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रेलकर्मियों को 78 दिन के वेतन के बराबर बोनस, एक लाख करोड़ की कृषि योजनाएं, हरियाणा चुनाव से दो दिन पहले मोदी सरकार ने की सौगातों की बौछार, पढ़ें केंद्रीय मंत्रिमंडल के सारे फैसले

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नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली
रेलवे कर्मचारियों के उत्कृष्ट प्रदर्शन को देखते हुए सरकार ने इस साल दिनों के वेतन 78 दिनों के वेतन के बराबर उत्पादकता आधारित बोनस (पीएलबी) देने का फैसला किया है जो करीब 2028.57 करोड़ रुपये होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की गुरुवार को यहां हुई बैठक में यह निर्णय लिया गया। रेल, सूचना प्रौद्योगिकी एवं सूचना प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने आज रात यहां एक संवाददाता सम्मेलन में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि सरकार ने 78 दिनों के पीएलबी के भुगतान को मंजूरी दे दी है। इससे 11,72,240 रेलवे कर्मचारियों को लाभ मिलेगा तथा 2028.57 करोड़ रु. यह राशि रेलवे कर्मचारियों की विभिन्न श्रेणियों जैसे ट्रैक मेंटेनर, लोको पायलट, ट्रेन मैनेजर (गाडर्), स्टेशन मास्टर, पर्यवेक्षक, तकनीशियन, तकनीशियन हेल्पर, पॉइंट्समैन, मिनिस्ट्रियल स्टाफ और अन्य ग्रुप एक्ससी स्टाफ को भुगतान की जाएगी। पीएलबी का भुगतान रेलवे कर्मचारियों को रेलवे के प्रदर्शन में सुधार की दिशा में काम करने के लिए प्रेरित करने के लिए एक प्रोत्साहन के रूप में कार्य करता है। पात्र रेलवे कर्मचारियों को पीएलबी का भुगतान प्रत्येक वर्ष दुर्गा पूजा/दशहरा की छुट्टियों से पहले किया जाता है। इस वर्ष भी लगभग 11.72 लाख अराजपत्रित रेलवे कर्मचारियों को 78 दिनों के वेतन के बराबर पीएलबी राशि का भुगतान किया जा रहा है। प्रति पात्र रेलवे कर्मचारी को देय अधिकतम राशि 78 दिनों के लिए 17,951/- रुपये है। वर्ष 2023-2024 में रेलवे का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा। रेलवे ने 158.8 करोड़ टन का रिकॉडर् माल लोड किया और लगभग 6.7 अरब यात्रियों को ले जाया। इस रिकॉडर् प्रदर्शन में कई कारकों का योगदान रहा। इनमें रेलवे में सरकार द्वारा रिकॉडर् पूंजीगत व्यय के कारण बुनियादी ढांचे में सुधार, परिचालन में दक्षता और बेहतर तकनीक आदि शामिल हैं।
वहीं, सरकार ने सतत कृषि को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री राष्ट्रीय कृषि विकास योजना और खाद्य सुरक्षा के लिए कृषि विकास योजना को स्वीकृति दी है और एक लाख करोड रुपए से अधिक की राशि का प्रावधान किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की गुरुवार को यहां हुई बैठक में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के इस आशय प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गयी। बैठक के बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने एक संवाददाता सम्मेलन में बताया कि कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत संचालित सभी केंद्रीय योजनाओं (सीएसएस) को दो प्रमुख योजनाओं में तकर्संगत बनाया जाएगा। ये योजनाएं प्रधानमंत्री राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (पीएम-आरकेवीवाई) और कृषि विकास योजना (केवाई) हैं । उन्होंने बताया कि पीएम-आरकेवीवाई टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देगी, जबकि केवाई खाद्य सुरक्षा और कृषि आत्मनिर्भरता को हासिल करेगी। सभी योजनाओं के कुशल और प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाया जायेगा। प्रधानमंत्री राष्ट्रीय कृषि विकास योजना और कृषि विकास योजना को 1,01,321.61 करोड़ रुपये के कुल व्यय के साथ क्रियान्वित किया जाएगा। इसमें केंद्र सरकार का हिस्सा 69,088.98 करोड़ रुपये और राज्य सरकारों का हिस्सा 32,232.63 करोड़ रुपये है। ये योजनाऐं राज्य सरकारों के माध्यम से लागू होंगी। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि कृषि से संबंधित सभी मौजूदा योजनाएं जारी रखी जा रही हैं। खाद्य तेल-तेल पाम के लिए राष्ट्रीय मिशन, स्वच्छ पौधा कार्यक्रम, डिजिटल कृषि और खाद्य तेल-तिलहन के लिए राष्ट्रीय मिशन जैसी योजनाएं चलती रहेगीं। उन्होंने कहा कि इन योजना के अंतर्गत राज्यों को योजनाओं को युक्तिसंगत बनाने का पूर्ण अधिकार होगा।
