के लिए उतना फायदेमंद नहीं होगा जितना कि किसी और पार्टी के टिकट पर शेरवानी का बदायूं सीट से लोकसभा चुनाव लड़ना। अगर शेरवानी बसपा या कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ते हैं तो वह बड़ी तादाद में मुस्लिम वोट तोड़ने में सफल हो सकते हैं जिसका फायदा सीधा भाजपा को मिलेगा और वर्ष 2019 की तरह एक बार फिर धर्मेंद्र यादव की हार का सबसे बड़ा कारण शेरवानी बन सकते हैं।
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