विचार

आपके शब्द ही जाकर आपकी पहचान बनते हैं

आपका शब्द नहीं आपका संस्कार बोलता है। आपकी वाणी नहीं व्यक्तित्व आकार बोलता है।। योग साधना आराधना सब व्यर्थ बिना भाव के। आपका लहज़ा खुद ही हर प्रकार बोलता है।। आपकी छाप हमेशा दूसरों पर असर करती है। आपकी शालीनता दुनिया को खबर करती है।। ज्ञान सेअधिक व्यवहार बनता है सफलता की निशानी। विषम परिस्थिति […]

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तुम गैरों पर भी मेहरबान बन कर देखो…

तुम गैरों पर भी मेहरबान बन कर देखो। तुम जरा सही इंसान बन कर देखो।। बच्चों के साथ बच्चे बन कर खेलो। तुम भी जरा मासूम नादान बनकर देखो।। मत भागो हमेशा झूठी शोहरत के पीछे। तुम औरों के भी कद्रदान बन कर देखो।। जमीं पर ही रह कर जरा सोच रखो ऊँची। तुम जरा […]

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जिंदगीअभी बाकी है…

बुढ़ापा जीवन में ,मानो वरदान होता है। अनुभव की लिये ,एक खान होता है।। सफर का आखिरी ,मुकाम नहीं ये तो। फिर दुबारा चलने ,का ही नाम होता है।। उम्र से बुढ़ापे का लेना देना, नहीं होता है। विचार जवान बुढ़ापा ,कँही और खोता है।। जीने की चाह और राह , ना हो अगर। आदमी […]

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डा. निशा शर्मा की कविताएं : चांद तारों का रौशन जहाँ चाहिए…

चांद तारों का रौशन जहाँ चाहिए उस जहाँ में मगर मुझको तू चाहिए जिंदगी में मेरी हाँ कमी न कोई बिन तेरे जिन्दगानी नहीं चाहिए रोज आना तेरा, मुस्कुराना तेरा राब्ता अब मुकम्मल मुझे चाहिए तू तो मशहूर है दिल्लगी के लिये ज़िक्र अपना जुबाँ से तेरी चाहिये माना दुनिया है तारों की रौशन मगर […]

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नज़र वास्तविक कोरोना तो नभ में आए

जिस दिन सूर्य चाँद के पीछे ही छिप जाए नज़र वास्तविक कोरोना तो नभ में आए। सूर्य ग्रहण में केवल परत बाहरी दिखती गोलाई में बाहर निकली ज्वाला टिकती आगे- पीछे चन्द्र ग्रहण की गाथा लिखती युग के हाथों जीवन की परिभाषा बिकती सूर्य ग्रहण जब मुख्य भूमिका यहाँ निभाए नज़र वास्तविक कोरोना तो नभ […]

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डा. निशा शर्मा की कविताएं : प्रभु अब तुमको आना होगा…

जीवन अमिट है क्षण-क्षण में हमको सिखलाने वाले ईश्वर हमको प्रतिपल प्रतिदिन राह दिखाने वाले अमिट, अविनाशी, अमोघ वरदायिनी गंगा के स्वामी जग प्रतिपल तुमको रहा निहार, अहेतु कृपा दिखा दो स्वामी डॉक्टर स्वयं कोरोना देश में ग्रसित हो गये हैं तो हम नश्वर तुम हो ईश्वर ये हमको बतलाना होगा इस भीषण विपदा में […]

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पत्थर के होते जा रहे संवेदना शून्य बड़े शहर…

बड़ी अजीब सी बड़े शहरों की रोशनी होती है। दिन खूब हँसता पर रात बहुत रोती है।। उजालों में भी चेहरे यहाँ पहचाने नहीं जाते। सच सिसकता और झुठलाई नींद चैन की सोती है।। आदमी भटकता रहता है यहाँ कंक्रीट के जंगलों में। संवेदना सुप्त रहती है यहाँ सबकी धड़कनों में।। फायदे नुकसान के गणित […]

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प्रमोद पारवाला की कविताएं : “सागर’

हे।जलधि तुम मौन क्यों हो कुछ तो बोलो ज्वार बनकर विष धरणी का खींच लो। कालकूट भी तो तुम्ही ने था उगला, नीलकण्ठ ने ही तो जिसको था निगला। क्यों न तुम ही इस विषाणु का अन्त करो, विष को ही महाविष से अब हन्त करो। हर लो जगत की तुम सभी आपदाएं, रात दिन […]

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प्रमोद पारवाला की कविताएं : ‘बदलते परिवेश’

भोर के उजाले में, पंछियों का कलरव है, आज पता चला है।। निर्मल लहरों के संग , नदियाँ भी गाती हैं, आज पता चला है। उजला-उजला सा गगन, लगे नील वितान है, आज पता चला है। श्रंग से पर्वत लगे, ज्यूं चूमने व्योम हैं, आज पता चला है। वृक्षों से श्वासों का , नाता अब […]

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पर्यावरण संरक्षण दिवस परेड विशेष: नदी ताल में कम हो रहा जल…

नदी ताल में कम हो रहा जल और हम पानी यूँ ही बहा रहे हैं। ग्लेशियर पिघल रहे और समुन्द्र तल यूँ ही बढ़ते ही जा रहे हैं।। काट कर सारे वन कंक्रीट के कई जंगल बसा दिये विकास ने। अनायस ही विनाश की ओर कदम दुनिया के चले ही जा रहे हैं ।। पॉलीथिन […]