उधर, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बांग्ला भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने को मंजूरी दी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में यह निर्णय लिया गया। मंत्रिमंडल के फैसलों की जानकारी देते हुए सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा, ‘‘यह एक ऐतिहासिक निर्णय है और यह फैसला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राजग सरकार के हमारी संस्कृति को आगे बढ़ाने, हमारी विरासत पर गर्व करने और सभी भारतीय भाषाओं तथा हमारी समृद्ध विरासत पर गर्व करने के दर्शन के अनुरूप है।” सरकार ने कहा कि शास्त्रीय भाषाएं भारत की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत की संरक्षक के रूप में काम करती हैं, तथा प्रत्येक समुदाय के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक सार को प्रस्तुत करती हैं। भारत सरकार ने 12 अक्टूबर 2004 को ‘‘शास्त्रीय भाषा” के रूप में भाषाओं की एक नई श्रेणी बनाने का निर्णय लिया, जिसके तहत तमिल को शास्त्रीय भाषा घोषित किया गया तथा उसके बाद संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और उड़िया को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया। एक सरकारी बयान में कहा गया है कि 2013 में महाराष्ट्र सरकार की ओर से एक प्रस्ताव प्राप्त हुआ था जिसमें मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने का अनुरोध किया गया था। इस प्रस्ताव को भाषा विज्ञान विशेषज्ञ समिति (एलईसी) को भेज दिया गया था। एलईसी ने शास्त्रीय भाषा के लिए मराठी की सिफारिश की। महाराष्ट्र में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं और यह राज्य में एक बड़ा चुनावी मुद्दा था। बयान में कहा गया कि इस बीच, बिहार, असम और पश्चिम बंगाल से भी पाली, प्राकृत, असमिया और बांग्ला को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के प्रस्ताव प्राप्त हुए थे।
इसके अलावा, सरकार ने घरेलू तेल-तिलहन उत्पादन को बढ़ाने और भारत को खाद्य तेलों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए 10,103 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ खाद्य तेल-तिलहन पर एक राष्ट्रीय मिशन को मंजूरी दी है। भारत अपनी खाद्य तेलों की सालाना जरूरत का 50 प्रतिशत से अधिक आयात करता है। एक सरकारी बयान में कहा गया है, ‘‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में राष्ट्रीय खाद्य तेल-तिलहन मिशन (एनएमईओ-तिलहन) को मंजूरी दी गई, जो घरेलू तिलहन उत्पादन को बढ़ाने और खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता हासिल करने के उद्देश्य से एक ऐतिहासिक पहल है।” बयान में कहा गया है कि इस मिशन को वर्ष 2024-25 से वर्ष 2030-31 तक सात साल की अवधि में लागू किया जाएगा, जिसका वित्तीय परिव्यय 10,103 करोड़ रुपये होगा। इस मिशन के माध्यम से सरकार का लक्ष्य प्राथमिक तिलहन उत्पादन को वर्ष 2022-23 के 3.9 करोड़ टन से बढ़ाकर वर्ष 2030-31 तक 6.97 करोड़ टन करना है। इसमें कहा गया है, ‘‘इसका उद्देश्य तिलहन की खेती, अतिरिक्त 40 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में बढ़ाना है।” भारत- इंडोनेशिया और मलेशिया से पामतेल का आयात करता है जबकि वह सोयाबीन तेल का आयात ब्राजील और अर्जेंटीना से करता है। देश, सूरजमुखी मुख्य रूप से रूस और यूक्रेन से आयात करता है। बयान के अनुसार, नव स्वीकृत एनएमईओ-तिलहन प्रमुख प्राथमिक तिलहन फसलों जैसे रैपसीड-सरसों, मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी और तिल के उत्पादन को बढ़ाने के साथ-साथ बिनौला, चावल भूसी और पेड़ों से निकलने वाले तेलों जैसे द्वितीयक स्रोतों से संग्रह बढ़ाने और पेराई दक्षता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करेगा। एनएमईओ-ओपी (ऑयल पाम) के साथ मिलकर, मिशन का लक्ष्य वर्ष 2030-31 तक घरेलू खाद्य तेल उत्पादन को दो करोड़ 54.5 लाख टन तक बढ़ाना है, जो हमारी अनुमानित घरेलू आवश्यकता की लगभग 72 प्रतिशत जरूरत को पूरा करेगा। इसे उच्च उपज देने वाली उच्च तेल सामग्री वाली बीज किस्मों को अपनाने, चावल की परती भूमि में खेती का विस्तार करने और अंतर-फसल को बढ़ावा देकर प्राप्त किया जाएगा। सरकार ने कहा, ‘‘मिशन, जीनोम एडिटिंग जैसी अत्याधुनिक वैश्विक तकनीकों का उपयोग करके उच्च गुणवत्ता वाले बीजों के चल रहे विकास का लाभ उठाएगा।” बयान के अनुसार, ‘‘बीज उत्पादन के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए सार्वजनिक क्षेत्र में 65 नए बीज केंद्र और 50 बीज भंडारण इकाइयाँ स्थापित की जाएंगी।” बयान में कहा गया है, ‘‘मिशन का उद्देश्य घरेलू तिलहन उत्पादन को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाना, खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को आगे बढ़ाना, जिससे आयात निर्भरता कम हो और किसानों की आय को बढ़ावा देते हुए मूल्यवान विदेशी मुद्रा की बचत है।” सरकार ने बताया कि देश आयात पर बहुत अधिक निर्भर है। आयात अभी खाद्य तेलों की घरेलू मांग का 57 प्रतिशत है।

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