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त्योहार केवल पर्व ही नहीं संबधों की प्रगाढ़ता के सुअवसर हैं

होली ,दीवाली, दशहरा व अन्य केवल रंगों के खेलने व आतिशबाजी के त्यौहार ही नहीं है,अपितु दिलों का रंगना,मिलना इसमें परमआवश्यक है।रंगों के बहने के साथ ही मन का मैल बहना भी बहुत आवश्यक है ,तभी होली की सार्थकता है और दीपावली पर जाकर मिलना ,उनके हाथ से मीठा खाना, साथ हंसना बोलना ही पर्व […]

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अब कुएं के मेंढकों में भी बढ़ी उत्तेजना

अब कुएँ के मेंढकों में भी बढ़ी उत्तेजना सभी तुकबंदी करेंगे बन गयी यह योजना। एक को दादा बनाया जो कि कवियों से जला और फिर तो तिकड़मों का चला ऐसा सिलसिला माफिया का साथ पाकर उन्होंने सबको छला हुई कवि की पलक गीली उठे आँसू छलछला नहीं कोई साथ देगा, भाव यह मन में […]

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इक़ जमाना बीत गया भीगे बरसात में…

सोते नहीं छत पे पहले जैसे रात में। लगाते नहीं गले हर मुलाकात में।। बदल गया चलन अब जमाने का। देखते हैं कीमत हर भेंट सौगात में।। चकाचौंध रोशन बन गई दुनिया। अब यकीं घट गया जज्बात में।। बडे बूढ़ों के आशीर्वाद में रहा नहीं यकीं। बौखला जाते हैं बुजुर्गों की लात में।। दुनिया की […]

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शख़्सियत निशान छोड़ती है…

शख़्सियत निशान छोड़ती है। तहज़ीब खुद से बोलती है।। एक ही जुबाँ पर जहर शक्कर। कहते हैं झूठी जुबां झोलती है।। जिसको कद्र नहीं नफ़ासत की। अंगूठी हीरे की भी यूँ रोलती है।। अजब गजब सा आ गया जमाना। सच्चाई झूठ के आगे डोलती है।। *हंस* इक़ राज़ की बात बताऊँ मैं। जिन्दगी रोज़ नया […]

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प्रेम रंग खेलो रेे…

मन की गंगा में प्रेम रंग घोलो रे। गलबहियां डाल के मीत संग खेलो रे। धूल ब्रजभूमि की अब मलो भाल पर, अवध-अबीर मे अँग-अँग मेलो रै।। गलबहियां…. जीवन के रंग मे नया रंग घोलो रे। उदासी भूलकर बजा चंग ख़ेलो रे।। गलबहियां… मन पर जो रंग हो तन पर वही मलो। एकता और प्रेम […]

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यूं ही जिंदगी से शिकायत मत करो…

यूं ही जिन्दगी से शिकायत मत करो। मुस्कराने में भी यूं किफायत मत करो।। जिन्दगी बेमिसाल तोफहा ऊपरवाले का। उसकी दी हुई बर्बाद यह नियामत मत करो।। जी कर तो देखो चैन और सकूँ अंदर बसा है। खुशियों को बाहर से आयात मत करो।। रहो न मायूस होकर हमेशा जिंदगी के सफर में। शुरू अपने […]

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बदल गए हैं होली के रंग, इस बार मनाएं परंपराओं के संग, होली के विभिन्न रंगों की गहराई बता रही हैं साहित्यकार प्रमोद पारवाला

मन झूम रहा बिन बादल के, होली के रंग कुछ यूं बरसे। नैनों से मदिरा यूं छलकी , ज्यों मद के प्याले हों छलके । होली का नाम लेते ही रंग में सराबोर, भंग की मस्ती में झूमते, नाचते लोग स्मृति पटल पर उभर आते हैं और गुझिया का स्वाद भी अनायास ही मुंह में […]

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एसके कपूर की गजलें – नजर-नजर…

नज़र नज़र में यही इक सवाल होता है। पराये दर्द का क्यों कर मलाल होता है।। निभाये उससे भला कैसे दोस्ती कोई। कि जिसके लहजे में अक्सर उबाल होता है।। बुलंदियाँ तो सभी को मिला नहीं करतीं। कभी कभी ही किसी से कमाल होता है।। किसी को आँख दिखाने से पहले यह सोचो। लहू का […]

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एसके कपूर की गजलें : अच्छी बात नहीं…

जहर की खेती बोई जाये अच्छी बात नहीं। दुनिया हम को नाच नचाये अच्छी बात नही।। हमको करना होगी गुलशन की पहरेदारी। कातिल आबोहवा मुस्काये अच्छी बात नहीं।। प्यार मुहब्बत के पौधों से भरना है सारा गुलशन। नफ़रत हर सू आँख दिखाये अच्छी बात नहीं।। इतनी पहरेदारी है कैसे यह है मुमकिन। दुश्मनआकर घात लगाये […]

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एसके कपूर की गजलें-3, गलतफहमी में जीने का…

गलतफहमी में जीने का मजा कुछ और होता है। किसी के गम को पीने का सिला कुछ और होता है।। हक़ीक़त जान कर रोता है अक्सर ही यहाँ इंसाँ। मगर सच बात कहने का नशा कुछ और होता है ।। सुलह कर ली है मैंने भी तो अब अपने मुक़द्दर से। रज़ा पर उसकी चलने […]