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प्रमोद पारवाला की कविताएं : “सागर’

हे।जलधि तुम मौन क्यों हो कुछ तो बोलो ज्वार बनकर विष धरणी का खींच लो। कालकूट भी तो तुम्ही ने था उगला, नीलकण्ठ ने ही तो जिसको था निगला। क्यों न तुम ही इस विषाणु का अन्त करो, विष को ही महाविष से अब हन्त करो। हर लो जगत की तुम सभी आपदाएं, रात दिन […]

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प्रमोद पारवाला की कविताएं : ‘बदलते परिवेश’

भोर के उजाले में, पंछियों का कलरव है, आज पता चला है।। निर्मल लहरों के संग , नदियाँ भी गाती हैं, आज पता चला है। उजला-उजला सा गगन, लगे नील वितान है, आज पता चला है। श्रंग से पर्वत लगे, ज्यूं चूमने व्योम हैं, आज पता चला है। वृक्षों से श्वासों का , नाता अब […]

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न मानी कभी बात माँ- बाप की

कहानी बनी आज संताप की, कड़ी अब जुड़ी वार्तालाप की न मानी कभी बात माँ-बाप की, चलें आज गठरी लिए पाप की। भरी ऐंठ इतनी न कुछ भी सुना, कहा कुछ किसी ने उसी को धुना लड़ी आँख जिससे उसे ही चुना, मगर प्यार का जाल ऐसा बुना बने फिर कहीं वह कभी आपकी, रखी […]

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तिकड़मों के बिना हैसियत थी कहां…

हाय मतलब यहाँ सिद्ध जिसका हुआ, आज घोड़े वही बेचकर सो रहा और उल्लू बनाया गया हो जिसे, बैठकर बेबसी में बहुत रो रहा। आदमी का न कोई भरोसा रहा, क्या पता कौन कब खोपड़ी फोड़ दे और पीड़ित न पैसा करे खर्च तो, फिर पुलिस भी उसे अब नया मोड़ दे हाय घटना बदलकर […]

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या रब क्यों इतने…

या रब क्यों इतने निष्ठुर हो जो न तेरा मान धरें क्यों उनके लिए छिपे बैठे हो आ जाओ उनके लिए बस जो तेरे लिए समर्पित हैं तुम तो जानों ये बेटी तेरी अब भी कितनी तटस्थ खड़ी सारा जग मायूस खड़ा है पर ये बेटी तेरी अडिग बड़ी तुझसे अटूट जो आस जुड़ी रख […]

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लड़ो कोरोना से…

आपस में ना लड़ो, लड़ो कोरोना से. बस मिलजुलकर रहो, लड़ो कोरोना से. इसकी कमियां, उसकी कमियां नहीं निकालो. खुद भी संभलो और सभी को आज संभालो. काम यही बस करो, लड़ो कोरोना से. लड़ो कोरोना से… उलट- पुलट कर दुनिया रख दी कोरोना ने. अर्थव्यवस्था ढीली कर दी कोरोना ने. मात्र मदद को बढ़ो, […]

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आज दूरी ही दवा हो गई है…

आज दूरी ही दवा हो गई है। बात मिलने की हवा हो गई है।। इस कातिल बीमारी ने डेरा डाला। पूरी दुनिया में फैल ये वबा हो गई है।। यूँ पाबन्दियों का दौर ऐसा चला है। जिन्दगी मानों कि सज़ा हो गई है।। जिन्दगी का हिसाब किताब बिगड़ गया। घर बैठना जिंदा रहने की वजहा […]

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डालें अच्छे बीज कि कर्म की फसल संबको काटनी पड़ती है

कर्म की फसल सबको ही काटनी पड़ती है। अपने रास्ते की झाड़ी खुद ही छाँटनी पड़ती है।। और कोई नहीं बांटता हमारी करनी का कुफल। नफ़रत की धूल खुद ही हमें फाँकनी पड़ती है।। दुःख संघर्ष हार बाद भी जन्म विश्वास का होता है। जो कष्टऔर धैर्य से घबरा गया वो निराश होता है।। हार […]

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अपने किरदार को जियें बहुत ही शिद्दत से जिंदगी में…

आओ करें दुनिया में कुछ काम हम ऐसा। दुनिया चाहे बनना फिर हम ही जैसा।। किरदार को जियें जिंदगी में ऐसी शिद्दत से। जाने से पहले बनाये अपना नाम कुछ हम वैसा।। विश्वास झलके हमारे हर किरदार में। कुछ कर गुजरने का यकीन हो चाल ढाल में।। जान लो हमारे शरीर का हर अंग बोलता […]

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प्रज्ञा यादव की कविताएं – 6

एहसास… थाम कर बादलों का काफिला मन हुआ छुप जाऊं मैं उनके तले देख लूंगा ओट से उस चांद को मखमली सी चांदनी बिखेरते कहते हो तुम लुकाछिपी क्या खेल है ? शोभता है क्या तुम्हें ये खेलना मिलो जीवन के यथार्थ से समझो क्या है जगत की वेदना सुनो ! बात तुमने है कही […]